गेंहूं खरीद में हो
रहा गड़बड़झाला
(राजकुमार अग्रवाल)
कैथल (साई)। गेहंू
की खरीद को लेकर सेरधा अनाज मंडी के आढ़तियों में सरकार के प्रति व्यापक रोष दिखाई
दिया। जिस पर आढ़तियों ने फैसला लिया कि वे अपनी मंडी में कोई भी एसोसिएशन नहीं
बनाएंगे, बेशक से
खरीद कोई भी एजैंसी करें। मंडी के प्रधान ऋषिपाल गुप्ता सेरधा ने बताया कि चंडीगढ़
मुख्यालय से उनकी मंडी से अब की बार भी हर वर्ष की भांति एफसीआई की ही खरीद
स्वीकार होकर आई थी। परन्तु बाद में पता नहीं कैसे उनकी मंडी की खरीद एजैंसी बदल
कर खाद्य निगम कर दिया गया। उन्होंने बताया कि मंडी में से खाद्य निगम द्वारा खरीद
करना बहुत ही मुश्किल है। उन्होंने बताया कि वे अपनी खरीद पहले की तरह ही एफसीआई
की करवाने के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। परन्तु फिर भी उनकी कोई
सुनवाई नहीं हो रही। बाद में खाद्य निगम के निर्देशक अश्वनी गोड़ ने कहा कि वे पहले
की तरह एफसीआई की खरीद करने के लिए पूरा प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी अनाज
मंडी सड़क से काफी नीचे है। जिस कारण से मंडी में अक्सर 3-3 फूट पानी जमा हो
जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि एफसीआई की खरीद होने पर मंडी के सभी खरीद बिल
सीधे एजैंसी के नाम चले जाते है। परन्तु डीएफएससी की खरीद होने के कारण यह एजैंसी
मंडी की एसोसिएशन के माध्यम से बिल लेगी। जिस कारण से उनको खरीद का ब्यौरा तैयार
रखने के लिए अलग से अकाऊंटेंट व दो तीन अन्य लड़के रखने पड़ेंगे। जिससे एसोसिएशन
बनाने पर मंडी का लगभग 1 लाख रुपया खर्चा आएगा। मंडी के अंदर लगभग 1 लाख 25 हजार के लगभग
कट्टे गेहंू के आते है। इस हालत में इस खरीद एजैंसी द्वारा कमीशन के रूप में उनको
लगभग 20 हजार रुपए
ही मिल पाएंगे। ऐसा करने से मंडी को लगभग 80 हजार रुपए का नुकसान झेलना पड़ेगा। जिस कारण
से उन्होंने मंडी के सभी आढ़तियों को बुलाकर यह फैसला लिया कि वे मंडी में अपनी
एसोसिएशन नहीं बनाएंगे। कोई भी एजैंसी खरीद करें बारदाने का हिसाब किताब रखने, भरी बोरियों का
हिसाब रखने व सीधा बिल लेने के लिए एजैंसी मजबूर होगी। यदि एजैंसी ऐसा करने से
जवाब देती है तो वे किसी भी कीमत पर एसोसिएशन नहीं बनाएंगे। बेशक से सेरधा खरीद
केंद्र ही बंद क्यों न हो जाएं। वे अपने किसानों को दूसरी मंडियों में गेहंू की
फसल डालने के लिए कहेंगे। परन्तु किसी भी हालत में एसोसिएशन नहीं बनाएंगे। सभी
आढ़तियों ने इस फैसले का पूरे जोर से स्वागत किया।
भारतीय किसान
यूनियन के राष्ट्रीय सलाहकार अजीत सिंह हाबड़ी ने हरियाणा सरकार से मांग की है
कि प्रदेश में भी किसानों की हालत को
देखते हुए दूसरे राज्यों की तरह 150 रुपए प्रति क्विंटल बोनस दिया जाएं। बलवान
पाई के निवास पर पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश व राजस्थान
की राज्य सरकारों ने अपने किसानों को 150 रुपए प्रति क्विंटल बोनस देने की घोषणा की
हुई है। जिस कारण से प्रदेश सरकार को भी इन राज्यों की तर्ज पर किसानों को कर्ज से
बचाने के लिए 150 रुपए
प्रति क्विंटल बोनस देना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश के किसानों का क्या कसूर
है। जो प्रदेश सरकार किसानों का हितैषी होने का दावा करती है परन्तु किसानों की ओर
जरा भी ध्यान नहीं रखती। उन्होंने कहा कि सरकार को बोनस की घोषणा बहुत पहले ही कर
देनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी कहा कि गेहंू का सीजन शुरू हो चुका है, परन्तु अभी तक
प्रदेश की मंडियों में न तो बिजली पानी का प्रबंध है और न ही साफ सफाई व सड़कों का।
मंडी के फीड व सड़कें टूटी पड़ी है। कहीं पर भी अच्छे पेयजल का प्रबंध नहीं है।
बिजली का प्रबंध तो कुछ कहना ही नहीं। पाई, सेरधा, करोड़ा व जाखौली, किठाना, राजौंद आदि अनेक
मंडियों में किसानों को कच्चे में अपनी फसल डालनी पड़ती है। जिस कारण से किसानों की
बहुत सी फसल मिट्टी में मिल जाती है। वर्षा होने पर किसानों की दुर्दशा बहुत बुरी
हो जाती है। उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे अपनी गेहंू की फसल सिर्फ सरकार
को ही दें और प्राइवेट खरीद दारों को 1-2 रुपया अधिक मूल्य पर अपनी फसल न बेचे।
उन्होंने यह भी कहा कि किसान अपनी फसल प्राइवेट खरीददारों को बेचते समय कम से कम 100 रुपए अधिक कीमत पर
बेचे और आढ़ती से जे फार्म व तोल की पर्ची पर यह लिखवाकर ले कि यदि सरकार बोनस
घोषित करती है तो इस फसल का बोनस भी दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वे अब की बार हर
हाल में बोनस लेकर रहेंगे।
0 मंडियों में किया गया उचित प्रबंध: राविश
इस बारे में
मार्केट कमेटी सचिव सतवीर राविश ने बताया कि उन्होंने पाई मार्केट कमेटी के अधीन
आने वाली सभी मंडियों वे खरीद केंद्रों में किसानों की सुविधा के लिए सभी उचित
प्रबंध कर दिए गए है। प्रत्येक मंडी में बिजली, पानी आदि की उचित
व्यवस्था की गई है। किसानों की फसल को वर्षा आदि जैसे नुकसान से बचाने के लिए
उन्होंने आढ़तियों को पहले ही निर्देश दिए हुए है कि वे पावर का पंखा, प्रयाप्त संख्या
में तरपालें व करेंटें रखें। ताकि किसान व खरीद एजैंसी को नुकसान न हो।
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