शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

क्या जितेंद्र सिंह ठोंक पाएंगे ताल!


क्या जितेंद्र सिंह ठोंक पाएंगे ताल!

(लिमटी खरे)

मल्ल युद्ध का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। ताल ठोंककर जब पहलवान एक दूसरे को ललकारते हैं तब दर्शकों का रोमांच बढ़ जाता है। आदि अनादि काल से मल्ल यानी कुश्ती का खेल बड़ा लोकप्रिय रहा है। कालांतर में नई पीढ़ी ने अब इस ओर ज्यादा ध्यान देना बंद कर दिया है। सरकारों द्वारा भी कुश्ती या मल्ल विद्या को बढ़ावा देने में कोताही ही बरती है। कुश्ती के गुरू या अखाड़ों की अपनी धाक हुआ करती थी। पहलवानों को इस विद्या में पारंगत करने के लिए गुरू एड़ी चोटी एक कर देते थे। देश विदेश में अनेक जगहों पर अखाड़ों में चौबीसों घंटे पहलवानों को तैयार करने का काम किया जाता रहा है। रूपहले पर्दे पर भी कुश्ती को लेकर अनेक फिल्मों में प्रसंगों की भरमार है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के बीतने के साथ ही अब लगने लगा है मानो कुश्ती पर संकट के बादल तेजी से घिर रहे हैं और इस पारंपरिक खेल को लोग जल्द ही भूलने वाले हैं।

अंतर्राष्ट्रीय आलंपिक समिति की कार्यकारी बोर्ड ने वर्ष 2020 में होने वाले आलंपिक में कुश्ती सहित कुछ अन्य खेलों को विदा करने की सिफारिश की है। 25 नए खेलो को ऑलंपिक में शामिल करने के लिए आईओसी ने कुश्ती सहित कुछ अन्य खेलों को इससे हटाने की सिफारिश कर सभी को चौंका दिया है। यह बात सितम्बर में आहूत आईओसी के 125वें सत्र में समिति के समक्ष रखी जाएगी।
बेसबाल, कराते, साफ्टबाल, स्पोर्टर्स क्लाईंबिंग, रोलर स्केट्स, स्क्वैश, वुशु, बेकवोर्डिंग जैसे खेल भी कुश्ती के साथ बाहर का रास्ता पा सकते हैं। कुश्ती आज का खेल नहीं है जो ऑलंपिक में खेला जा रहा हो। इस प्रतिस्पर्धा को तो 1896 के एथेंस ऑलंपिक से खेला जा रहा है। अगर 2020 के ऑलंपिक में इसे बाहर कर दिया जाता है तो सबसे बड़ा धक्का भारत गणराज्य के पहलवानों को ही लगने वाला है।
कुश्ती का अपना गौरवशाली इतिहास और परंपरा रही है। इतिहास साक्षी है राजा महाराजा भी मनोरंजन के लिए ही सही मल्ल युद्ध को काफी तवज्जो दिया करते थे। अनेक प्रसंग तो इस तरह के भी आते हैं जिनमें राजा महाराजाओं द्वारा इस विधा को प्रोत्साहित करने के लिए तरह तरह के लुभावने कदम भी उठाए जाते रहे हैं। देश में रियासतों में पहलवानों की पूछ परख जमकर होती थी। सभी इनका पूरा ध्यान रखने के साथ ही साथ इन्हें अपनी रियासत की धरोहर माना करते थे।
दारा सिंह, कीकर सिंह, प्रोफेसर राममूर्ति, गामा, चंदगीराम, मेहरदीन जैसे पहलवानों ने कुश्ती को नई दिशा और मुकाम तक पहुंचाया है। रूस्तमे हिन्द, रूस्तमे जमां बनने के लिए पहलवानों द्वारा कितना कठोर परिश्रम किया जाता रहा है। समूचे भारत विशेषकर हरियाणा में कुश्ती का जुनून देखते ही बनता है। हरियाणा में आज भी अनेक अखाड़ों में उस्ताद अपने पट्ठों का तेल निकालते देखे जा सकते हैं।
आईओसी के इस निर्णय और सिफारिश से रोजाना अखाड़ों में पसीना बहा रहे पहलवानों और कुश्ती प्रेमियों पर गाज गिरी है। ऑलंपिक को कुश्ती का महाकुंभ माना जाता है, अगर इस महाकुंभ से कुश्ती को ही बाहर कर दिया गया तो भला फिर आने वाले समय में कुश्ती की ओर घट रहे आकर्षण को कैसे रोका जा सकेगा। वैसे भी अब कुश्ती के मुकाबले कम ही देखने और सुनने को मिलते हैं।
देखा जाए तो एशियाई खेलों और कामन वेल्थ आदि गेम्स की तैयारियों में जुटे पहलवानों का अंतिम लक्ष्य तो ऑलंपिक ही होता है। जो पहलवान अपना पसीना बहाते हैं वे यही उम्मीद करते हैं कि उन्हें ऑलंपिक में परफार्म करने का एक मौका अवश्य ही मिले। देश के पहलवानों के लिए ऑलंपिक बहुत मायने रखता है। सुशील कुमार ने देश का नाम रोशन किया है पहलवानी में। लंदन ऑलंपिक में 66 किलोग्राम में रजत पदक जीतकर सुशील कुमार ने लगातार दो ऑलंपिक में पदक जीतने का रिकार्ड बनाकर देश का नाम रोशन किया है।
सुशील कुमार देश में यूथ आईकान बनकर उभरे हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सुशील कुमार को देखकर गांव गांव में अब पहलवानी को लेकर जुनून पैदा होने लगा है। गांव गांव में गोदे यानी अखाड़े बनने लगे हैं, और इसकी मिट्टी को माथे और बाजुओं में लगाकर पहलवान अपनी मछलियां फड़का रहे हैं। जैसे ही यह खबर देश में फैलेगी कि ऑलंपिक से इस खेल को बाहर का रास्ता दिखाया जाना प्रस्तावित है, वैसे ही पहलवानों में निराशा की लहर दौड़ना स्वाभाविक ही होगा।
भारत गणराज्य के खेल मंत्री जितेंद्र सिंह को चाहिए कि वे कुश्ती को ऑलंपिक में बरकरार रहने के मार्ग प्रशस्त करें। इसके लिए उन्हें उन देशों का समर्थन प्राप्त करना होगा जहां कुश्ती को लोकप्रियता हासिल है। इसके लिए उन्हें विशेष प्रयास करने होंगे इसके लिए आवश्यक है कि उनके प्रयास समय सीमा में ही हो, क्योंकि सितम्बर की बैठक के बाद सांप तो निकल जाएगा खेल मंत्री लकीर ही पीटते रह जाएंगे।
वैसे इस खेल को बचाए रखने के लिए कुश्ती प्रेमियों के साथ ही साथ सरकार को एक बड़ी मुहिम चलाने की जरूरत है। सरकार को चाहिए के दुनिया भर के कुश्ती संगठनों के अलावा सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर इसको बचाने की मांग पुरजोर तरीके से उठे एसे प्रयास करे। मीडिया को भी इस बात को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने तरीके से उछालना होगा ताकि कुश्ती का शानदार और गौरवशाली इतिहास कलंकित ना हो पाए। (साई फीचर्स)

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