भास्कर को भा गई
रजनीगंधा की गंध
(तेजवानी गिरधर / विस्फोट डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)।
इन दिनों देश का एक नामी अखबार दैनिक भास्कर एक और जनहित अभियान पर निकल पड़ा है।
पान मसाले पर प्रतिबंध का अभियान। लेकिन दैनिक भास्कर की इस मुहिम के में एक
विरोधाभासी और हास्यास्पद तथ्य उभर कर सामने आया है। विरोधाभासी इसलिए कि एक ओर
दैनिक भास्कर को मिली केन्द्रीय तंबाकू अनुसंधान संस्थान उर्फ सीटीआरआई, राजमुंदरी में
बताया गया है कि पान मसाला रजनीगंधा में 2.26 प्रतिशत निकोटिन है, जो कि स्वास्थ्य के
लिए हानिकारक है, जबकि दूसरी
ओर उसी दैनिक भास्कर में रजनीगंधा ने एक विज्ञापन जारी कर खुलासा किया है कि
सेंट्रल टोबेको रिसर्च इंस्टीट्यूट-इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकलचर, राजुमंदरी से यह
प्रमाणित हो चुका है कि उनके उत्पाद में निकोटिन नहीं है।
हास्यास्पद यह है
कि जिन दो संस्थानों का नाम ये दोनों हिन्दी और अंग्रेजी में ले रहे हैं ये
संस्थान और इंस्टिट्यूट एक ही हैं, केवल हिंदी और अंग्रेजी में नाम का फर्क है।
जिस पान मसाला विरोधी मुहिम के तहत दैनिक भास्कर ने 29 जुलाई के अंक में
रजनीगंधा सहित अन्य पान मसालों के बारे में रिपोर्ट छापी है, उसी दैनिक भास्कर
के 2 अगस्त के
प्रथम पृष्ठ पर रजनीगंधा का विज्ञापन छापा है।
सवाल ये उठता है कि
आखिर किसकी रिपोर्ट सही है? दैनिक भास्कर को मिली रिपोर्ट, जिसके आधार पर उसने
मुहिम पर और अधिक जोर दिया है या फिर रजनीगंधा की ओर से उल्लेखित रिपोर्ट, जो कि बाकायदा
विज्ञापन के जरिए बता रहा है कि उसके उत्पाद में न तम्बाकू है और न ही निकोटिन।
इसलिए अपने पसंदीदा रजनीगंधा पान मसाला की शुद्धता का आनंद पूरे विश्वास के साथ
लीजिए। एक ही संस्थान भला दो तरह की विरोधाभासी रिपोर्ट कैसे जारी कर सकता है? जरूर कोई घालमेल
है। उससे भी अफसोसनाक ये कि जो समाचार पत्र पान मसाला विरोधी मुहिम का श्रेय ले
रहा है और उत्पाद विशेष का हवाला दे रहा है, वह भला कैसे उसी पान मसाला का विज्ञापन छाप
रहा है। ऐसा करके खुद भास्कर ने अपनी ही खबर का खंडन कर दिया है। मगर इससे पाठक तो
भ्रमित हो रहा है। वह भला कहां जाए? उसे असलियत कौन बताएगा?
इतना ही नहीं इससे
तो गुटका गोवा 1000,
गुटका आरएमडी, खैनी राजा व खैनी चौनी-खैनी के बारे में छपी
रिपोर्ट पर भी संदेह होता है, जिसमें बताया गया है कि उनमें क्रमशः 2.04, 1.88, 1.02 व .58 प्रतिशत निकोटिन
है। और इस तरह से दैनिक भास्कर की वह मुहिम ही सिरे से खारिज होती नजर आ रही है, जिसके अनुसार सादा
पान मसाला में भी निकोटिन मौजूद है, अतरू उस पर भी रोक लगाई जानी चाहिए।
यहां बता दें कि
भास्कर ने अपनी खबर में बताया है कि बाजार में जीरो टोबेको के नाम से बिक रहे
मशहूर ब्रांडों के पान मसाला भी गुटखा और तंबाकू जितने ही खतरनाक हैं। इनमें गुटखा
और तंबाकू उत्पादों से कहीं ज्यादा मात्रा में निकोटिन पाया गया है, जबकि यह जीरो
प्रतिशत होना चाहिए। यह खुलासा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सिफारिश पर
केंद्रीय तंबाकू अनुसंधान संस्थान सीटीआरआई, राजमुंदरी की जांच रिपोर्ट में हुआ।
सीटीआरआई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सिफारिश पर बाजार में मौजूद पान मसाला, तंबाकू और गुटखा
उत्पादों के सैंपल लेकर निकोटिन की मात्रा की जांच की थी। रजनीगंधा में 2.26 प्रतिशत निकोटिन
पाया गया, जो सभी
सैंपलों में सबसे ज्यादा था। सीटीआरआई तंबाकू पर शोध करने वाली केंद्र सरकार की
सर्वाेच्च संस्था है। यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आईसीएआर के अधीन काम
करता है। इसकी रिपोर्ट विश्वसनीय मानी जाती है।
दैनिक भास्कर के
तीन अगस्त की खबर में भी इसी बात पर जोर दिया जा गया है कि राज्य सरकार की ओर से
गुटखे पर लगाई गई पाबंदी के आदेशों में हर उस खाद्य पदार्थ पर बैन है, जिसमें निकोटिन
मिला है। इसके बावजूद प्रदेश में ऐसे पान मसाले की बिक्री खुले आम की जा रही है, जिनकी जांच में
खतरनाक निकोटिन की पुष्टि हो चुकी है।
सरकार अब इसे यह
कहकर टाल रही है कि केंद्रीय कानून फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट में संशोधन किए
बिना रोक संभव नहीं है, लेकिन सरकार के आदेश में स्पष्ट है कि वे खाद्य पदार्थ, जिनमें निकोटिन है
उनके भंडारण, उत्पादन व
बिक्री पर रोक रहेगी। लब्बोलुआब, बड़ा सवाल ये है कि जब सादा पान मसालों में
निकोटिन होने की रिपोर्ट पर ही सवालिया निशान लग गया है तो दैनिक भास्कर की इस
मुहिम के मायने ही क्या रह जाते हैं?
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