कमल के गढ़ में खिला
कमल
(नन्द किशोर)
भोपाल (साई)। नगरीय
निकाय चुनावों में इस बार भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है। 2003 के बाद लगातार
रसातल में जाती कांग्रेस के बारे में कहा जाने लगा है कि अब देश का हृदय प्रदेश भी
गुजरात और उत्तर प्रदेश की तरह कांग्रेस के हाथों से फिसलता जा रहा है। इस बार
आदिवासी बाहुल्य जिलों में पंजे के बजाए कमल खिलने से माना जा रहा है कि कांग्रेस
का परंपरागत आदिवासी वोट बैंक के किले में अब सेंध लग चुकी है।
आदिवासी बहुल जिलों
के नगरीय निकाय चुनाव अगर 2013 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जाएं
तो कई गुटों में बंटी कांग्रेस के लिए यह बड़ी चेतावनी है। इन चुनावों के पहले चरण
के नतीजों में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा उनके प्रभाव वाले
मण्डला, बालाघाट और
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के झाबुआ में फतह का परचम लहरा दिया है।
आलम यह रहा कि जिस
वार्ड में भूरिया का घर है, वहां कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हो
गई है। 15 जिलों के 49 निकायों में से
पहले चरण के 27 निकायों
के चुनाव नतीजे सोमवार को आए। इनमें 20 निकायों में भाजपा के अध्यक्ष चुने गए हैं, जबकि कांग्रेस के
सिर्फ तीन नगर पालिका अध्यक्ष जीते हैं। चार पर निर्दलीय उम्मीदवारों को भी जीत
मिली है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के जिले में झाबुआ नगरपालिका में भाजपा के
अध्यक्ष सहित 18 में से 11 पार्षद जीते हैं।
जबकि कांग्रेस के सिर्फ तीन ही पार्षद जीत सके।
भूरिया के गृह
वार्ड में भाजपा के विशाल भट्ट ने कांग्रेस के दिनेश जैन को 121 वोटों से हराकर
जमानत जब्त करा दी। जिले की रानापुर नगर परिषद में अध्यक्ष पद पर जरूर कांग्रेस
प्रत्तियाशी की जीत हुई है लेकिन 15 में से 10 पार्षद भाजपा के
जीते हैं। यहां वार्ड तीन में भाजपा प्रत्तियाशी कन्हैया प्रजापति ने कांग्रेस
प्रत्तियाशी अपने पिता देवेंद्र प्रजापति को हराया। दूसरी तरफ पूर्व नेता
प्रतिपक्ष स्वर्गीय जमुना देवी के गढ़ रहे कुक्षी नगर परिषद अध्यक्ष पद और 15 में से 9 वार्डाे में
कांग्रेस की जीत हुई है।
भूरिया को प्रदेश
कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने आदिवासी कार्ड खेला था लेकिन आदिवासी
क्षेत्रों के चुनाव नतीजों से लग रहा है कि यह दांव चल नहीं पाया है। गौरतलब है कि
भूरिया के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी जबेरा और महेश्वर विधानसभा उपचुनाव में
शिकस्त खा चुकी है।
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