कांग्रेस के लिए
मजबूरी बन चुके हैं विलासराव
(लिमटी खरे)
भले ही विलासराव
देशमुख पर आदर्श सोसायटी जैसे घोटालों का स्याह साया हो या फिर 26/11 हमले के उपरांत
अपने साथ निर्देशक रामगोपाल वर्मा को ले जाने का आरोप, पर वे कांग्रेस की
मजबूरी ही बन चुके हैं। अपेक्षाकृत युवा और उत्साही होने के साथ ही साथ देशमुख की
पकड़ से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का शायद ही कोई औद्योगिक या घराना छूटा हो।
देशमुख की कार्यशैली के आज भी कांग्रेस में अनेक नेता कायल हैं। कांग्रेस में
विलास राव देशमुख को शरद पंवार के विकल्प के बतौर देखा जाता है।
सियासी गलियारों
में कहा जाता है कि व्यवसायिक घरानों की बैसाखी के बिना एक कदम भी चलना सियासी
पार्टियों के लिए पसीना निकालने जैसा दुष्कर काम है। कांग्रेस में एक समय में शरद
पंवार को इसका सूत्रधार माना जाता था। सोनिया के विदेश मूल के मुद्दे के बाद
कांग्रेस से बिदा लेकर राकांपा के गठन के साथ ही कांग्रेस में व्यवसायिक घरानों के
साथ सूत्रधार की कमी शिद्द से महसूस की जाने लगी।
इसकी जिम्मेवारी
कांग्रेस के उद्योगपति सांसदों पर डाली गई पर वे निष्काम ही साबित हुए। इसके
उपरांत जब विलास राव देशमुख सूबाई राजनीति में पायदान चढ़ने लगे तब उन्होंने इस
वेक्यूम को काफी हद तक खत्म करने का प्रयास किया। अपनी शैली में काम करते हुए
विलास राव देशमुख ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में लगभग सभी छोटे, बड़े घरानों से
रिश्तों की डोर मजबूत कर डाली।
विलासराव देशमुख का
जन्म 26 मई 1945 को लातूर जिले के
बाभालगांव के एक मराठा परिवार में हुआ था। उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से विज्ञान
और ऑर्ट्स दोनों में स्नातक की पढ़ाई की है। पुणे के ही इंडियन लॉ सोसाइटी लॉ कॉलेज
से उन्होंने कानून की पढ़ाई की। विलासराव ने युवावस्था में ही समाजसेवा करना शुरू
कर दिया था। उन्होंने सूखा राहत कार्य में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। विलासराव देशमुख
और उनकी पत्नी वैशाली देशमुख को तीन बेटे हैं। अमित देशमुख, रितेश देशमुख और
धीरज देशमुख। अमित देशमुख लातूर से विधायक हैं। जबकि रितेश देशमुख जानेमाने
बॉलीवुड कलाकार हैं।
विलासराव देशमुख ने
अपना सियासी सफर जमीनी स्तर से आरंभ किया यही उनकी सियासत की पायदान चढ़ने में सबसे
बड़ी सहायक बात साबित हुई। विलासराव देशमुख ने पंचायत से अपने राजनीतिक जीवन की
शुरुआत की और पहले पंच और फिर सरपंच बने। वो जिला परिषद के सदस्य और लातूर तालुका
पंचायत समिति के उपाध्यक्ष भी रहे। विलासराव युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भी रहे
और अपने कार्यकाल के दौरान युवा कांग्रेस के पंचसूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने की
दिशा में भी काम किया।
इसके बाद विलासराव
देशमुख ने राज्य की राजनीति में कदम रखा और 1980 से 1995 तक लगातार तीन चुनावों में विधानसभा के लिए
चुने गए और विभिन्न मंत्रालयों में बतौर मंत्री कार्यरत रहे। इस दौरान उन्होंने
गृह, ग्रामीण
विकास, कृषि, मतस्य, पर्यटन, उद्योग, परिवहन, शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, युवा मामले, खेल समेत अनेक पदों
पर मंत्री के रूप में कार्य किया। विलासराव देशमुख का जन्मस्थल लातूर है और यही
उनका चुनावी क्षेत्र भी है। राजनीति में आने के बाद से उन्होंने लातूर का नक्शा ही
बदल दिया है।
असफलताओं ने भी
विलासराव को विचलित नहीं किया है। 1995 में विलासराव देशमुख चुनाव हार गए लेकिन 1999 के चुनावों में उनकी
विधानसभा में फिर से वापसी हुई और वो पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन
उन्हें बीच में ही मुख्यमंत्री की आसनी तजनी पड़ी और सुशील कुमार शिंदे को उनकी जगह
मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन अगले चुनावों में मिली अपार सफलता के बाद कांग्रेस
ने उन्हें एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाया। पहली बार विलासराव देशमुख 18 अक्टूबर 1999 से 16 जनवरी 2003 तक मुख्यमंत्री
रहे जबकि दूसरी बार उनके मुख्यमंत्रित्व का कार्यकाल 7 सितंबर 2004 से 5 दिसंबर 2008 तक रहा।
मुख्यमंत्री
विलासराव देशमुख के दूसरे कार्यकाल के दौरान देश पर मुंबई सीरियल ब्लास्ट हुआ। की
नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद
उन्होंने केंद्रीय राजनीति का रुख किया और राज्यसभा के सदस्य बने। उन्हें केंद्रीय
मंत्रिमंडल में जगह दी गई और उन्होंने भारी उद्योग व सार्वजनिक उद्यम मंत्री, पंचायती राज मंत्री, ग्रामीण विकास
मंत्री के पद पर काम किया। वर्तमान में विलासराव देशमुख विज्ञान और तकनीक मंत्री
के साथ ही भू-विज्ञान मंत्री भी हैं। इसके साथ ही विलासराव देशमुख मुंबई क्रिकेट
एशोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।
विलास राव देशमुख
की पिछले कुछ दिनों से तबियत बिगड़ने की खबरें भी आ रही हैं। सियासी गलियारों में
उन्हें लेकर तरह तरह की चर्चाएं चल पड़ी हैं, और अब हालात यह हैं कि उन्हें आनन फानन में
मुंबई के प्रसिद्ध ब्रीच कैंडी अस्पताल से विमान के ज़रिए चेनई ले जाकर एक अस्पताल
में भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि उनकी हालत नाज़ुक है क्योंकि उनके
गुर्दों और लिवर ने काम करना बंद कर दिया है और उन्हें लाईफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा
गया है।
देशमुख विरोधी इस
बात को भी हवा दे रहे हैं कि आदर्श सोसायटी एवं अन्य घोटालों में उनका नाम आने से
वे बेहद चिंतित थे। साथ ही टीम अण्णा के हमलों ने देशमुख को व्यथित कर रखा था।
चूंकि अण्णा हजारे और देशमुख दोनों एक ही सूबे से हैं अतः इस मामले में उनकी चिंता
वाजिब ही होगी।
युवा उर्जावान, यूथ आईकान विलासराव
देशमुख कांग्रेस के लिए मजबूरी से कम नहीं हैं। उनकी कार्यशैली, सियासी समझ, व्यवसायिक और औद्योगिक
घरानों से उनके ताल्लुकात जैसी बातों के चलते कांग्रेस के आला नेताओं की पहली पसंद
की फेहरिस्त में देशमुख का नाम काफी उपर बताया जाता है। वे अभी जीवन के लिए
संघर्षरत हैं। भगवान से यही कामना है कि उन्हें जल्द स्वस्थ कर उन्हें दीर्घायु
प्रदान करे। (साई फीचर्स)
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