मास्टर प्लान बना
गले की फांस
(रश्मि सिन्हा)
नई दिल्ली (साई)।
दिल्ली का वर्टिकल विकास होना चाहिए या नहीं? दिल्ली में ट्रैफिक सिग्नल फ्री होनी चाहिए
या नहीं? ऐसे कई
मुद्दों पर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। और ये सब हुआ है मास्टर प्लान 2021 को
रिव्यू करने के लिए बनी कमेटियों की सिफारिशें आने के बाद।
आने वाले वक्त में
दिल्ली की सूरत कैसी होगी, ये तय करना सरकार और एजेंसियों के लिए और भी पेचीदा हो गया
है। 2007 में दिल्ली का मास्टर प्लान 2021 बना, लेकिन 2012 में भी
तय नहीं हो पा रहा है कि प्लान में क्या रहेगा और क्या नहीं। मास्टर प्लान को
रिव्यू करने के लिए बनी कमेटियों ने अब कई बदलावों की सिफारिश कर दी है। सबसे अहम
सिफारिश ये है कि दिल्ली में ऊंची इमारतों की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है।
हालांकि महकमे के
मंत्री कमल नाथ इससे इत्तेफाक नहीं रखते। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री ने कह दिया
है कि ऊंची इमारतें ही दिल्ली की जरूरतों को पूरा कर सकती हैं। रिव्यू कमेटी ने ये
सिफारिश भी की है कि बड़े प्लाटों पर ज्घ्यादा से ज्घ्यादा निर्माण की इजाजत होनी
चाहिए। और छोटे प्लाटों को कम निर्माण की अनुमति देनी चाहिए। एफएआर को लेकर मास्टर
प्लान में इससे ठीक उलट बात कही गई है।
लैंड यूज के मसले
पर दिल्ली के व्यापारी और सरकारी एजेंसियां अक्सर टकराती रही हैं। व्यापारियों के
लिए कमेटी की ये सिफारिश राहत भरी हो सकती है। कमेटी ने कहा है कि डीडीए की सभी
सड़कों पर मिक्स्ड लैंड यूज की इजाजत दे दी जाए। फॉर्म हाउस के मसले पर भी दो
कमेटियों ने एक दूसरे अलग सिफारिशें की हैं। एक कमेटी ने फॉर्म हाउसों को नियमित
कर देने का सुझाव दिया है तो वहीं दूसरी कमेटी ने फॉर्म हाउसों को तोड़कर रिहाइसी
कॉलोनियां बनाने की सलाह दी है।
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