कब मिलेंगी सस्ती
दवाएं
(महेश रावलानी)
नई दिल्ली (साई)।
आम आदमी को इलाज के लिए वाजिब दवाएं मिल सकें, इनके साइड इफेक्ट्स
से वह बच सके और उसकी जेब पर भी गैर जरूरी भार न पड़े, इसके लिए सरकार ने
नई नैशनल फॉरमुलरी जारी की है। हालांकि हैरानी की बात यह है कि जनता की सेहत की
फिक्र करने का दावा करने वाली सरकार को पूरे 33 साल बाद नैशनल फॉरमुलरी ऑफ इंडिया
(एनएफआई) का चौथा एडिशन लाने की याद आई है। इससे पहले इसे 1979 में जारी किया गया
था।
फॉरमुलरी असल में
जेनरिक और पेटेंटेड दवाओं की सूची होती है और यह इलाज की गाइडलाइंस को स्पष्ट करती
है। इसमें किसी भी रोग के इलाज के लिए मौजूद दवाओं के बारे में जानकारी दी जाती है, जिससे डॉक्टर को
वाजिब दवाएं चुनने में मदद मिलती है। यह दवाओं की दक्षता और उनके विवेकपूर्ण
इस्तेमाल के साथ ही उनके उचित डोज और साइड इफेक्ट्स के बारे में भी जानकारी देती
है।
इसमें दवाओं के नाम
शामिल करते समय उनकी कीमत का भी ध्यान रखा जाता है। कोशिश की जाती है कि गरीब जनता
को कम से कम दाम में स्तरीय दवाएं मुहैया हो सकें। इसे बनाने का मकसद डॉक्टरों, मेडिकल स्टूडेंट्स
और हेल्थ सर्विसेज से जुड़े अन्य लोगों को इलाज और दवाओं के बारे में दिशा-निर्देश
देना होता है, हालांकि
इसे मानना उनके लिए बाध्यकारी नहीं होता। एनएफआई को इंडियन फार्माकोपिया कमिशन ने
तैयार किया है।
आजादी के बाद
एनएफआई का पहला संस्करण 1960 में जारी किया गया था। इसे ब्रिटिश फॉरमुलरी की तर्ज
पर बनाया गया था। इसके बाद 1968 और 1979 में इसके एडिशन प्रकाशित किए गए थे। भारत
को जहां इसका चौथा संस्करण तैयार करने में 33 साल लग गए, वहीं अमेरिका और
ब्रिटेन जैसे देशों में हर छह महीने में नई फॉरमुलरी जारी की जाती है। दुनिया के
करीब 156 देशों की अपनी फॉरमुलरी है।
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