मछली पालन बना
फायदे का सौदा
(एस.के.खरे)
सिवनी (साई)। कहते
हैं कि दुनिया में कोई भी कुछ सीखकर नहीं आता, दुनिया खुद ही सब
कुछ सिखा देती है,
और ये बात केवल दुनियादारी पर ही नहीं, कमाने-खाने की
कारीगरी पर भी लागू होती है। कुछ ऐसा ही सिवनी जिले के केवलारी ब्लॉक की मछुआ
सहकारी समिति रूमाल से जुडे मछुआरों के साथ हुआ।
इस समिति को जिला
पंचायत सिवनी के माध्यम से ११३ हैक्टेयर रकबे का रूमाल ङ्क्षसचाई जलाशय मछली पालने
के लिये १० वर्षीय पट्टे पर मिला है। समिति से जुडे मछुआरे मछली बीज संचय के लिये
शासकीय मत्स्य बीज प्रक्षेत्रों से ङ्क्षफगरङ्क्षलग खरीद कर इस जलाशय में डालते थे, जिससे उन्हें काफी
बडी राशि खर्च करनी पडती थी। ये समिति मछली बेचकर वैसा मुनाफा नहीं कमा पा रही थी, जैसी उनकी उम्मीद
और लालसा थी। कम मछली उत्पादन से मछुआरे बेहद परेशान और हताश भी थे। पर अब ऐसा
बिल्कुल नहीं रहा।
इस मछुआ समिति ने
हाल ही में स्वंय मत्स्य बीज उत्पादन और संवर्धन का कार्य सीखकर खुद ही मत्स्य बीज
(ङ्क्षफगरङ्क्षलग) का उत्पादन किया और उत्पादित मछली बेचकर करीब ५० हजार रूपये का
शुद्व मुनाफा कमाया,
साथ ही अश्छे किस्म का नया मछली बीज भी पैदा किया है।
ये मछुआ समिति
हताशा से भरे उस पुराने दौर से नई उम्मीदों और उमंग से भरे इस नये दौर में यूं ही
नहीं पहुंची। समिति ने कडी मेहनत व प्रशिक्षण से ये मुकाम हासिल किया है। मछुआ
सहकारी समिति रूमाल के अध्यक्ष श्री किसनलाल ङ्क्षसगराहा ने बताया कि हताशा के उस
दौर में उन्हें मछली पालन विभाग की आत्मा योजना में मछुआ प्रशिक्षण कार्यक्रम का
बडा सहारा मिला। वे बताते हैं कि कम उत्पादन से परेशान होकर हम सभी मछली पालन
विभाग के अधिकारियों से मिले। अधिकारियों ने मछुआरों की समस्या सुनकर समिति के सभी
सदस्यों को प्रदेश के बाहर खुरेलाभाटा, जिला दुर्ग (छत्तीसगढ) एवं प्रदेश के अंदर
एशिया के सबसे बडे मत्स्य बीज प्रक्षेत्र पौण्डी, मैहर (जिला सतना)
में प्रशिक्षण दिलाया गया। जिससे सभी मछुआरों को मछली पालने का खासा अनुभव प्राप्त
हुआ। हम सब ने अश्छी प्रजाति का मछली बीज स्वंय पैदा करना शुरू कर दिया। हमारी
मेहनत रंग लाई, उत्पादन
बढा तो मुनाफा भी बढा। अब हमारी समिति गांव से लगे दूसरे गांव के मछुआरों को भी
प्रशिक्षण देती है और मछली बीज के संवर्धन का कार्य भी करती है। मछली बीज के
संवर्धन कार्य से क्षेत्र के लगभग ३० मछुआरों को रोजगार मिल रहा है और हमारी समिति
से जुडे मछुआरे अब केवल स्पान लाकर स्वंय की नर्सरी में मत्स्य बीज संवर्धन कर
तालाबों में बीज संचयन का कार्य कर रहे हैं। जिससे हर मछुआरे को ५ से १० हजार
रूपये तक की अतिरिक्त आमदनी हो रही है। मत्स्योद्योग विभाग के उपसंचालक श्री रवि
गजभिये बताते है कि मछली पालने का आधुनिक प्रशिक्षण पाकर मछुआरों में निरूसंदेह
दक्षता संवर्धन हुआ है। जिला आत्मा परियोजना के माध्यम से इस वर्ष बीस मछुआरों को
प्रशिक्षण दिलाया गया है। उन्होंने बताया कि स्पान उत्पादन के क्षेत्र में सिवनी
जिले का पूरे प्रदेश में दूसरा स्थान है।
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