शनिवार, 9 जून 2012

अन्ना को ‘दवा‘ देकर मारने की तैयारी थी


अन्ना को दवादेकर मारने की तैयारी थी

(आशीष कुमार अंशु‘)

अन्ना आंदोलन के दौरान पहली बार सीताराम जिन्दल उस वक्त चर्चा में आये जब अरविन्द केजरीवाल की संस्था के खाते में किसी जिंदल फाउण्डेशन से मिले पैसे का जिक्र आया. कयास लगाये गये कि यह जिंदल फाउण्डेशन संभवतरू कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल से जुड़ा होगा. लेकिन ऐसा नहीं था. यह जिंदल फाउण्डेशन धुन के धनी सीताराम जिन्दल ने स्थापित किया है. इसके बाद उनकी यदा कदा चर्चा होती रही. हर चर्चा में यही निकलकर सामने आता था कि वे दानवीर हैं. कभी अन्ना के आंदोलन को आर्थिक मदद दी तो कभी उन्होंने बेगलूरू विवि को स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्सकी स्थापना के लिए सौ करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी। पुणे में अन्ना का असफल हुआ ईलाज डा. जिन्दल के बेंगलूरू स्थित जिन्दल प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान में सफल हुआ। कर्नाटक में उन्होंने सौ से अधिक गांवों को गोद लिया है, उन गांवों को वे शिक्षा और स्वास्थ की सेवा उपलब्ध करा रहे हैं। भ्रष्टाचार को व्यवस्था का घुन बतानेवाले सीताराम जिंदल हाल में ही 3 जून को दिल्ली में रामदेव की रैली में भी मौजूद थी. आशीष कुमार अंशु से बातचीत में उन्होंने खुलासा किया है कि पुणे में इलाज के दौरान अन्ना को ‘‘दवा‘‘ देकर मारने की पूरी तैयारी थी. उनसे फिलानथ्रापी, सीएसआर, भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों और अन्ना आंदोलन से जुड़े कई सारे सवालों पर हुई लंबी बातचीत का प्रमुख अंश-

0 फिलानथ्रॉपी और सीएसआर के बीच का अंतर क्या है? कई बार इनका अंतर समझ नहीं आता?
- फिलानथ्रॉपी समाजसेवा है बिना किसी उम्मीद के। यह बहुत ही आदर्श सेवा है। सीएसआर कॉरपोरेट हाउस नैतिक और सामाजिक जिम्मेवारी है। मैं हमेशा इस बात को कहता रहा हूं कि व्यावसायी समाज स्वभाव से बेहद स्वार्थी होता है। उनसे गरीबों के लिए समाज के लिए कुछ उम्मीद करना उस वक्त तक गलत है, जब तक इसे लेकर सरकार कोई कानून नहीं बनाती अथवा इसे उद्यमियों के लिए अनिवार्य नहीं कर देती। वैसे फिलॉन्थ्रॉपी और सीएसआर में बहुत अधिक अंतर नहीं है। दोनों समाज के लिए ही है। फिलानथ्रॉपी को सीएसआर का विस्तार समझ लीजिए।

0 पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में फिलानथ्रॉपी की चलन कम है, क्या भारतीय कॉरपोरेट घरानों को इस संबंध में सोचने की जरूरत है?
- अपने देश में फिलानथ्रॉपी के लिए अधिक लोग सामने नहीं आ रहे हैं। यह ठीक कहा आपने। अपने देश में गरीबी और पिछड़ापन भी पश्चिमी देशों के मुकाबले अधिक है। इसलिए भारत में फिलानथ्रॉपी की अधिक जरूरत है लेकिन यह बेहद कम है। इसके लिए सिर्फ कॉरपोरेट घरानों को दोष देना ठीक नहीं होगा। इसके लिए सरकार भी दोषी है। वह भी फिलानथ्रॉपी को बढ़ावा नहीं देना चाहती है। सरकार को उन कॉरपोरेट घरानों को प्रोत्साहित करना चाहिए जो फिलानथ्रॉपी के लिए आगे आ रहे हैं। वे निजी क्षेत्र में अच्छी समाज सेवा कर सकते हैं। चौरिटेबल और सरकारी अस्पतालों का फर्क आप देख लीजिए। यह साफ नजर आता है। राधास्वामी सत्संग और रामकृष्ण मिशन समाज के लिए उच्च कोटी की सुविधा मुहैया करा रहे हैं।

0 फिलानथ्रॉपी को बढ़ाने के लिए सरकार क्या कर सकती है?
- इसके लिए सरकार बहुत कुछ कर सकती है। देश में इस वक्त 60 लाख गांव हैं और 75 फीसदी देश की गरीब आबादी गांव में रहती है। यदि गांव के विकास के लिए उद्योगपतियों और कॉरपोरेट घरानों को उनकी क्षमता के अनुसार गांव गोद दिए जाएं, किसी को बीस, किसी को पचास और किसी को सौ। जिन उद्योगों को गांव के विकास का काम दिया जाए, उन पर गांव की स्वास्थ, शिक्षा, स्वच्छता, सड़क, बिजली, पानी और रोजगार की जिम्मेवारी भी हो। देश के कायाकल्प में यह कदम बड़ी भागीदारी निभा सकता है। यदि गांव का विकास नहीं हो पाता तो इससे कंपनी की भी बदनामी होगी। इसलिए कंपनियां भी गांव में अच्छी से अच्छी सेवा देने का प्रयास करेगी। एक बार सरकार इसे अपनाने का मन बना ले तो देश की गरीबी पांच साल में ही नियंत्रण में होगी। इतना कुछ करने के लिए बड़ी कंपनियों को अपनी आमदनी का सिर्फ पांच फीसदी खर्च करना होगा। इस बात पर किसी कंपनी को अपत्ति नहीं होगी। वे जो खर्च कर रहे हैं, उस पर पंचायत स्तर से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारी नजर रख सकते हैं। विधायक, सांसद और एनजीओ भी नजर रखें। यदि कोई गड़बड़ी उसके बाद भी होती है तो मीडिया है, उसे जाहिर करने के लिए। अभी देश में 35 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीने को विवश हैं, इस योजना को लागू करने से ना सरकार को नुक्सान है और ना ही देश को। इसका लाभ समाज को मिलेगा। गरीबी खत्म होगी, उसके बाद ही तो समृद्धि आएगी।

0 इस तरह की कोई नीति बने, क्या आपने इसको लेकर कोई पहल की है?
- इस संबंध में प्रधानमंत्रीजी को मैंने कई पत्र लिखे, लेकिन किसी पत्र का जवाब नहीं आया। प्रधानमंत्री स्वयं कहते हैं, देश के आम आदमी तक मात्र पन्द्रह पैसा पहुंचता है। यदि निजी क्षेत्र इस काम में सामने आएं तो परिणाम बेहतर और जल्दी सामने आएगा। सरकार इस काम को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए अपनी तरफ से कुछ अच्छी नीतियां भी बना सकती हैं लेकिन आज हमारे समय के नेता अपनी परेशानियों में इतने उलझ गए हैं कि उन्हें देश के आम आदमी की परेशानी बिल्कुल नजर ही नहीं आ रही है।

0 शिकायतें तो आज कॉरपोरेट घरानों के सीएसआर परियोजनाओं के अन्तर्गत किए गए कामों की भी आती है। यदि गांव वाली योजनाओं का परिणाम भी सीएसआर की तरह हुआ तो एक नई योजना से समाज को क्या लाभ होगा?
- संभव है कि आप जो कह रहे हैं वह सच हो। उसकी सच्चाई मैं आपको बताता हूं। होता यह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां कान्ट्रेक्ट पर सीएसआर वर्क देती हैं। उन पैसों में से कान्ट्रेक्ट लेने वाला पचास फीसदी कंपनी को वापस कर देता है। इस तरह की धोखाधड़ी होती है। मैंने पहले ही बताया है आपको, व्यावसायी समाज स्वभाव से बेहद स्वार्थी होता है। उससे सरकार को समाज हित में काम लेना पड़ेगा। उसे अपनी एन्टी करप्शन एजेन्सियों को मजबूत करना होगा। इसमें सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए। यदि गलती पकड़ी गई तो सबसे पहले कुल परियोजना की तीन गुणा रकम कंपनी से वसूली जानी चाहिए। इससे भय पैदा होगा।

0 टैक्स की चोरी भी तो बड़ा सवाल है?
- टैक्स का वे जो गड़बड़ करते हैं, वह रूकना बहुत मुष्किल है। भ्रष्टाचार की जड़ में कॉरपोरेट हाउस नहीं, सरकार के अधिकारी हैं। यदि आप उन्हें ईमानदार बनाते हैं तो चोरी भी काफी हद तक नियंत्रित हो सकती है। पहले सरकारी भ्रष्टाचार खत्म कीजिए, फिर यह उद्योगों से भी खत्म होगा।

0 जन लोकपाल के नाम से भी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी मुहिम इस वक्त पूरे देश में चली है, इस मुहिम को लेकर आप क्या सोचते हैं?
- लोकपाल को पूरे देश का समर्थन मिलना चाहिए। एक दो मुद्दे हैं, जिनसे असहमति हो सकती है लेकिन लोकपाल को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है। मसलन प्रधानमंत्री और सीवीसी को लोकपाल के दायरे में लाने की बात है। यह बात थोड़ी ठीक नहीं लगती है। सीबीआई और सीवीसी सरीखी जांच एजेन्सियों को लोकपाल के दायरे से बाहर ही रखना चाहिए। जिससे वे निष्पक्ष जांच कर पाएं। लोकपाल के ऊपर भी एक समिति होनी चाहिए। जो लोकपाल के लिए आई शिकायतों की जांच करे।

0 भ्रष्टाचार जब आज हमारे व्यवहार और दिनचर्या के हिस्से की तरह शामिल हो गया है, क्या हम सोच सकते हैं कि उससे हमें निजात मिल जाएगी?
- वास्तव में भ्रष्टाचार से लड़ पाना बहुत मुश्किल है। यह आज कैंसर का रूप ले चुकी है। मैं प्राकृतिक चिकित्सक हूं। इस चिकित्सा में किसी बीमारी का ईलाज करते हुए हम कई बीमारियों पर एक साथ ध्यान नहीं देते। हम एक बीमारी का ईलाज करते हैं और इससे एक-एक कर दूसरी बीमारियां भी दूर होती जाती हैं। मसलन एक मधुमेह का रोगी हमारे पास आता है, उसे तनाव और दूसरी कई परेशानियां हैं। हम मधुमेह का ईलाज करते हैं और ईलाज के दौरान उसकी दूसरी परेशानियां भी दूर होती रहती हैं। इसी तरह यदि आप भ्रष्टाचार पर अपना ध्यान केन्द्रित करे तो महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी जैसी दूसरी परेशानियां भी दूर होंगी।

0 भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी वजह क्या है?
- भ्रष्टाचार की कोई एक वजह है या यह बड़ी है और दूसरी छोटी यह कहना ठीक नहीं है। वैसे  महंगाई भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह है। जिनके परिवार में दो-तीन बच्चे हों, उनका चालीस-पचास हजार में भी आज गुजारा चलना मुश्किल है। दस-बाहर हजार में भी लोग जी रहे हैं, लेकिन उनसे पूछिए उनका गुजारा कैसे चलता है? देश के 35 करोड़ लोगों के पास यह भी नहीं है। वे गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। सह सब आजादी के पैंसठ साल बाद भी है। इतना सारा पैसा आता है, एक परियोजना के लिए दस हजार करोड़ रुपए आए और नीचे आते-आते बचते हैं दो हजार करोड़ रुपए। सरकार इतना सारा पैसा खर्च कर रही है, किस क्षेत्र का हाल अच्छा है। शिक्षा का ले लीजिए। शिक्षा किस तरह बर्बाद हो रही है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों को देख लीजिए, साफ पता लग जाएगा। कितनी गंदगी है वहां। पहले बच्चों को सरकारी स्कूलों में दिन का खाना देते थे। अब वहां भी बेइमानी आ गई है। बच्चों का खाना तक नहीं छोड़ा।

0 भारतीय प्रशासनिक सेवा या दूसरी सेवाओं में जिस तरह ईमानदार लोगों को प्रताड़ित किया जाता है, फिर कोई ईमानदार कैसे बचा रह सकता है?
- यह सच्चाई है, यदि किसी आईएएस ने थोड़ा ईमानदारी से काम किया, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो उसे उठा कर नगालैण्ड भेज दिया। उसकी जान गई, जानलेवा हमला हुआ। ईमानदारी के रास्तें में यह सारी बाधाएं तो हैं। अब कुछ आईएएस/आईपीएस अधिकारियों ने इस तरह के मामले में डिप्लॉमेटिक होकर लड़ना सीख लिया है। यदि कोई बड़ा मामला है तो वे किसी एनजीओ को बता कर मीडिया में मामला पहले उछाल देते हैं। एनजीओ और मीडिया के दबाव की वजह से कई बार राजनीतिक ताकतों को चुप्पी लगानी पड़ती है।

0 अब तो सरकार एनजीओ की नकेल भी कसने की तैयारी में है?
- यदि एनजीओ ईमानदार है तो कोई सरकार उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हमने लगातार ऐसे लोगों को सम्मानित किया है जो निडर होकर निरन्तर लड़ते रहे हैं। वे कभी झुके नहीं। अपनी लड़ाई में डंटे रहे।

0 अन्ना हजारे का ईलाज बेंगलूरू के आपके अस्पताल में प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से ही हुआ, उनकी स्वास्थ्य की स्थिति क्या थी जब वे आपके अस्पताल में पहुंचे?
- अन्ना जब हमारे पास आए, यही कह सकता हूं कि उन्हें दवा देकर मारने की पूरी तैयारी थी। ऐसी स्थिति में अन्ना हमारे पास आए थे। जो एक दवा उन्हें बड़ी मात्रा में दी गई थी, वह बिल्कुल अन्तिम समय में जब मरीज के ईलाज की सारी संभावनाएं कम होती हैं, उस वक्त दी जाती हैं। डॉक्टर नरेश त्रेहन हमारे मित्र हैं। उनका फोन आया अन्ना की सेहत को लेकर, फिर हमने उन्हें अपने पास बुला लिया। जब हमारे डॉक्टरों ने अन्ना को देखा तो वे घबरा गए थे। हमारे पास आते-आते उनकी सेहत इतनी बिगड़ गई थी।

0 पुणे के जिन डॉक्टर के पास अन्ना हजारे का ईलाज चल रहा था, उन्हें सरकार ने पद्म विभूशण से सम्मानित किया?
- यही बात मैं समझना चाहता हूं, जब अन्ना का ईलाज पुणे में चल रहा था। उस वक्त अन्ना सरकार द्वारा नापसंद किए जाने वालों की सूची में नंबर वन थे। अब इसके बाद अन्ना का ईलाज करने वाले व्यक्ति को सरकार पद्म विभूषण का सम्मान देती है। वह भी असफल ईलाज। वहां ईलाज के दौरान अन्ना की तबियत सुधरने की जगह और बिगड़ी तो इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठना लाजमी है। हमारे यहां अन्ना का पूरा ईलाज प्राकृतिक चिकित्सा से हुआ और वे स्वस्थ हुए।

0 प्राकृतिक चिकित्सा से आपने बताया कि अन्ना का ईलाज हुआ। जब प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति इतनी महत्वपूर्ण है फिर इसका चलन भारत में क्यों नहीं है?
- प्राकृतिक चिकित्सा के महत्व को भारत में हमेशा कम करके आंका गया है। मीडिया में इसके महत्व पर चर्चा हो और सरकारी अस्पतालों में इस पद्धति से ईलाज प्रारंभ हो तो आने वाले दस सालों में मरीज आधे हो जाएंगे और ईलाज का खर्च ना के बराबर रह जाएगा।

0 क्या आप समझते हैं कि देष में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोकपाल कारगर हथियार है? लोकपाल के आते ही भ्रष्टाचार देश से छू मंतर हो जाएगा?
- लोकपाल इस देश की जरूरत है। दूसरा संविधान को भी एक बार फिर से संशोधन की जरूरत है। आजादी के बाद जब संविधान तैयार किया गया, इसमें कोई शक नहीं उस वक्त के नेता बेहद ईमानदार, प्रतिबद्ध और निष्ठावान थे। उनकी सोच अच्छी थी। इसलिए इतना अच्छा संविधान तैयार कर पाए। लेकिन साठ सालों बाद कुछ भ्रष्ट लोग संविधान की आड़ लेकर ही भ्रष्टाचार कर रहे हैं। वे कहते हैं कि संविधान में कहां लिखा है कि लोकपाल की मांग सही है? सरकार के कुछ वरिष्ठ अधिकवक्ता इतने समझदार हैं कि वे साबित कर सकते हैं कि दो और दो पांच होते हैं। इसलिए एक लोकपाल से बात नहीं बनेगी।

(विस्फोट डॉट काम से साभार)

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