शेरशाह सूरी के
जमाने की सड़क आज भी है खतरे में
(शिवेश नामदेव)
सिवनी (साई)। मुगल
शासक शेरशाह सूरी के जमाने में बनाई गई देश की सबसे लंबी और व्यस्ततम सड़क पर से अब
भी संकट के बादल छट नहीं पाए हैं। इस मार्ग में दिसंबर 2008 की 18 तारीख को एक
षणयंत्र के ताना बाना का आगाज किया गया था। इस दिन तत्कालीन जिला कलेक्टर
पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा एक अजीबोगरीब आदेश जारी कर इस सड़क के निर्माण में अनेक
अवरोध खड़े कर दिए थे।
ज्ञातव्य है कि जून
2009 के उपरांत
भगवान शिव की सिवनी नगरी में हर किसी की जुबान पर बस एक ही बात है, कि फोरलेन को सिवनी
से छिंदवाडा ले जाने के षणयंत्र का ताना बाना बुना जा रहा है। आखिर क्या विवाद है
फोरलेन का कि सारा का सारा जिला इससे व्यथित है। बार बार बंद का आव्हान किया जाता
रहा फिर यह प्रयास भी सामाप्त हो गया।
इस मार्ग का
निर्माण मुगल शासक शेरशाह सूरी के शासनकाल में व्यापार एवं आवागमन के उद्देश्य से
जिस सडक का निर्माण किया गया था, कालांतर में वह सडक देश का सबसे व्यस्ततम
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात में तब्दील हो गया। इस मार्ग पर यातायात का दवाब
सर्वाधिक महसूस किया जाता रहा है। इस सड़क के जर्जर होने से अब आधे से ज्यादा
यातायात का दबाव सिवनी से छिंदवाड़ा होकर नागपुर के मार्ग पर बढ गया है।
पूर्व प्रधानमंत्री
अटल बिहारी बाजयेयी के शासनकाल में दो परियोजनाओं का खाका प्रमुख तौर पर तैयार
किया गया था। इसमें नदी जोडने और देश के चारों महानगरों को सडक मार्ग से जोडने की
कार्ययोजना पर काम आरंभ हुआ था। नदी जोडना तो संभव नहीं हो पाया किन्तु दिल्ली, कोलकता, चेन्नई और मुंबई को
आपस में जोडने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज मार्ग की कल्पना को साकार करना आरंभ कर
दिया गया था।
समय गुजरने के साथ
ही दिल्ली से चेन्नई और मुंबई सेे कोलकता जाने वाले लोगों को लंबे चक्कर से बचाने
की बात भी सरकार के ध्यान में लाई गई, जिसके परिणाम स्वरूप उत्तर दक्षिण और पूर्व
पश्चिम गलियारे की कल्पना हुई जिसे मूर्त रूप देना आरंभ किया गया। जैसे ही उत्तर
दक्षिण गलियारे के मानचित्र पर मध्य प्रदेश उभरा वैसे ही मध्य प्रदेश के अनेक
क्षत्रप इस दिशा में प्रयासरत हो गए कि यह गलियारा उनके कार्य क्षेत्र से होकर
गुजरे। चूंकि मामला राष्ट्रीय स्तर पर था और इसमें मध्य प्रदेश के क्षत्रपांे की
मंशा भी स्पष्ट होती जा रही थी, अतः देश के बाकी क्षत्रपों ने इस उत्तर
दक्षिण गलियारे के एलाईनमंेट से छेडछाड करने का पुरजोर विरोध किया। यही कारण था कि
मध्य प्रदेश के स्वयंभू क्षत्रपों की मंशा के बावजूद यह सिवनी जिले से होकर गुजरना
प्रस्तावित किया गया।
केंद्र में
डॉ.मनमोहन सिंह जब दूसरी मर्तबा प्रधानमंत्री बने तब भूतल परिवहन मंत्रालय की महती
जवाबदारी सिवनी के पडोसी जिले छिंदवाडा के सांसद कमल नाथ को सौंपी गई। राज्य सभा
में कमल नाथ ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी कि वे चाहते थे कि यह गलियारा उनके संसदीय
क्षेत्र छिंदवाडा से होकर जाए, किन्तु जब उन्हें बताया गया कि नरसिंहपुर से
बरास्ता ंिछंदवाडा,
नागपुर चूंकि नेशनल हाईवे नहीं है, अतः इसे छिंदवाडा
से होकर गुजारा नहीं जा सकता है, तब वे शांत हो गए।
इसी बीच मध्य
प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार ने चंद सडकों को राज्य के
मार्ग के स्थान पर नेशनल हाईवे में तब्दील करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा। इन
प्रस्तावों में नरसिंहपुर से छिंदवाडा होकर नागपुर मार्ग भी शामिल किया गया था।
बताते हैं कि इस मार्ग पर वैसे तो इतना यातायात नहीं है कि इस मार्ग का उन्नयन कर
इसे नेशनल हाईवे बनाया जाए, किन्तु किसी ‘‘खास रणनीति या
जुगलबंदी‘‘ के तहत इसे
प्रस्ताव में शामिल करवा दिया गया।
संयोग से यह नेशनल
हाईवे भी फोरलेन में बनना प्रस्तावित किया गया। चूंकि उत्तर दक्षिण गलियारे को
फोरलेन की संज्ञा दी जा चुकी थी अतः लोगों के मानस पटल पर यह बात घर कर गई कि यही
गलियारा अब नेशनल हाईवे जो नरसिंहपुर से नागपुर प्रस्तावित है, में तब्दील हो
जाएगा। यही कारण है कि सिवनी वासियों ने भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को पानी पी पी
कर कोसना आरंभ कर दिया। विडम्बना तो यह थी कि कमल नाथ के नाम पर देश प्रदेश में
राजनीति करने वाले और उनका झंडा उठाकर ‘‘जय जय कमल नाथ‘‘ के नारे बुलंद करने
वालों ने भी कमल नाथ की खाल बचाने की जहमत नहीं उठाई, और न ही वास्तविकता
ही सामने लाने का प्रयास किया गया कि आखिर फोरलेन विवाद है क्या? और किसके कहने या
रोकने अथवा अनुमति न देने के कारण इस गलियारे का काम रूका हुआ है।
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