बुधवार, 20 मार्च 2013

सिवनी : संयंत्र प्रबंधन की ना पर पीसीबी की हां!


0 रिजर्व फारेस्ट में कैसे बन रहा पावर प्लांट . . . 19

संयंत्र प्रबंधन की ना पर पीसीबी की हां!

(एस.के.खरे)

सिवनी (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा देश के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में लगाए जा रहे 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में कंपनी की पगार कौन ले रहा है इस बात को लेकर संशय बना ही हुआ है। संयंत्र प्रबंधन द्वारा प्रदूषण रोकने और पर्यावरण को बनाए रखने के मसले पर कहा जाता है कि उनके द्वारा वृक्षारोपण अब तक नहीं किया गया, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल का कहना है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा पिछले तीन सालों में साईट पर कोई वृक्षारोपण नहीं किया गया है।
ज्ञातव्य है कि मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसौर के बरेला ग्राम में 600 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट के लिए लोकसुनवाई के दौरान ही पर्यावरण से बचाव के लिए वृक्षारोपण करने का संकल्प लिया गया था। इसके उपरांत 22 नवंबर 2011 को हुई इसके दूसरे चरण (600 या 660 मेगावाट कुल मिलाकर 1200 या 1260 मेगावाट स्पष्ट नहीं) की लोकसुनवाई में संयंत्र के महाप्रबंधक मिश्रा ने साफ तौर पर स्वीकार किया था कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा 22 नवंबर 2011 तक कोई वृक्षारोपण नहीं करवाया गया था।
इसके उपरांत जब इस संबंध में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के प्रभारी बुन्देला से चर्चा की गई तो उन्होंने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि संयंत्र प्रबंधन ने वृक्षारोपण करवाया था। बकौल बुन्देला, वे इस बात की तसदीक करके बताएंगे कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा कराए गए वृक्षारोपण में से कितने वृक्ष अब तक बचे हुए हैं। वस्तुतः जब संयंत्र प्रबंधन स्वयं ही स्वीकार कर रहा है कि उसके द्वारा वृक्षारोपण नहीं कराया गया से साफ हो जाता है कि मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के प्रभारी बुन्देला किसी कारण विशेष के चलते ही संयंत्र प्रबंधन का पक्ष ले रहे हैं।
श्री बुंदेला ने साई न्यूज से चर्चा के दौरान कहा कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा पिछली बरसात में वृक्षारोपण करवाया था। जब उनके संज्ञान में संयंत्र प्रबंधन मिश्रा की नकारोक्ति लाई गई तो उन्होंने कहा कि पता नहीं क्या बात है पर हम दावे के साथ कह सकते हैं कि वृक्षारोपण पिछली बरसात में कराया गया था। अब शोध इस बात पर किया जाना चाहिए कि आखिर मध्य प्रदेश सरकार से कौन पगार ले रहा है और गौतम थापर की जेब से किसकी पगार निकाली जा रही है।
एक तरफ तो संयंत्र के महाप्रबंधक मिश्रा द्वारा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड से पगार लेकर वास्तविकता सामने लाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के प्रभारी बुंदेला द्वारा मध्य प्रदेश सरकार से तनख्वाह लेकर बिना मौका मुआयना किए हुए ही पता नहीं किस दबावमें संयंत्र का पक्ष आंख बंद कर लिया जा रहा है।
2009 से संयंत्र की स्थापना आरंभ हो चुकी है। इसके उपरांत दिसंबर 2011 तक की अवधि में वाहनों की आवाजाही आदि से पर्यावरण का जो नुकसान हुआ है उसका भोगमान कौन भोगेगा इस बारे में भी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल खामोशी ही अख्तिायार किए हुए है। अब वृक्षारोपण होने पर संयंत्र के आरंभ होने तक पौधे पेड़ का रूप धारण नहीं कर पाएंगे जिससे पर्यावरण का असंतुलन बरकरार रहने की ही उम्मीद है।

(क्रमशः जारी)

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