क्या संदेश दिया बापू आपने!
(लिमटी खरे)
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून!
पानी बिना ना उबरे, मोती मानस चून!!
बचपन में कोर्स की किताबों में अब्दुल
रहीम खानोखाना के ये दोहे दिल दिमाग पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं। यहीं से पानी का
महत्व समझ में आया, और पानी को सहेजने के प्रति संजीदा हुए हैं लोग। आने वाले दिनों में
पानी के लिए मारामारी हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पानी के अभाव में ही
महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या पर आमदा हैं, उसी सूबे में कथित आध्यात्मिक संत
आसाराम बापू पानी खरीदकर भक्तों के साथ होली खेल रहे हैं। इसे पैसे और पानी की
बरबादी नहीं तो और क्या कहा जाएगा? बेहतर होता पानी खरीदकर होली खेलने के
बजाए आसाराम बापू तिलक होली खेलते और जो धन उन्होंने पानी खरीदने में व्यर्थ
गंवाया उससे दरिद्र नारायण के लिए भोजन की व्यवस्था करते।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक और इक्कीसवीं
सदी में भारत गणराज्य में धर्म का धंधा जमकर फल फूल रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया
में समाचार चेनल्स ने देशवासियों की आस्था को जमकर दुहा है। अपने मंहगे टाईम स्लाट
अघोषित तौर पर बेचकर धार्मिक भावनाएं उकेरकर कथित संतों ने जमकर लूटा है
देशवासियों को। कभी योग तो कभी आध्यात्म तो कभी रसगुल्ले समोसे और काल्पनिक तौर पर
दिखने वाली चीजों के जरिए संतो ने जमकर कृपा बरसाई है।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में एकाएक
धूमकेतु की तरह आध्यात्म के आकाश में छाने वाले आसाराम बापू की कीर्ति जमकर फैली।
इसी दौरान एक मर्तबा लोकसभा चुनाव के दरम्यान उनका सानिध्य पाने का अवसर मिला।
कांग्रेस के नेताजी ने उन्हें चुनाव के चलते ही प्रवचनों के लिए बुला भेजा। वे आए
तो भाजपा के नेताजी ने उन्हें झेल लिया। बस फिर क्या था, बापू पशोपेश में कि किसका साथ दें और
भक्तों को किसके पक्ष में मतदान के लिए संदेश दें। अंततः उन्होंने कांग्रेस भाजपा
दोनों ही के नेताजी को एक साथ मंच पर बुलाकर आर्शीवाद दे डाला।
आसाराम बापू की कीर्ति फैली तो उनसे
रश्क करने वालों की तादाद भी दिनोंदिन बढ़ी। आसाराम बापू धीरे धीरे विवादों में
घिरते चले गए। बापू के आश्रम में बच्चों की मौत को मीडिया ने जमकर उछाला। बापू का
जवाब देना मुश्किल हो गया। कहते हैं बापू बहुत ही शार्ट टेम्पर्ड हैं, अर्थात उन्हें गुस्सा जल्दी आता है। कई
बार मीडिया से उनकी तू तू मैं मैं हो चुकी है।
पिछले दिनों महाराष्ट्र की संस्कारधानी
नागपुर में आसाराम बापू ने जो किया वह निश्चित तौर पर किसी भी दृष्टिकोण से उचित
नहीं माना जा सकता है। बापू ने हजारों लिटर पानी खरीदकर उसमें रंग घोला और फिर
अपने भक्तों को प्रेशर पंप के माध्यम से सराबोर कर दिया। बापू के भक्त अपने आप को
धन्य समझ रहे होंगे कि उन्हें उनके आध्यात्म गुरू के हाथों से रंग की फुहार मिल
रही है।
आसाराम बापू को यह अवश्य ही मालुम होगा
के महाराष्ट्र इस समय सूखे की चपेट में बुरी तरह उलझा कराह रहा है। इस सूबे में
विशेषकर विदर्भ में किसान अत्महत्या कर रहे हैं। मीडिया में इस बात को जमकर उछाला
जा रहा है कि राज्य में पिछले चार दशकों यानी चालीस साल का यह सबसे बड़ा सूखा है।
किसानों में हाहाकार मचा है, सूखें की मार मराठवाड़ा और विदर्भ को
अपने आगोश में लिए हुए है।
सूखे की मार ने किसानों को इस कदर झुलसा
दिया है कि किसान अपना परिवार पालने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो रहा है। कहते
हैं यहां की बालाओं को 12 से 15 हजार में बेचा जा रहा है। ये अबला बच्चियां कहां जा रही हैं, इनके साथ क्या सलूक किया जा रहा है यह
बात किसी को नहीं पता है। मजे की बात तो यह है कि देश के कृषि मंत्री की आसनी इसी
सूबे से आने वाले मराठा क्षत्रप शरद पवार को सौंपी गई है।
1972 के उपरांत का यह सबसे बड़ा सूखा है। 1972 के उपरांत शरद पवार भी इस सूबे के
निजाम रह चुके हैं। विडम्बना देखिए कि पंवार के साथ ही साथ अन्य निजामों ने भी
राज्य में जल संरक्षण की दिशा में कोई पहल नहीं की है, जिसका नतीजा आज राज्य में अधिकांश कुंए
बावली, नदी नालों का सूख जाना है। सूबे के डेढ़ दर्जन जिले सूखे की चपेट में
हैं। अनेक जगहों पर जमीन बंजर हो चुकी है, महाराष्ट्र का नजारा रेगिस्तान सा
प्रतीत हो रहा है।
राज्यों के निजाम अपनी रियाया के प्रति
कितने चिंतित हैं इसका उदहारण कांग्रेस शासित महाराष्ट्र से ही मिल जाता है। राज्य
में सूखे ने कोहराम मचा रखा है पर राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण नीरो के
मानिंद बंसी बजा रहे थे। जब मीडिया ने इस बात को उछाला तब उनकी तंद्रा टूटी।
किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राज्य में 35 पैसे लीटर पानी (बिना फिल्टर किए हुए)
बिक रहा है। पानी की कालाबाजारी जोरों पर है। गरीब किसान पानी कैसे खरीदेगा?
अब तो भारत देश का आम आदमी भी कहने लगा
है कि तानसेन की तान मेघ मल्हार से मेघ बरस जाते थे, तब इस भारत देश में आध्यात्मिक गुरू ने
पानी खरीदकर होली खेलने के बजाए पानी के लिए यज्ञ किया होता तो कहीं अधिक पुण्य
मिला होता। पानी खरीदकर भक्तों को रंगों से सराबोर कर आसाराम बापू पता नहीं क्या
संदेश देना चाह रहे थे, किन्तु उनके इस पानी की बरबादी के कदम का शायद ही कोई स्वागत करे।
राज्य सरकार ने आसाराम बापू को पानी
देने से इंकार कर दिया था, बावजूद इसके नगर पालिका निगम के एक उपयंत्री ने बापू को टेंकर भिजवा
दिए। प्रशासन ने उस डिप्टी इंजीनियर को निलंबित कर दिया है। सरकार के इस कदम का
स्वागत किया जाना चाहिए कि स्थानीय शासन निकाय विभाग ने बापू पर पानी की बरबादी के
लिए 9 हजार 367 रूपए का जुर्माना ठोंका है। सवाल नौ हजार का नहीं, जुर्माना एक रूपए का भी हुआ है तो यही
माना जाएगा कि आपका कदम अनुचित ही था।
धर्म और आस्था को दुकान की शक्ल देने
वाले इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू आध्यात्म, धर्म, योग गुरूओं को इससे सबक लेना चाहिए कि
वे अपने अनगिनत अनुयाईयों द्वारा की जाने वाली जयजयकार से मदमस्त हाथी ना बनें।
उनका आचार विचार आचरण लोगों के लिए मायने रखता है। लोग अपने गुरूओं को अपना अगुआ
मानते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, इसलिए अगर आप अपने आप को संत की श्रेणी
में रखते हैं तो आपको बेहद संयमित रहकर जीना अनिवार्य है। (साई फीचर्स)
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