जुलाई में पारा
तेजी से लुढका दिल्ली का
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
दिल्ली के मौसम के बारे में अनिश्चितता बनना आरंभ हो गया है। दिल्ली की सर्दी, गर्मी और बरसात का
जमकर आनंद उठाते हैं दिल्ली वाले। इस बार तो मौसम के मिजाज ने पुराने सारे आंकड़ों
को ही ध्वस्त कर दिया है। एक पखवाड़े पहले उमस से तरबतर दिल्ली वासी पानी की
फुहारों के बाद अब राहत ही महसूस कर रहे हैं।
मौसम का हाल गजब
है। 15 दिन पहले
तक गर्मी के नए रिकार्ड बन रहे थे। अब ठंडक के नए रिकार्ड बनने लगे हैं। सौ साल के
इतिहास में जुलाई के महीने में दिल्ली का तापमान इतना कम कभी नहीं हुआ। तापमान 26.4 डिग्री दर्ज किया
गया। वैसे दिल्ली के लिहाज से हल्की बारिश हो तो बेहतर है। बारिश तेज हुई कि पूरा
शहर जाम में फंस जाएगा। मौसम विभाग की माने तो इस सप्ताह लगातार बारिश होती रहेगी।
मौसम विभाग के
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि दिल्ली के इतिहास में जुलाई का
अधिकतम तापमान इतना नीचे कभी दर्ज नहीं किया गया। सफदरजंग केंद्र पर सामान्य से 6 डिग्री सेल्सियस
नीचे 27.9 डिग्री और
आया नगर में 26.4 डिग्री
दर्ज किया गया। जुलाई में अब तक अधिकतम तापमान सबसे नीचे दिल्ली में 9 जनवरी, 1972 को 26.6 डिग्री दर्ज किया
गया था।मंगलवार को शाम 5.30 बजे तक 15 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई।
मौसम विभाग के
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि मौसम विभाग करीब सौ साल पहले शुरू
हुआ था। तब से अब तक इतना कम तापमान जुलाई के महीने के महीने में कभी नहीं आया।
हालांकि यह कहना मुश्किल है कि क्या यह सब ग्लोबल वार्मिल के कारण हो रहा है। वैसे
एनसीआर में आज धूप खिली है। पर माना जा रहा है कि शाम तक हल्की फुहारें पड़ सकती
है।
हालांकि सावन में
यूपी के किसान बारिश के लिए तरसते रहे। सूबे के छह जिलों के अलावा बाकी सभी जिलों
में मानसून की नाराजगी बनी रही। इनमें सामान्य से कम बारिश रिकार्ड की गई। इससे
सीधा नुकसान खरीफ की बुआई पर पड़ा है। मौसम विभाग के आंकड़े के अनुसार सूबे के उन 26 जिलों में सामान्य
से आधी बारिश हुई जिनको धान की बेहतर उपज देने वाला जिला माना जाता है।
समाचार एजेंसी ऑफ
इंडिया के संवाददाताओं से प्राप्त समाचारों के अनुसार मेरठ, बागपत, महाराजगंज, कुशीनगर, गौतमबुद्धनगर, रामपुर, गाजियाबाद, हाथरस व हापुड़ में
सबसे कम बारिश हुई। केवल छह जिलों ललितपुर, कांशीराम नगर, चित्रकूट, बलरामपुर, अंबेडकर नगर व
कानपुर देहात पर ही इंद्रदेव मेहरबान रहे।
इन जिलों में
सामान्य से थोड़ा अधिक पानी बरसा। सावन के बादलों की रुसवाई ने धान उत्पादक किसानों
की हिम्मत तोड़ दी है। जिसके चलते धान की रोपाई लक्ष्य से करीब 25 फीसद कम रही।
दलहनी फसलों, मक्का, ज्वार व बाजरा की
बुआई की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है।
बुंदेलखंड और
पश्चिमी यूपी के जिलों में हालात अधिक नाजुक है। पश्चिमी जिलों में खरीफ फसलों के
आच्छादन क्षेत्र में तीस प्रतिशत से अधिक कमी आई है। बुंदेलखंड में 55,840 हेक्टयर धान रोपाई
के विपरीत साढ़े 12 हजार
हेक्टेयर में आच्छादन हो सका है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसके सिंह का कहना कि खरीफ
फसलों की बुआई का आदर्श समय 15 जुलाई तक माना जाता है।
इसके बाद बुआई में
देरी से प्रति सप्ताह उत्पादन दस से 15 फीसद घटता है। जुलाई में अपेक्षित वर्षा न
होने से उत्पादन का लक्ष्य पूरा करना मुश्किल हो गया है। इस बार प्रदेश में अब तक
सामान्य से 23 प्रतिशत
कम वर्षा हुई है। यदि अगस्त में भी इंद्रदेव की विशेष कृपा नहीं होती है तो वर्ष 2007 व 2002 के सूखे जैसी
परिस्थितियां पैदा हो सकती है।
उधर, योजना आयोग ने कहा
है कि कमजोर मॉनसून के कारण चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कम हो कर
छह प्रतिशत रहने की संभावना है। पिछले वर्ष यह दर साढ़े छह प्रतिशत थी। नई दिल्ली
में पत्रकारों से बातचीत में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोन्टेक सिंह अहलूवालिया ने
कहा कि बारहवीं पंचवर्षीय योजना-२०१२-१७ के दौरान वार्षिक औसत आर्थिक वृद्धि दर आठ
दशमलव दो प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है, जबकि नीतिगत
दस्तावेज के दृष्टिकोण पत्र में इसके नौ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
ये पूछे जाने पर कि
क्या सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिये विशेष योजनाओं की आवश्यकता है, श्री अहलूवालिया ने
कहा कि राज्य सरकारें इन मुद्दों से निपटेंगी।
उधर, तमिलनाडू से समाचार
एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से प्रीति सक्सेना ने बताया कि वर्षा की कमी के कारण
तमिलनाडु की पनबिजली इकाइयों को कठिनाई का सामना करना पड रहा है। इनकी उत्पादन
क्षमता में ३३ प्रतिशत की कमी आई है। राज्य पहले से ही बिजली की भारी किल्लत का
सामना कर रहा है।
सूत्रों ने इस बात
की पुष्टि की है कि राज्य के जलाशयों का जलस्तर कम है। पश्चिमी घाट के इलाकों में
लगभग एक दर्जन प्रमुख जलाशयों से चालू वित्त वर्ष के दौरान ५५ करोड पचास लाख यूनिट
बिजली के उत्पादन की संभावना है, जो कि इनकी क्षमता से दो प्रतिशत कम है।
इधर, केंद्र ने इस वर्ष
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत राज्यों को १८ अरब रूपये दिए हैं। कृषि
मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक दो अरब ७७ करोड
रूपये दिए गए। मध्य प्रदेश को दो अरब २७ करोड और महाराष्ट्र को एक अरब ९६ करोड
रूपये मिले। विज्ञप्ति में कहा गया है कि बेहतर परिणामों के लिए किसानों को
प्रोत्साहन के अलावा मिट्टी और जलवायु की स्थितियों के अनुरूप तकनीकी पैकेज भी
उपलब्ध कराए जाएंगे।
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