भारतीय नववर्ष का
पर्व है वर्ष प्रतिपदा
(अखिलेश कुमार यादव)
नई दिल्ली (साई)।
प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी 11अप्रैल 2013 दिन बुधवार को
सर्वोत्तम संयोग पड रहा है जिसके तारतम्य में इस दिन भारतीय पंचाग के अनुसार नव
विक्रम संवत 2069-70,चैत्र
नवरात्रि का प्रारंभ ,गुडीपाडवा पर्व ,भगवान झूलेलालजी का जन्मोत्सव,चेटी चॉंद,महर्षि गौतम ऋषि
एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक व प्रथम सर संघ संचालक डॉ.हेडगेवार जी की
जयंती भी इसी दिन है।
वैसे भी आज समाज
में जो अराजकता ,अराष्ट्रीयता
और स्वार्थी मनोवृत्ति के विस्तार के साथ ही साथ भारतीय संस्कृति ,सनातनी परम्परा और
धार्मिक ,मानवीय
संवेदना के भावों की अनदेखी कर पाश्चात्य सभ्यता व आधुनिकता का चकाचौंध में जो
मानसिकता प्रभावित हो रही है उसके लिए निश्चित रूप् से समाज में जागरूकता लाने की
आवश्यकता है । हमने 1 जनवरी को ही अपना नववर्ष मान लिया है और जिसके आगमन व बीते
वर्ष की विदाई में 31 दिसम्बर
की रात्रि में गली,चौक,मोहल्लों ,होटलों,रेस्टारेंटो व अन्य
स्थानों में बहुत खर्चीला व भव्य आयोजन
पश्चिमी देशों की तर्ज पर किया जाता है। जबकि यह अंग्रेजी कलेन्डर के आधार पर
नववर्ष है लेकिन हमने इसे ही आत्मसात कर अपनी मूल संस्कृति ,मूल परम्परा व पर्व
को ही अनदेखा तो कर ही दिया है तथा उसके आयोजनों में भी अपनी प्रसन्नता सहयोग व
भावना व्यक्त करने में परहेज करते है जिसके दुष्प्रभाव बिगडते और बदलते हुए
सामाजिक मानदंडो के रूप में हमें आज देखने को मिल रहे है। जिस पर चिंतन मनन आवश्यक
है।
(अप्रैल) चैत्र मास की 11 तारीख से शक्ति का
पर्व नवरात्रि प्रांरभ हो रहा है जो कि 19 तारीख तक रहेगा इस माह में कलश व ज्वारों की
स्थापना के माध्यम से शक्ति की उपासना व आराधना की जाती है जिसकी काफी दिनों पूर्व
से वृहदस्तर पर लोगों के द्वारा तैयारी की जाती है इन नौ दिनों में जगह-जगह पर
माता के जयकारों,जस-भजन व
गीतों की गंूज रहती है वैसे भी हिन्दु संस्कृति में हर छह माह के अंतराल से क्वार
(अक्टूबर/नवंबर) व चैत्र (अप्रैल) में दो
बार पडने वाला यह शक्ति पर्व पूरे सम्प्रदाय,संस्कृति ,सभ्यता व संतति को
उर्जा मय शक्ति संपन्न कर आसुरी प्रवृत्तियों के प्रतिकार तथा संहार का बल व साहस
देता है इसी तिथि को हम वर्ष प्रतिपदा एवं नव संवतसर प्रांरभ भी कहते है जिसका
अभिप्राय नव वर्ष की और नवीन संकल्पों के साथ पदापर्ण करते हुए नव संवतसर का आगमन
करना है जो हमारे जीवन में समृद्धियों व खुशहाली का संचार करेगा ।प्रकृति व कृषि
दोनों ही दृष्टिकोण से इस मास का बहुत महत्व है ।रितुराज बसंत के बाद का यह माह
मौसम व कृषि के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है इस माह में ही रवि की फसलों की कटाई
होती है और नया अनाज ,नव वर्ष के पूजन के समय पाकशाला में पकाया जाता है और
देवी-देवताओं को उसका भोग लगाया जाता है उत्सव के रूप में इस मनाकर पास-पडोस व
परिचितों को उनके आनंद मंगल के लिये शुभकामनाएं दी जाती है इसी पर्व को महाराष्ट्र
की परम्परा अनुसार गुडी पडवा के रूप में नववर्ष की तरह मनाया जाकर विभिन्न आयोजन व
शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है लेकिन धीरे-धीरे लोग इसे व इससे जुडे
पर्वो को औपचारिकता के रूप में आयोजित कर इसके मूल भाव व महत्व को भूलते जा रहे है
जबकि इसी भारतीय संस्कृति व सभ्यता की रक्षा के लिए सिंधी हिन्दुओं को संगठित कर
मिर्ख के बादशाह की धर्मान्धता व धर्मान्तरण से जनमानस को संरक्षित कर समाज में
धर्म-अध्यात्म व आस्था का प्रकाश फैलाने वाले महापुरूष भगवान श्री झूलेलाल जी का
जन्मोत्सव सिंधी समाज चेटीचांद के रूप में उत्साह उमंग व उल्हास से वर्ष प्रतिपदा
के दिन ही मनाता है। और इसी दिन परमपूज्य डॉ.केशव बलीराम हेडगेवार जी की जंयती भी
है जिन्होनें विजयदशमी सन 1925 को नागपुर में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की
प्रतिस्थापना की थी वे संघ के संस्थापक व प्रथम सर संघ संचालक थे जिनका
राष्ट्रीयता के बोध भाव का रोपा गया बीज आज वटवृक्ष की तरह विस्तारित हो समाज एवं
संस्कृति के रक्षार्थ कर्तव्यस्थ ही प्रयास कर रहा है। महर्षि गौतम ऋषि जो कि महान
संत व तपोनिष्ठ थे जिन्होनें इन्द्र की बदनियति के कारण इन्द्र द्वारा माता
अहिल्या के साथ किये गये अनापेक्षित व्यवहार से दुखित होकर अपने तपबल से इन्द्र के
साथ ही साथ माता अहिल्या को भी श्राप दिया था जिसके कारण वे पत्थर की शिला बन गयी
थी और वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने शिला
का स्पर्श कर माता अहिल्या को इस श्राप से मुक्ति दिलाई थी। इन समस्त
विशेषताओं से भरा हुआ है वर्ष प्रतिपदा व नव सवंत का यह पर्व जो दर्शाता है कि पद,प्रतिष्ठा पैसा,प्रभाव ,राजनीति व राजनैतिक
दांव पेंच सब यही का यही धरा रह जाता है लेकिन इतिहास में केवल उनका नाम अजर अमर
हो जाता है। जिन्होनें जनमानस के लिए राष्ट्र के लिए अपने धर्म,संस्कृति,सभ्यता व राष्ट्रीय
अस्मिता के लिए अपना निःस्वार्थ भाव से समपर्ण,निष्ठा व योगदान
दिया है,तो आए हम
सब और भारतीय राष्ट्रीय सनातनी परम्परागत संस्कृति के प्रतीक वर्ष -प्रतिपदा नव
वर्ष पर इन भावों का संकल्प ले और उत्साह
उमंग व जोश के साथ अपने इस नववर्ष का आपस में तिलक ,शुभकामनाएं देकर
तोरण ,झंडी लगाकर
पूजन अर्जन कर कुछ विचार मंथन चिंतन कर आगमन व आयोजन करें । क्योंकि जिस राष्ट्र
की भाषा ,संस्कृति, सभ्यता ,धर्म एवं
राष्ट्रीयता अपनों से ही उपेक्षित होने लगती है उस राष्ट्र को परंतत्र होना
निश्चित है।
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