मुख्य सचिव परशुराम
के सामने खुली भ्रष्टाचार की परते
(रहीम खान)
बालाघाट (साई)।
मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव आर. परशुराम प्रदेश के पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे
एवं वन विभाग के प्रमुख सचिव देवराज बिरदी एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव
श्रीमती अरूणा शर्मा जबलपुर संभाग के आयुक्त दीपक खांडेकर, एवं अनेक वरिष्ठ
अधिकारियों के उपस्थिति में मुख्य सचिव ने बालाघाट जिले के आदिवासी बाहुल्य बैहर
तहसील के विभिन्न स्थानों का दौरा किया और वस्तुस्थिति को निकट से देखने का इस क्षेत्र
में पहली बार प्रयास किया। क्योंकि आदिवासी क्षेत्रों के लिये केन्द्र और राज्य
सरकार करोड़ों रूपये विकास कार्यो के लिये पानी की तरह बहाती है परन्तु उसके परिणाम
उस प्रकार से प्राप्त नहीं होते और आधे से ज्यादा पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर
नौकरशाहों व नेताओं की जेब में चला जाता है।
मुख्य सचिव ने यहां
जनता दरबार लगाकर आम आदमी से सीधा संवाद स्थापित करके जब हकीकत को जानने की कोशिश
किया तो भ्रष्ट नौकरशाही से प्रताड़ित जनता के लोगों ने खुलकर अपनी व्यथा बताने में
कोई कमी नहीं छोड़ी। इस अवसर पर ग्राम आमगांव के एक आदिवासी युवक ने मुख्य सचिव को
बताया कि मृत्यु प्रमाण पत्र से लेकर जन्म के पंजीयन तक सभी छोटे बड़े कामों को
करने के लिये तहसीलदार खुलकर पैसा मांगता है और यदि उसे पैसा न दिया तो वह काम ही
नहीं करता और लोगों को परेशान करता रहता है। उसने कहा कि साहब मैंने जो नये कपड़े
पहने है यह कपड़े मुझे गांव के सरपंच ने दिलाये है। आदिवासी क्षेत्र की भोली भाली
जनता को राजस्व विभाग के अधिकारी खुलकर लूट रहे है और समय पर उनका कोई काम नहीं
होता। आदिवासी युवक राजेन्द्र धुर्वे ने जब अपनी व्यथा बताना शुरू कि तो उपस्थिति
अधिकारी व जन समूह स्तब्ध रह गया उसने यह कहने से भी संकोच नहीं किया कि कलेक्टर
विवेक पोरवाल से मिलने जब उसकी आफिस में जाया जाता है तो वह सीधे मूंह बात नहीं
करते और तहसीलदार अग्रवाल महाभ्रष्ट है। केवल इस एक घटना से ही बैहर आदिवासी
क्षेत्र की स्थिति को मुख्य सचिव ने समझ लिया जिसके कारण उन्होंने तुरंत परिसिथति
को संभालते हुए सरकारी योजनाओं का गुणगान करने लगे। इस क्षेत्र में विकास कार्य की
गति धीमी है, आदिवासी
जनता को संड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा का सरकार की
अनेक जनकल्याण योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है और न ही उनकी बातों को कोई सुनने
वाला है।
0 सरपंचों से की गुप्त मंत्रणा:-
मुख्य सचिव परशुराम
ने जिले के नक्सल प्रभावित बैहर और लांजी क्षेत्रों के विभिन्न ग्रामों के सरपंचों
से बंद कमरे में बातचीत करते हुए हालातों को जानने का प्रयास किया तो वहां
सोनगुड्डा, पीतकोना
आदि ग्रामों के सरपंचों ने कहा कि जब तक इन क्षेत्रों में आवागमन के पर्याप्त साधन
उत्पन्न नहीं किये जाते, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, विघुत की
व्यवस्थाएं सरकार नहीं कर पाती तब तक इन क्षेत्रों से नक्सली प्रभाव को समाप्त
करना दिवा स्वप्न है। इन क्षेत्रों में विकास के दावे किये जाते है परन्तु
वास्तविकता के धरातल पर परिस्थितियां एकदम उलट है। अनेक गांव इन क्षेत्रों में ऐसे
है जो वर्षो ऋतु में मुख्य धारा से कट जाते है क्योंकि आवागमन के मार्ग ही नहीं
है। सरपंचों ने कहा कि केवल घोषणाओं से काम नहीं चलेगा जब तक कि कथनी और करनी में
समानता नहीं होती। इन क्षेत्रों के मजदूरों को अपना भुगतान के लिये लंबी दूरी तय
करना पड़ता है। जिसमें उनके आने जाने में ही बहुत पैसा खर्च हो जाता है इसलिये
आवश्यक है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में उन स्थानों में बैंक की स्थापना की जाय
जहां आने जाने में ज्यादा व्यय न आता हो। पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने भी यहां
पुलिस अधिकारियों एवं आमजनता से भेंट करके नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पुलिस
कार्यप्रणाली पर संतोष जाहिर किया और जनता की ओर से भी पुलिस की वर्किग को लेकर
कोई बड़ी शिकवा शिकायत यहां देखने में नहीं आई।
0 क्या करेगें परशुराम:-
बहरहाल मध्यप्रदेश
के मुख्य सचिव इतिहास में पहली बार जिले की बैहर आदिवासी तहसील में अपने
अधिकारियों के लश्कर के साथ पहुंचे थे। उन्होंने लोगों से सीधे रूबरू होते हुए
समस्याओं को भी समझने का प्रयास किया। प्रश्न यह उठता है कि उनके सामने जिन
समस्याओं को रखा गया और उस पर उन्होने उनके समाधान के जो आश्वासन दिये है क्या यह
कार्य वास्तविक रूप से हो पाऐगे कि आगे बढ़ते हुए समय के साथ उनका यह भ्रमण भी एक
औपचारिक भ्रमण बन कर रह जायेगा। इस क्षेत्र के भ्रमण से जिले के कलेक्टर की
कार्यप्रणाली एवं उनके अधिनस्थ कार्य करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली और
जनता की समस्या को उन्होंने निकट से देखा है। प्रश्न यहीं है कि क्या कुछ हो पाएगा
?
0 नदारत रहे जन प्रतिनिधि:-
यह दुर्भाग्य की
बात है कि बालाघाट जिले के आदिवासी क्षेत्र में मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अपने
अधिकारियों लश्कर के साथ भ्रमण पर आये थे परन्तु क्या कांग्रेस या क्या भाजपा या
अन्य राजनीतिक दल किसी ने भी यह प्रयास नहीं किया कि वह मुख्य सचिव से सीधे भेंट
करके उनके सामने क्षेत्रीय समस्या को रखते और बातते कि किस प्रकार से सरकार घोषणा
करती है परनतु उस पर अमल कुछ भी नहीं हो पाता। विशेष कर प्रमुख विपक्षी दल
कांग्रेस के नेताओं का कुंभकर्ण की नींद में सोना उनकी उदासीन और लचर कार्यप्रणाली
को ही दर्शाता है। जो लोग आदिवासियों के नाम राजनीति करने का दंभ भरते है परन्तु
जब आदिवासियों की समस्याओं का उठाने का कोई सार्थक मंच मिलता है तो यह नेता वहां
से नदारत रहते है। इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति के आगमन पर किसी भी राजनीतिक दल के
जनप्रतिनिधि द्वारा उनसे भेंट न करना चर्चा का विषय रहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें