सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

दवाओं पर मनमानी अब नहीं चलेगी


दवाओं पर मनमानी अब नहीं चलेगी

(विम्मी अर्गल)

नई दिल्ली (साई)। डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल्स अब मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं की कीमतों पर नजर रखने के लिए और चौकसी बरतने जा रहा है। इसके लिए वह देश के विभिन्न राज्यों में नैशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के दफ्तर खोलने के लिए कमर कस रहा है। इस मामले में सिर्फ योजना आयोग की मंजूरी का इंतजार है।
इस कवायद का मकसद दवा कंपनियों द्वारा प्राइस कंट्रोल के दायरे में आने वाली दवाओं को मनमाने दामों पर बेचने से रोकना है। गौरतलब है कि दवा कंपनियां सरकार के इंतजामों को दरकिनार करते हुए पिछले साल तक उपभोक्ताओं से करीब 2577 करोड़ रुपये ज्यादा वसूल चुकी थीं और इसमें से सिर्फ 234 करोड़ रुपये की वसूली ही सरकार कर पाई है। डिपार्टमेंट इस मामले में और चौकसी इसलिए भी बरतना चाहता है क्योंकि पहले मूल्य नियंत्रण के दायरे में 74 बल्क ड्रग्स आती थीं। अब इस कैटिगरी में 348 दवाओं को शामिल कर लिया गया है। सूत्रों का कहना है कि दवाओं के दाम तय करने का फॉर्म्युला पूरी तरह से फार्मा कंपनियों की पसंद का न बनने के कारण दवाओं को मनमाने रेट्स पर बेचने का सिलसिला और तेज हो सकता है।
एनपीपीए के दफ्तर पूरे देश में खोले जाने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में भी काफी कोशिशें हुई थीं, लेकिन योजना आयोग की मंजूरी नहीं मिलने से मामला लटक गया था। आयोग ने इस बार भी इस मद में पैसा आवंटित नहीं किया है, मगर कोशिश की जा रही है कि वह इस योजना को मंजूरी दे दे। सूत्रों का कहना है कि आयोग के स्वास्थ्य मामलों के पैनल ने एनपीपीए को मजबूत बनाने के लिए जोरदार सिफारिश की थी। खुद आयोग दवाओं के बढ़ते दामों पर कई बार चिंता जता चुका है। उसका आकलन है कि दवाओं के ज्यादा रेट्स की वजह से आज देश की चार फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे चली गई है। 

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