गृह प्रवेश, वास्तु पूजन, शुभ नक्षत्र
(पंडित दयानन्द
शास्त्री)
नई दिल्ली (साई)।
गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार
एवं तिथि इस प्रकार हैं। शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त,
उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा।
अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं
भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।
शुभ वार रू सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार
(गुरुवार), शुक्रवार
तथा शनिचर (शनिवार) सर्वाधिक शुभ दिन माने गए हैं। मंगलवार एवं रविवार को कभी भी
भूमिपूजन, गृह
निर्माण की शुरुआत,
शिलान्यास या गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए।
शुभ माह रू देशी या
भारतीय पद्धति के अनुसार फाल्गुन, वैशाख एवं श्रावण महीना गृह निर्माण हेतु
भूमिपूजन तथा शिलान्यास के लिए सर्वश्रेष्ठ महीने हैं, जबकि माघ, ज्येष्ठ, भाद्रपद एवं
मार्गशीर्ष महीने मध्यम श्रेणी के हैं। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि चौत्र, आषाढ़, आश्विन तथा कार्तिक
मास में उपरोक्त शुभ कार्य की शुरुआत कदापि न करें। इन महीनों में गृह निर्माण
प्रारंभ करने से धन,
पशु एवं परिवार के सदस्यों की आयु पर असर गिरता है।
शुभ तिथि रू--- गृह
निर्माण हेतु सर्वाधिक शुभ तिथिया ये हैं रू शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं
त्रयोदशी तिथियां,
ये तिथियां सबसे ज्यादा प्रशस्त तथा प्रचलित बताई गई हैं, जबकि अष्टमी तिथि
मध्यम मानी गई है।
प्रत्येक महीने में
तीनों रिक्ता अशुभ होती हैं। ये रिक्ता तिथियां निम्न हैं- चतुर्थी, नवमी एवं चौदस या
चतुर्दशी। रिक्ता से आशय रिक्त से है, जिसे बोलचाल की भाषा में खालीपन या सूनापन
लिए हुए रिक्त (खाली) तिथियां कहते हैं। अतः इन उक्त तीनों तिथियों में गृह
निर्माणनिषेध है।
शुभ लग्न- वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ
राशि का लग्न उत्तम है। मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशि का लग्न मध्यम है। लग्नेश
बली, केंद्र-त्रिकोण
में शुभ ग्रह और 3,
6, 10 व 11वें भाव में पाप ग्रह होने चाहिए।
शुभ नक्षत्र रू
----किसी भी शुभ महीने के रोहिणी, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, स्वाति, हस्तचित्रा, रेवती, शतभिषा, धनिष्ठा सर्वाधिक
उत्तम एवं पवित्र नक्षत्र हैं। गृह निर्माण या कोई भी शुभ कार्य इन नक्षत्रों में
करना हितकर है। बाकी सभी नक्षत्र सामान्य नक्षत्रों की श्रेणी में आ जाते हैं।
सात श्सश् और शुभता
-----
शास्त्रानुसार (स)
अथवा (श) वर्ण से शुरू होने वाले सात शुभ लक्षणों में गृहारंभ निर्मित करने से
धन-धान्य व अपूर्व सुख-वैभव की निरंतर वृद्धि होती है व पारिवारिक सदस्यों का
बौद्धिक, मानसिक व
सामाजिक विकास होता है। सप्त साकार का यह योग है, स्वाति नक्षत्र, शनिवार का दिन, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग, सिंह लग्न एवं
श्रावण माह।
अतः गृह निर्माण या
कोई भी कार्य के शुभारंभ में मुहूर्त पर विचार कर उसे क्रियान्वित करना अत्यावश्यक
हें..नया घर बनवाते समय सभी की इच्छा होती है कि नया घर उसके लिए सुख-समृद्धि व
खुशियां लेकर आए। इसके लिए जरूरी है कि गृह प्रवेश सदैव मुहूर्त जान कर करें। शुभ
मुहूर्त में गृह प्रवेश शुभ फल देता है। विशेष- गृह प्रवेश करते समय वास्तु पुरुष
का पूजन नहीं किया हो तो सविधि गृह प्रवेश करते समय वास्तु शांति के लिए यज्ञादि
करके एवं ब्राह्मणों, मित्रों व परिजनों को भोज देना चाहिए। नवीन भवन में तुलसी का
पौधा स्थापित करना शुभ होता है। बिना द्वार व छत रहित, वास्तु शांति के
बिना व ब्राह्मण भोजन कराए बिना गृह प्रवेश पूर्णतरू वर्जित माना गया है। शुभ
मुहूर्त में सपरिवार व परिजनों के साथ मंगलगान करते हुए शंख, बैंड व मंगल ध्वनि
करते हुए गृह प्रवेश करना चाहिए।
समय के इस शुभाशुभ
प्रभाव को हम सभी मानते हैं। प्रत्येक आवश्यक, मांगलिक और
महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शुभाशुभ समय का विचार करके अनुकूल समय का चुनाव करने की
पद्धति को ही मुहूर्त- विचार के लिए प्रयोग में लाया जाता है। हमारे भारतवर्ष में
जन्म से लेकर मरणोपरांत तक किए जाने वाले सोलह संस्कारों में प्रत्येक कार्य करने
हेतु मुहूर्तों का सहारा लिया जाता है तथा मुहूर्तों का जन-व्यवहार से नजदीक का
संबंध है। अधिकांशतः सभी व्यक्ति अनेक व्यवहारिक कार्यों को मुहूर्त के अनुसार ही
संपन्न करते हैं। मुहूर्त विचार की इस परंपरा को केवल हिंदु ही नहीं अपितु
प्रत्येक समुदाय के व्यक्ति जैसे मुसलमान, पारसी, जैन, सिक्ख इत्यादि सभी समय के शुभाशुभ प्रभाव को
पहचानने के लिए इस बेजोड़ पद्धति द्वारा मुहूर्त का विचार करते हैं। भारतीय
ऋषि-मुनियों के द्वारा समय को वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त रूपी पांच भागों में
वितरित किया गया है। उपरोक्त श्लोकानुसार सिद्धांत को मानकर विशेष कार्य को सुचारू
रूप से करने हेतु शुभ समय के निर्णय की परंपरा का श्रीगणेश हुआ। इसी कारण, तिथि, वार, ,नक्षत्र, योग, करण, चंदमास, सूर्यमास, अयन, ग्रहों का उदयास्त
विचार, सूर्य-चंद्र
ग्रहण एवं दैनिक लग्न के आधार पर कार्य-विशेष हेतु शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता
है। समय और ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव जड़ और चेतन सभी प्रकार के पदार्थों पर पड़ता
है। भूमण्डल (पृथ्वी) का प्रबंधकीय कार्य समय के अनुरूप होता रहता है। यहां काल
(समय) का प्रभाव छः ऋतुओं के रूप में दिखाई देता है।
वायु मडल पर
प्रकृति और समय- चक्रानुसार पड़ने वाले अलग-अलग प्रभावों के कारण ओले गिरते हैं, बिजली चमकती है, भूकंप आते हैं, वज्रपात होता है, हवा के प्रकोप से
चक्रवात आते हैं, आकाश में
उल्कापात और अति-वृष्टि से जन-धन की हानि होती है। इन सब प्राकृतिक उत्पातों का
ग्रह नक्षत्रों से बहुत गहरा संबंध है। मुखयतः सूर्यादि ग्रहों एवं नक्षत्रों का
शुभाशुभ प्रभाव भूमंडल व भूवासियों पर पड़ता है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के उजाले
और अंधेरे का प्रभाव वस्तु-विशेष, जड़-चेतन सभी पर पड़ता है। समय के इसी
शुभ-अशुभ प्रभाव से बचने के लिए शुभ मुहूर्तों के आधार पर कार्य करने का प्रचलन
प्रारंभ हुआ। हम सभी अपनी जीवन-यात्रा में अनेकानेक उत्तरादायित्वों को समय के
क्रमानुसार निर्वह्न करते हैं। इन समस्त उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए शुभ समय
का निर्धारण करने की आवश्यकता पड़ती है। एक पौराणिक आखयान के अनुसार यह माना गया है, कि पाण्डवों में
सहदेव मुहूर्त-शास्त्र के मर्मज्ञ थे। महाभारत युद्ध के पूर्व महाराज धृतराष्ट्र
के कहने पर स्वयं दुर्याेधन रणभूमि में कौरवों की विजय हेतु शुभ मुहूर्त निकलवाने के
लिए सहदेव के पास गये थे और सहदेव ने उन्हें युद्ध विजय का शुभ-मुहूर्त बताया था।
जब इस बात का पता भगवान श्रीकृष्ण को चला तो उन्होंने इस मुहूर्त को टालने के लिए
व पांडवों की विजय का शुभ- मुहूर्त लाने हेतु अर्जुन को मोह मुक्त करने के लिए
उपदेश दिया था। मुहूर्त के संबंध में श्रीरामचरित मानस में भी उल्लेख प्राप्त होता
है, कि युद्ध
के पश्चात जब रावण मरणासन्न हालत में था तब भगवान श्रीरामचंद्र ने लक्ष्मण को उससे
तिथि, मुहूर्तों
व काल का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उसके पास भेजा था। इस आखयान से भी मुहूर्त
अर्थात शुभ क्षणों के महत्व का पता चलता है। अथर्ववेद में शुभ काल में कार्य
प्रारंभ करने के निर्देश प्राप्त होते हैं, ताकि मानव जीवन के समस्त पक्षों पर शुभता का
अधिक से अधिक प्रभाव पड़ सके। हमारे पुराणों, शास्त्रों में अनेकों ऐसे कई उदाहरण मिलते
हैं, जिनसे इन
तथ्यों का ज्ञान होता है। कंस के वध हेतु भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उचित समय की
प्रतीक्षा करना इन तथ्यों की पुष्टि करता है।
आज के इस विज्ञान
के समय में वैज्ञानिक गण भी किसी प्रयोग को संपन्न करने हेतु उचित समय की
प्रतीक्षा करते हैं। राजनेता, मंत्रीगण भी निर्वाचन के समय नामांकन हेतु, शपथ ग्रहण हेतु शुभ
मुहूर्त का आश्रय लेते हैं। आचार्य वराहमिहिर भी इस मुहूर्त विचार की अनुशंसा करते
हुए कहते हैं, कि इस एक
क्षण की अपने आप में कितनी महत्ता है और यदि इसका सही उपयोग किया जाये तो कितना
अधिक अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकता है। अब प्रश्न उठता है, कि क्या शुभ
मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करके भाग्य बदला जा सकता है? यहां यह बता देना
आवश्यक है, कि ऐसा
संभव नहीं है। हम जानते ही हैं, कि भगवान श्रीराम के राजतिलक हेतु प्रकाण्ड
विद्वान गुरु देव वशिष्ठ जी ने शुभ मुहूर्त का चयन किया था परंतु उनका राजतिलक
नहीं हो पाया था। अर्थात मानव द्वारा सिर्फ कर्म ही किया जा सकता है। ठीक समय पर
कार्य का होना या न होना भी भाग्य की बात होती है। किसी कार्य को प्रारंभ करने
हेतु मुहूर्त विश्लेषण आवश्यक जरूर है। इस पर निर्भर रहना गलत है। परंतु शुभ
मुहूर्त के अनुसार कार्य करने से हानि की संभावना को कम किया जा सकता है। जीवन को
सुखमय बनाने के लिए अधिकांशतः हर सनातन धर्मालम्बी धार्मिक अनुष्ठान, त्यौहार, समस्त संस्कार, गृहारंभ, गृह प्रवेश, यात्रा, व्यापारिक कार्य
इत्यादि के साथ-साथ अपना शुभ कार्य मुहूर्त के अनुसार करता है। इस प्रकार जीवन को
सुखमय बनाना मुहूर्त का अभिप्राय है...(साई फीचर्स)
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