दिग्विजय होने का
मतलब!
(लिमटी खरे)
वैसे तो दिग्विजय
स्त्रीलिंग है और इसका शाब्दिक अर्थ है संसार पर धाक जमाना। दिग्विजय का अर्थ
खंगालने पर यह प्राचीन भारतीय महाराजाओं की एक प्रथा जिसमें वे अपना पौरूष और बल
दिखाने के लिए सेना सहित निकलकर आस पास विशेषतः चारों ओर के देशों और राज्यों को
अपने अधीन करते चलते थे भी मिलता है साथ ही साथ किसी बहुत बड़े गुणी या पंडित का
दूसरे स्थानों पर आकर वहाँ के गुणियों और विद्वानों को अपनी कलाओं, गुणों आदि से
परास्त करके उन पर अपनी विशिष्टता का सिक्का जमाना भी दिग्विजय की श्रेणी में ही
आता है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव राघोगढ़ के राजा
दिग्विजय सिंह के माता पिता ने उनका नाम बहुत सोच समझकर रखा होगा। कांग्रेस में
इक्कीसवीं सदी के चाणक्य की भूमिका में दबे पांच चलने वाले कांग्रेस के महासचिव राजा
दिग्विजय सिंह इस समय सबसे ताकतवर क्षत्रप बनकर उभर चुके हैं। कांग्रेस में अघोषित
तौर पर नंबर दो वाली भूमिका में कभी सोनिया गांधी के सचिव जार्ज विसेन्ट थे तो बाद
में उनका स्थान अहमद पटेल ने ले लिया था। अब इस आसनी पर राजा दिग्विजय सिंह बैठे
दिखाई दे रहे हैं। अपने नाम के अनुरूप राजा दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में सत्ता
की धुरी अपने इर्द गिर्द ही समेट रखी है।
1993 से 2003 तक
लगातार दस साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं राजा दिग्विजय सिंह। इन दस
सालों में ना जाने कितने उतार चढ़ाव आए और ना जाने कितनी प्रतिकूल परिस्थितियां
निर्मित हुईं पर राजा दिग्विजय सिंह के चहरे की मुस्कान और उनके ठहाके बरकरार ही
रहे। सबसे बुरा समय तो तब आया था जब राजा दिग्विजय सिंह के सियासी गुरू अर्जुन
सिंह ने तिवारी कांग्रेस का गठन कर लिया था। उस वक्त राजा दिग्विजय सिंह के एक एक
कदम को उनके विरोधी हर दृष्टिकोण से नाप तौल कर उनमें कमियां निकालने का प्रयास कर
रहे थे। उस वक्त राजा दिग्विजय सिंह ने तलवार की धार पर चलकर अपनी नैया को पार
लगाया है।
कांग्रेस में आज भी
सामंतशाही की बू आती है। आजादी से आज तक कांग्रेस की नैया के खिवैया नेहरू गांधी
परिवार के लोग ही रहे हैं। बाकी सारे के सारे चरण सेवक की भूमिका में ही दिखे हैं।
अस्सी के दशक में कांग्रेस के लिए नए राजमहल के रूप में पहचाना गया था 10 जनपथ। यह
राजीव गांधी का आधिकारिक निवास हुआ करता था। राजीव गांधी के निधन के बाद इस घर में
श्रीमति सोनिया गांधी रहने लगीं।
जबसे कांग्रेस की
कमान श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों आई उसके बाद से यह राजमहल सत्ता और शक्ति का
शीर्ष केंद्र में तब्दील हो गया। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही सोनिया गांधी
राजमाता तो राहुल गांधी युवराज की भूमिका में आ गए। हाल ही में जयपुर में कथित तौर
पर चिंतन शिविर का आयोजन किया गया। इसमें राहुल गांधी को उपाध्यक्ष पद से नवाज
दिया गया। राहुल गांधी के अघोषित राजगुरू हैं राजा दिग्विजय सिंह। इस लिहाज से
राजमहल के अंदर राजा दिग्विजय सिंह के भाव अब काफी उंचे हो गए हैं।
राजा दिग्विजय सिंह
वैसे भी अपनी चालों के लिए माहिर माने जाते हैं। जब वे मध्य प्रदेश में
मुख्यमंत्री थे तब यह कहा जाता था कि राजा ने जिसके कंधे पर हाथ रख दिया उसका पतन
सुनिश्चित ही है। 2003 में कांग्रेस की सरकार ना बनने पर दस साल का सियासी बनवास
लेने की कसम उठाई राजा ने और फिर 2013 आने को है राजा ने पार्टी की सेवा की पर कोई
संवैधानिक पद नहीं लिया। लगातार दस साल तक राजा ने अपना कौल निभाया। इस साल के अंत
में राजा का वनवास खतम हो जाएगा। दस साल तक पदों की तृष्णा से दूर रहकर राजा
दिग्विजय सिंह ने अपने नाम को साकार कर ही दिया है।
जयपुर के चिंतन
शिविर में भी राजा दिग्विजय सिंह लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। राजा
के इर्द गिर्द युवा मंत्रियों सहित नेताओं की भीड़ देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था
कि लोग उनसे सलाह मशविरे के लिए किस कदर आतुर थे। राजा की इस कदर बढ़ती लोकप्रियता
से उनके घुर विरोधी समझे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, सचिन पायलट जैसे
युवा आईकान्स की पेशानी पर पसीने की बूंदे भी परिलक्षित हो रही थीं।
राजा दिग्विजय सिंह
के बढ़ते कद का ही नतीजा है कि तेलंगाना मामलों में बनी कांग्रेस की कोर कमेटी में
उन्हें विशेष तौर पर बुलाया गया था। इतना ही नहीं उन्हें सामाजिक और आर्थिक
चुनौतियों पर गठित एक विशेष और अतिमहत्वपूर्ण समूह की अगुआई का जिम्मा भी सौंपा
गया है। कांग्रेस के थिंक टैंक और संकटमोचक प्रणव मुखर्जी के रायसीना हिल्स जाने
के उपरांत राजा दिग्विजय सिंह सबसे ताकतवर क्षत्रप के बतौर उभरे हैं।
एक समय था जब 10, जनपथ पर विसेन्ट
जार्ज की तूती बोला करती थी। जार्ज के इशारों के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिलता
था। सोनिया गांधी के शुरूआती राजनैतिक अनुभवहीनता के चलते जार्ज काफी कमजोर हो गए
और उनका स्थान सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल ने ले लिया। इसी बीच युवराज तेजी
से आगे कदम बढ़ाने लगे। कहते हैं राजा ने भविष्य की आहट को समझते हुए राहुल गांधी
को अपनी उंगली पकड़ा दी और राहुल को सियासी ककहरा सिखाना आरंभ कर दिया। सोनिया तक
गुरू चेले की जुगलबंदी की खबरें पहुंची तो सोनिया काफी हद तक संतुष्ट भी नजर आईं।
राहुल भले ही बिहार,
उत्तर प्रदेश और गुजरात में करिश्मा ना दिखा पाए हों पर
उन्हें बहुत सीमित रखकर राहुल के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ा दी राजा दिग्विजय
सिंह ने।
देखा जाए तो राहुल
की ताजपोशी के राजा दिग्विजय सिंह काफी समय से प्रयासरत थे। राहुल को नेहरू गांधी
परिवार के बिल्ले के चलते तत्काल ही महासचिव बना दिया गया। कांग्रेस के अंदर यह
चर्चा तेज है कि राहुल की योग्यता महासचिव लायक नहीं थी फिर भी उन्हें योग्य
नेताओं के उपर लाद दिया गया है। राहुल गांधी अगर महासचिव से उपाध्यक्ष बन पाए हैं
तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ राजा दिग्विजय सिंह को ही जाता है।
सुनियोजित तरीके से
पार्टी के अंदर राहुल गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष या सकेरेटरी जनरल बनाने की बात
छोड़ी गई ताकि पार्टी का रूख भांपा जा सके। कहते हैं पार्टी के अनेक नेताओं ने साफ
तौर पर कह दिया कि कार्यकारी अध्यक्ष विशेष परिस्थितियों में ही बनाया जा सकता है।
ज्ञातव्य है कि श्रीमति इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय कार्यकारी अध्यक्ष
इसलिए बनाए गए थे क्योंकि उस वक्त प्रधानमंत्री के साथ ये दोहरी जवाबदेही नहीं
संभाल सकते थे। रही बात सेकरेटरी जनरल की तो इस मामले में भी मतभिन्नता ही सामने
आई।
कांग्रेस के
अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो अंततः राजा
दिग्विजय सिंह ने अपनी अंतिम चाल को चला और जयपुर के चिंतन शिविर में राहुल गांधी
की ताजपोशी करवा ही दी। इस चिंतन शिविर में राजा दिग्विजय सिंह एक जगह कांग्रेस
अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के गले में हाथ डाले नजर आए (फोटो देखें) बस लोगों
को लगा कि अब अहमद पटेल की बिदाई की डुगडुगी बजने ही वाली है। वैसे राजा दिग्विजय
सिंह ने अपना यह दांव चलकर एक तरह से खुद की जीत और पुराने कांग्रेसी नेतृत्व को
चारों खाने चित्त कर पटखनी दे ही दी है। (साई फीचर्स)
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