पांच सालों में हो
जाएंगे तीस हजार जज
(शरद)
नई दिल्ली (साई)।
देश में न्यायधीशों की कमी पर अब केंद्र सरकार ने भी संज्ञान लेना आंरभ किया है।
देश में अगले पांच वर्षों में न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या लगभग दोगुनी
कर ३० हजार कर दी जाएगी। इस फैसले से न्यायधीश और जनसंख्या के बीच अनुपात बढकर
प्रति दस लाख की जनसंख्या पर तीस हो जाएगा। यह अनुपात अभी प्रति लाख की जनसंख्या
पर १६ न्यायाधीश है।
मुख्यमंत्रियों और
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन के बाद कानूनी और न्यायिक
सुधारों की व्यापक कार्यसूची का दस्तावेज जारी करते हुए उच्चतम न्यायालय के सीएफआर
मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर और विधि और न्याय मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि
प्रधानमंत्री ने जनसंख्या के अनुपात में न्यायाधीश बढाने के फैसले को सिद्धांत रूप
से मंजूर कर लिया है।
उन्होंने कहा कि
महिलाओ,ं बुजुर्गाे
और बच्चों पर होने वाले जघन्य अपराधों की सुनवाई तेजी से करने के लिए और अधिक
फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई जाएंगी। कुमार ने बताया कि केन्द्र प्रायोजित योजना के
तहत बुनियादी सुविधओं के लिए अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी जिसमें ७५ प्रतिशत
हिस्सा केन्द्र का और २५ प्रतिशत राज्य सरकार का होगा। उन्होंने कहा कि छोटे मोटे
अपराधों से निपटने के तरीकों पर सुझाव के लिए समिति गठित की जाएगी।
वहीं प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने न्यायपालिका को महिलाओं संबंधी मुद्दो के प्रति संवेदनशील बनाने की
आवश्यकता पर बल दिया है। पिछले वर्ष दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म की घटना के
संदर्भ में उन्होंने कहा कि विधि और न्याय व्यवस्था को आत्म मंथन करना होगा। नई
दिल्ली में मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन का उद्घाटन करने के
बाद डा० सिंह ने कहा कि महिलाओं के प्रति अपराध रोकने के लिए अभी बहुत कुछ किया
जाना है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें