सफल हो रहा प्रोजेक्ट
प्रोत्साहन
(अजय राजपूत)
डिंडोरी (साई)।
प्रोजेक्ट प्रोत्साहन जिला चिकित्सालय डिण्डोरी में 8 अगस्त 2012 से लागू किया गया
एक ऐसा नवाचार है जिससे कुपोषण के 22ः मामलों को रोकने में में सहायता मिलेगी। इस
परियोजना के ज़रिये माताओं को स्तनपान और शिशुओं की सुरक्षा के लिए जागरूक करने
हेतु डिण्डौरी जिले जिला चिकित्सालय में शुरू किये गये इस प्रोजेक्ट से 112 से
अधिक शिशुओं को कोलस्ट्रम मिला है। कलेक्टर श्री मदन कुमार के निर्देशन में महिला
एवं बालविकास विभाग द्वारा जिला मुख्यालय में क्रियान्वित नवाचार प्रोजेक्ट प्रोत्साहन
के अंतर्गत शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान कराने का महत्व
सामाजिक रूढ़ियों पर भारी पड़ गया है। महिला एवं बालविकास की कार्यक्रम अधिकारी का
कहना है कि डिण्डौरी परियोजना के परियोजना अधिकारी की परिकल्पना प्रोजेक्ट
प्रोत्साहन के जिला मुख्यालय के परिणामों के आधार पर इसे जिले के विकासखंडो में
प्रारंभ किया जायेगा। इसके लिए स्तनपान सप्ताह में परियोजना स्तर पर किशोरी
बालिकाओं को सम्पूर्ण जानकारी के साथ प्रशिक्षित किया गया है जिनका संदेश वाहक के
रूप में उपयोग किये जाने का योजना है।
प्रोजेक्ट प्रोत्साहन
के क्रियान्वयन के लिए डिण्डौरी परियोजना में परियोजना अधिकारी गिरीश बिल्लोरे
द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का एक दल
गठित किया गया है जो प्रतिदिन जिला चिकित्सालय में भरती गर्भवती महिलाओं से
सम्पर्क स्थापित कर स्तनपान के संबंध में चर्चा करता है। इन महिलाओं को शिशु
जन्म के तुरंत बाद निकलने वाले पीले गाढे़
दूध का महत्व समझाते हुये तथा उसके फायदे की जानकारी देकर बच्चों को पिलाने का
अनुरोध किया जाता है। कार्यदल में शामिल आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती सत्यभामा
ठाकुर और श्रीमती सुमन बघेल का कहना है कि प्रेरित करने का असर यह हुआ है कि
महिलाये द्वारा जन्म लेने वाले शिशुओं को कोलस्ट्रम फीडिंग कराई जा रही है।
प्रसूतायें अब यह समझ चुकी हैं कोलस्ट्रम फीडिंग कराने से शिशुओं को बीमारियों और
कुपोषण से बचाया जा सकता हैं। अब विटामिन ’ए’ और विटामिन ’के’ की अधिकता वाले दूध
कोलस्ट्रम अर्थात् जन्म के तुरन्त बाद के पीले गाढे़ दूध को पिलाने में उन्हें कोई
हिचक नहीं हो रही है। यह कोलस्ट्रम शिशु
की आंतो की सफाई करता है तथा बच्चे को पीलिया एवं अन्य बीमारियों से बचाये
रखता हैं।
उल्लेखनीय है कि
स्तनपान के महत्व,
फायदे, शिशु को 6 माह तक स्तनपान की जरूरत और इसके
वैज्ञानिक तरीको के प्रति जागरूकता के लिए बी।पी।एन।आई। के सौजन्य से प्रशिक्षण
कार्यक्रमों एवं चिकित्सालयों में काउंसलिंग सुविधा के बाद भी चर्चा में सामने आया
कि स्तनपान के प्रति जागरूकता की कमी है। इसे देखते हुये ही प्रोजेक्ट प्रोत्साहन
प्रारंभ कर कार्यदल के सदस्य चिकित्सालय में भर्ती महिला जो बातचीत कर सकने वाली
गर्भवती महिला जिसे प्रसव पीड़ा प्रारंभ नहीं हुई और जिस महिला की प्रसूति हो चुकी
है से चर्चा कर शिशु के जन्म के एक घन्टे में स्तनपालन कराने का प्रयास कराती है
और उन्हें नियमित स्तनपान की वारीकियों एवं मॉ की स्थिति का सचित्र ब्यौरा देते
हेतु 6 माह तक विशुद्ध स्तनपान कराने का
बार-बार संदेश देंगी क्योंकि अटल बिहारी बाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन के तहत
181 दिन तक शुद्ध स्तन पान कराना शिशु के
लिए स्वास्थ्यवर्धक एवं कुपोषण से बचाने बाला है। इसके साथ ही कार्यदल द्वारा
महिलाओं एवं शिशु से संबंधित संपूर्ण जानकारी एक प्रपत्र में एकत्र कर रखी
जायेंगी।
इस कार्यक्रम को
लागू किये जाने का औचित्य यह है कि स्तनपान को लेकर प्रसूता महिला को सटीक एवं
वैज्ञानिक जानकारी ऐसे समय में दी जाती है जबकि उसे जरूरत है। कार्यदल द्वारा भरे
गये प्रपत्रों के माध्यम से एक डाटाबेस तैयार कर परियोजना क्षेत्र में स्तनपान के
प्रति प्रोत्साहन एवं बदलाव की दिशा भी तय की जा सकेगी और संस्थागत प्रसव को बढ़ाने
और प्रचारित करने में सहायता मिल सकेगी।
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