हर्बल खजाना
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श्री कृष्ण स्वयं
है पीपल
(डॉ दीपक आचार्य)
अहमदाबाद (साई)।
भगवान श्री कृष्ण गीता उपदेश में इस वृक्ष की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि
पीपल पेड़ों में उत्तम और दिव्य गुणों से सम्पन्न है और मैं स्वयं पीपल हूँ। पीपल
के औषधिय गुणों का बखान आयुर्वेद में भी देखा जा सकता है। पीपल का वानस्पतिक नाम
फ़ाइकस रिलिजियोसा है।
इसके सूखे फ़ल मूत्र
संबंधित रोगों के निवारण के लिये काफ़ी अच्छे होते है। आदिवासी हल्कों में इसकी
कोमल जडों को उस महिला को दिया जाता है जो संतान प्राप्ति चाहती हैं। पीपल के फ़ल, छाल, जडों और नयी कलियों
को एकत्र कर दूध में पकाया जाता है और फ़िर इसमें घी, शक्कर और शहद
मिलाया जाता है, आदिवासियों
के अनुसार यह मिश्रण नपुँसकता दूर करता है।
पातालकोट जैसे
आदिवासी बाहुल्य भागों में जिन महिलाओं को संतान प्राप्ति नहीं हो रही हो, उन्हे पीपल वृक्ष
पर लगे वान्दा (रसना) पौधे को दूध में उबालकर दिया जाता है। इनका मानना है कि यह
दूध गर्भाशय की गरमी को दूर करता है जिससे महिला के गर्भवती होने की संभावना बढ
जाती है।
मुँह में छाले हो
जाने की दशा में यदि पीपल की छाल और पत्तियों के चूर्ण से कुल्ला किया जाए तो आराम
मिलता है। पीपल की एक विशेषता यह है कि यह चर्म-विकारों को जैसे-कुष्ठ, फोड़े-फुन्सी
दाद-खाज और खुजली को नष्ट करता है। डाँगी आदिवासी पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर
लगाने की राय देते हैं। कुष्ठ रोग में पीपल के पत्तों को कुचलकर रोगग्रस्त स्थान
पर लगाया जाता है तथा पत्तों का रस तैयार कर पिलाया जाता है। (साई फीचर्स)
(लेखक हर्बल मामलों
के जाने माने विशेषज्ञ हैं)
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