सोमवार, 1 अप्रैल 2013

भाजपा के लिए अपरिहार्य हैं मोदी


भाजपा के लिए अपरिहार्य हैं मोदी


(लिमटी खरे)

भारतीय जनता पार्टी के अंदर इस समय एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। अटल आड़वाणी युग के अवसान के साथ ही भाजपा में अब करिश्माई नेतृत्व का अभाव साफ दिखाई पड़ रहा है। नितिन गड़करी अपेक्षाकृत युवा थे, उन्हें जब पार्टी की बागडोर सौंपी गई तब कुछ उम्मीद की जा रही थी कि सूबाई राजनीति से राष्ट्रीय फलक पर जाने पर वे कुछ नया कर पाएंगे। विडम्बना ही कही जाएगी कि वे भी असफल ही साबित हुए। आनन फानन पार्टी की कमान राजनाथ सिंह को सौंप दी गई, जो सीधे और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं। राजनाथ सिंह ने अपनी कार्यकारिणी की घोषणा की जिसमें मोदी एण्ड संस का जलजला साफ दिखाई दे रहा है। राजनाथ सिंह के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह हिन्दुत्व के रास्ते पर आज भी अडिग है। टीम राजनाथ की घोषणा के साथ ही अब नई बहस आरंभ हो गई है कि भाजपा बड़ी है या नरेंद्र मोदी!

गुजरात जहां से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के सियासी सलाहकार अहमद पटेल आते हैं वहां लगातार तीसरी बार धमाकेदार जीत दर्ज कराकर नरेंद्र मोदी ने अपना कद एकाएक बढ़ा लिया। वैसे तो दिल्ली की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित भी तीन बार से लगातार दिल्ली पर काबिज हैं, पर कांग्रेस में सब कुछ गांधी एण्ड सन्स की मर्जी से होता है इसलिए उनकी तीन बार की जीत मायने नहीं रखती है।
गोधरा कांड का दाग नरेंद्र मोदी को धोने में छः साल लग गए। छः बरस पूर्व इन्हीं राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को भाजपा के संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। उस समय यह तर्क दिया गया था कि वे एक सीएम हैं अतः उन्हें नहीं लिया जा सकता है। अब उन्हें एक बार फिर संसदीय बोर्ड में शामिल कर दिया गया है। भाजपा में युवा और असरकारी प्रभावी चेहरों की कमी नहीं है। नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान, डॉ.रमन सिंह कुछ एसे चेहरे हैं जो आम जनता को लुभाने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं।
राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को इसमें शामिल किया, यह खास नहीं है। खास बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी इकलौते भाजपा के मुख्यमंत्री हैं जिन्हें संसदीय बोर्ड में जगह दी गई है। मतलब साफ है कि आने वाले समय में नरेंद्र मोदी के चेहरे का उपयोग भाजपा करने वाली है। कहा जा रहा है कि आम चुनावों में नरेंद्र मोदी ही भाजपा के पोस्टर ब्वाय होंगे।
वैसे अभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी का प्रधानमंत्री बनने का मोह छूटा नहंी है। उधर, मोदी के नाम पर राजग की सहयोगी जनता दल यूनाईटेड भी तलवारें पजा रही है। मोदी को आगे लाकर भाजपा ने जदयू को भी यह संकेत दे दिया है कि उसके लिए पार्टी के कार्यकर्ता अहम हैं और किसी के दबाव में भाजपा मोदी से किनारा करने वाली नहीं है।
राजनाथ सिंह ने 2006 में नरेंद्र मोदी को संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखाया फिर दुबारा राजनाथ सिंह ने ही उन्हें संसदीय बोर्ड में रखा। यह अबूझ पहेली बन गया है कि एक ही व्यक्तित्व के दो चेहरे, एक बार एक शख्स को मुख्यमंत्री होने के कारण संसदीय बोर्ड से हाथ धोना पड़ा और दूसरी बार मुख्यमंत्री रहते ही संसदीय बोर्ड में सम्मान के साथ प्रवेश दिया गया।
दरअसल, आपसी संघर्ष और सत्ता के लालच के चलते भारतीय जनता पार्टी अपने मार्ग से भटक चुकी है। एक समय था जब भाजपा को काडर बेस्ड पार्टी कहा जाता था। भाजपा के पितृ सगठन संघ ने भाजपा पर नियंत्रण के लिए अपने प्रचारक और कार्यकर्ताओं को भाजपा में बिठाया था। जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में है वहां संघ के नुमाईंदों पर भ्रष्टाचार और अनाचार के आरोप लगने तेज हो गए हैं, यही कारण है कि आज काडर बेस्ड पार्टी का काडर ही नहीं बचा है।
महज दो सीटों से केंद्र में सरकार बनाने वाली भाजपा अब आक्सीजन पर है। कुछ राज्यों में भाजपा की सत्ता दो तीन बार वापस आई है, पर इन राज्यों में कार्यकर्ता भाजपा से बहुत दूर हो चुका है। इसका कारण सत्ता और संगठन के बीच वर्चस्व की जंग ही माना जा रहा है। सत्ता में बैठे लोग अब कार्यकर्ताओं से पर्याप्त दूरी बना चुके हैं।
संघ के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो अगला आम चुनाव भाजपा के लिए करो या मरो का होगा। संघ के एक सर्वेक्षण से साफ हो गया है कि कांग्रेस और यूपीए का ग्राफ भ्रष्टाचार, अनाचार, व्यभिचार, कुशासन के चलते तेजी से गिरा है। यही मौका है जब भाजपा अपना बेहतरी प्रदर्शन कर सत्ता के लिए जादुई आंकड़ा जुटा सकती है।
भाजपा के पास वैसे तो कई चेहरे हैं जिन पर दांव लगाया जा सकता है। उमा भारती का गुस्सा उनके आड़े आता है। शिवराज सिंह चौहान, डॉ.रमन सिंह, नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज जैसे लोगों को लुभाने वाले नेता भी हैं भाजपा के पास। रमन सिंह के दामन पर कोयले के दाग हैं, तो सुषमा स्वराज का जनाधार बहुत अच्छा नहीं माना जा सकता है।
रही बात शिवराज सिंह चौहान की तो उनका मीडिया मैनेजमेंट बहुत ही पुअर है। साथ ही मध्य प्रदेश में शासन प्रशासन पर उनकी ढीली पकड़ उनके आड़े आ रही है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर सीएम कहा जाने लगा है। सोशल मीडिया और छोटी बड़ी वेब साईट्स पर शिवराज सिंह चौहान के कुशासन विशेषकर मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग की कारगुजारियों ने उन्हें इस रेस से बाहर कर दिया है।
नरेंद्र मोदी ने एक साथ 53 सभाओं को संबोधित किया अब शिवराज एक साथ 250 सभाओं को संबोधित करने की तैयारी कर रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान नरेंद्र मोदी से दो कदम आगे ही चल रहे हैं पर उसके बाद भी वे आगे निकलने की होड़ से बाहर हो गए। संघ के एक आला दर्जे के पदाधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि मीडिया में एमपी के किसी सरकारी अधिकारी लाजपत आहूजा का नाम बार बार आने का खामियाजा शिवराज सिंह चौहान को भुगतना पड़ा है।
उधर, भाजपा के पास शिवराज सिंह चौहान के उपरांत नंबर दो पर नरेंद्र मोदी का चेहरा है जो लोगों को लुभा सकता है। नरेंद्र मोदी को लोग ज्यादा से ज्यादा सुनने को आतुर रहते हैं। नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा बंटी हुई है, पर कार्यकर्ताओं के दबाव में पार्टी और संघ का शीर्ष नेतृत्व मोदी की उपेक्षा करने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। मोदी की कई खूबियां हैं, देखा जाए तो कांग्रेस ने मोदी को हीरो बनाया है।
कांग्रेस द्वारा भाजपा में अधिकांशतः नरेंद्र मोदी पर ही वार किया जाता है, जिससे साफ है कि कांग्रेस की नजर में मोदी से बड़ा कोई नेता भाजपा में नहीं है। शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ देश तो क्या प्रदेश स्तर पर कांग्रेस कोई वार करती नजर नहीं आती है। पार्टी को लगता है कि मोदी के नाम से ही कार्यकर्ता उत्साहित हो रहे हैं, ऐसे में लोकसभा चुनाव में मोदी कार्यकर्ताओं और पब्लिक में जोश भर सकते हैं।
नरेंद्र मोदी भी बहुत मंझे हुए खिलाड़ी हैं। नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया की ताकत का खूब अंदाजा है। नरेंद्र मोदी की जुंडाली ने सोशल मीडिया में उनके प्रमोशन का बहुत ही सटीक गेमप्लान बनाया। सोशल मीडिया में पिछले एक साल से नरेंद्र मोदी के फोटो और आकर्षक स्लोगन्स फ्लोट किए गए हैं। इन्हें जमकर शेयर किया जा रहा है। अगर आपके दोस्तों की संख्या पंद्रह सौ से अधिक है तो आपको अपनी वाल पर रोजाना कहीं ना कहीं नरेंद्र मोदी दिख ही जाएंगे।
भाजपा ने अमित शाह को प्रवेश दिया वहीं रवीशंकर प्रसाद, शांता कुमार, यशवंत सिन्हा, हेमा मालिनी, नजमा हेपतुल्ला, शिवराज सिंह चौहान, डॉ.रमन सिंह, वसुंधरा राजे सिंधिया जैसी हस्तियों को दूर ही रखा। इस बार राजनाथ सिंह ने संतुलन को भी ध्यान में नहीं रखा है। उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम, जम्मू एवं काश्मीर को एकदम उपेक्षित ही रखकर यहां से किसी को भी शामिल नहीं किया है।
राजनाथ सिंह के व्यक्तित्व से सभी वाकिफ हैं। राजनाथ सिंह इस बार मनराखनलाल बने हुए हैं। इस बार उनका पूरा ध्यान समन्वय और आपसी सहमति के साथ चलने पर है। नितिन गड़करी की बिदाई की बेला में वे जिस तरह सर्वमान्य बनकर उभरे हैं उसी को कायम रखते हुए उन्होंने राजस्थान को वसुंधरा के हवाले करते हुए मोदी को केंद्र में प्रवेश दिया है। अगर राजनाथ सिंह इसी तरह समन्वय बनाकर चलते रहे और भाजपा सत्ता में आई तो उनके लिए अनेक मार्ग प्रशस्त होने से कोई नहीं रोक सकता है।
वहीं अब सियासी फिजां में यह सवाल भी घुमड़ने लगा है कि नैतिकता के आधार पर भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह को यह स्पष्ट करना ही चाहिए कि आखिर वे कौन से आधार थे, जिनके चलते 2006 में नरेंद्र मोदी को रूखसत किया गया था और अब किन खूबियों वाले आधार पर उन्हें प्रवेश दिया गया है। यह पार्टी के अंदर का नितांत निजी मामला है पर जनता को इन सवालों के जवाब जानने का पूरा हक है। (साई फीचर्स)

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