कमल नाथ को सलाम
करते हैं कमल वाले भी
(रहीम खान)
बालाघाट (साई)।
मध्य प्रदेश के भीतर 29 लोकसभा सीट में अपनी अलग पहचान और महत्व रखने वाली महाकौशल
क्षेत्र का महत्वपूर्ण अंग कहे जाने वाली छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को सियासी गलियारें
में कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। क्योकि अब तक संपन्न चुनाव में यहां पर एक बार ही
कांग्रेस को उपचुनाव 1997 में पराजय का सामना करना पड़ा है। अन्यथा शेष समय यहां
कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। जिले के सांसद एवं केन्द्रीय संसदीय एवं अन्य विभागों
के मंत्री कमलनाथ की पहचान कांग्रेस के गलियारें में एक रिकार्ड मेकर एवं किंग
मेकर सांसद के रुप में होती है। क्योकिं कमलनाथ वर्ष 1980 से महाकौशल क्षेत्र के
अंतर्गत एक मात्र अकेले ऐसे नेता है जो लगातार चुनाव लड़ते आ रहे है और जीत भी
बराबर दर्ज करा रहे है। इस प्रकार का राजनितिक विजय श्री कीर्तिमान इस क्षेत्र में
कोई अन्य सांसद नही बना पाया। म.प्र. में अतित में 1993 से 2003 तक कांग्रेस शासन
काल में मुख्यमंत्री चयन में पार्टी के भीतर कमलनाथ ने जो भूमिका निभाई उस आधार पर
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन्हे किंग मेकर की संज्ञा देने में भी कोई कमी नही
छोड़ी। केन्द्र मे वह वन एवं पर्यावरण उद्योग सड़क परिवहन जैसे महत्वपूर्ण विभाग के
मंत्री रुप में अपनी सेवायें दे चुके है।
कमलनाथ एक स्थापित
उद्योगपति परिवार से होने के साथ - साथ जब उन्हे 1980 में तत्कालिन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी ने छिंदवाड़ा में अपनी तीसरे पुत्र के रुप में प्रोजेक्ट करके चुनावी
मैदान में उतारा तो उन्हे अपनी जीत हासिल करने में कोई मुश्किल नही गई और उसके बाद
गांधी परिवार से करीबी रिश्ते और छिंदवाड़े की बंजर राजनितिक भूमि पर अपने प्रभाव
की फसल उगाकर इस जिले को अपनी राजनितिक कर्मभूमि बनाने में उन्होने जिस योजना बद्ध
तरह से कार्य किया उसका असर है कि आज छिंदवाड़ा और कमलनाथ दोनों एक - दूसरे के पूर्वक बन गये। कमलनाथ की ताम झाम और ग्लेमर
से भरी राजनितिक कार्य शैली के कारण छिंदवाड़ा आज देश के राजनितिक नक्षे पर अपना
अलग महत्व रखता है। उनके नेतृत्व में आदिवासी बाहुल जिला प्रगति एवं विकास के
क्षेत्र में भी अपना अलग महत्व रखने लगा।
महाकौशल क्षेत्र के
अंतर्गत आने वाले प्रमुख जिले बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, मंडला, जबलपुर, बैतुल, दमोह, कटनी,, शहडोल, होंशगाबाद आदि के
लोकसभा चुनाव इतिहास पर नजर दौड़ायी जाये तो हम पाते है कि कमलनाथ ही अकेले ऐसे
सांसद है जो लगातार 30 वर्ष से अधिक समय से चुनाव लड़कर अत्यधिक बार जीत हासिल करने
का श्रेय प्राप्त कर चुके है। वर्ष 1980 में कमलनाथ (1,47,779) ने अपने
प्रतिद्वंदी श्री प्रतुलचंद द्विवेदी (77,648 मत) को 70,131 मतों से पराजित किया।
वर्ष 1984 में प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी के हत्या से उपजी सहानुभूति लहर
का लाभ कमलनाथ (2,34,846 मत) को भी मिला और इन्होन भाजपा के श्री रामकिषन बत्रा
(81,021मत) को 1,53,400 मतों से पराजित किया। वर्ष 1989 में देष में चली सत्ता
परिवर्तन की लहर के बाद कमलनाथ (2,11,695 मत) को कड़े संघर्श में 40,104 मत में
पराजित कर जीत की हैट्रिक बनाया। वर्ष 1991 में इन्होने (2,14,456 मत) ने भजपा के
चौधरी चन्द्रभान सिंह (1,34,824 मत) को 79,632 मत से पराजित किया। वर्ष 1996 में
हवालाकाण्ड में नाम आने के कारण कमलनाथ को टिकट से वंचित होना पड़ा। उनकी जगह उनकी
धर्मपत्नि श्रीमति अलका नाथ (2,81,414 मत) को प्रत्याषी बनाया गया, जहां उन्होने भाजपा
के श्री चौधरी चन्द्रभान सिंह (2,60,032 मत) को कड़े संघर्श के बाद 21,382 मत से
पराजित किया।
वर्ष 1997 में
श्रीमति नाथ के स्तीफा देने के कारण हुए उप चुनाव में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री
श्री सुन्रलाल पटवा (3,34,302 मत) ने यहां कांग्रेस के अपराजित रहने के रिकार्ड को
तोड़ने हुए कांग्रेस के कमलनाथ (3,06,662 मत) को 37,680 मतों से पराजित कर कांग्रेस
के गढ़ में भाजपा का परचम लहराया। वर्ष 1998 में कमलनाथ (4,04,249 मत) ने भाजपा के
सुन्दरलाल पटवा (2,52,848 मत) को 1,53,398 मतों से पराजित कर अपने वापसी का जष्न
मनाया। जबकि सन् 1999 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के खिलाफ भाजपा ने स्थानीय
उम्मीदवार संतोश जैन को उतारा जो बूरी तरह परजित हुए। इस चुनाव में कमलनाथ
3,99,904 मत ने भाजपा के संशोश जैन 2,10,976 मतों को 1,88,928 मतों से पराजित
किया। वहीं 2004 के चुनाव में कमलनाथ को भाजपा के महाकौषल क्षेत्र के प्रभावषाली
नेता एवं केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कड़ी चुनौती दिया। परंतु यहां भी
जीत नाथ के खाते में गई। इस चुनाव में 3,08,443 मतों ने प्रहलाद सिंह पटेल
2,44,694 मत को 63,749 मतों से पराजित किया। यह चुनाव गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के
मनमोहन षाह भट्टी 85,328 मत के कारण रोचक बन गया। वर्ष 2003 के लोकसभा चुनाव में
छिंदवाड़ा में सभी आठ विधानसभा सीटों में भाजपा ने जीत प्राप्त किया था। परंतु लोकसभा
में कांग्रेस की जीत हुई। और वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में इस जिले की चार पर
भाजपा एवं तीन सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। 7 सीटों पर कांग्रेस को कुल 3,08,659
मत एवं भाजपा को 3,12,283 मत प्राप्त हुए। इस तरह से दोनो के बीच 3,624 मतों का
अंतर है। किन्तु वर्तमान लोकसभा चुनाव 2009 में इस सीट पर कमलनाथ के खिलाफ भाजपा
के पाण्डुरना क्षेत्र के विधायक मारुति राव खवसे को चुनावी मैदान में उतारा हैं जो
अपेक्षाकृत कमजोर उम्मीदवार माने जाते है। इसलिए राजनिति के गलियारे में अनुमान
लगाया जा रहा है कमलनाथ अपनी 9वीं जीत नौवां सीट पर सहजता के साथ प्राप्त करके एक
अदभुत चुनाव रिकार्ड बनाया। इस चुनाव में कमलनाथ ने 4 लाख 9 हजार 736 मत प्रापत
किये जबकि भाजपा के मारोत राव खवसे 2,88,516 मत ही प्राप्त कर पाये। इस प्रकार से
कमलनाथ नें इस चुनाव में एक बार फिर अपनी काबलियत का लोहा मनवाते हुये 9 वीं बार
संसद में पहुंचने का गौरव प्राप्त किया। साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मंत्रीमंडल
पहले भू-तल सड़क परिवहन मंत्री फिर षहरी विकास मंत्री और अब केन्द्रीय संसदीय
मंत्री रुप में अपनी भूमिका का निर्वाहन कर रहे है। थ्क्प् मुद्दे पर संसद के भीतर
सपा और बसपा का समर्थन प्राप्त कर इस बिल को पास कराने के पीछे कमलनाथ और उनके
सहयोगियों के कुषल राजनितिक प्रबंधक को इसका श्रेय दिया जा रहा है। हमेषा विवादों
से बचकर चलते हुये एक निर्धारित सीमा के अंतर्गत कार्य करने वाले कमलनाथ का नाम
अनेक बार म.प्र. के मुख्यमंत्री के रुप में कांग्रेस के तरफ से सामने आता है।
परंतु केन्द्रीय राजनिति में सक्रिय रहने वाले कमलनाथ प्रदेष की राजनिति में रखते
है जितनी एक बड़े नेता को होनी चाहिए। परंतु वह अपने समर्थकों को कही न कही अवष्य
ही स्थान दिलाते है पिछले 10 सालों से म.प्र. की सत्ता से कांग्रेस बहार है और इस
साल प्रदेष में विधानसभा चुनाव होना है तब उनकी जिम्मेदारी भी इस बात को लेकर बढ़
गई है कि किस प्रकार से वापस लाया जाये। इसी तरह के अनेक सवालों के जवाब इस वक्त
भविश्य के गर्भ में छुपे है। जिनके उत्तर के लिये प्रतिक्षा करना होगा। परंतु
कमलनाथ इस बात को बेहतर समझते है जब तक कांग्रेस के बड़े नेताओं में एकता का
सामजस्य सिापित नही होता प्रदेष में तब तक कांग्रेस की वापसी एक दिवा स्पन है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें