दादा बिन सब सून
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
सालों साल कांग्रेस की सेवा कर संकटमोचक बनने वाले (पूर्व प्रधानमंत्री राजीव
गांधी का विरोध कर समाजवादी कांग्रेस बनाने वाले) प्रणव मुखर्जी के रायसीना हिल्स
पहुंचने के बाद कांग्रेस में परेशानियों का पहाड़ सा टूट पड़ा है। कांग्रेस के आला
नेता अब प्रणव मुखर्जी की कमी शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। महामहिम राष्ट्रपति
प्रणव मुखर्जी के शपथ लेते ही देश के राष्ट्रपति की वेब साईट पर उनकी उपलब्धियों
का बखान कर दिया गया है।
सूचना का अधिकार, खाद्य सुरक्षा
विधेयक, विशिष्ठ
पहचान पत्र, सूचना
प्रौद्योगिकी, डीएमआरसी
यानी दिल्ली मेट्रो आदि को महामहिम की उपलब्धियों की फेहरिस्त में स्थान दिया गया
है। वित्त विभाग की कमान संभालने के दौरान 70 और 80 के दशकों में विभिन्न बैंक जैसे क्षेत्रीय
ग्रामीण बैंक, राष्ट्रीय
कृषि और ग्रामीण विकास बैंक आदि की स्थापना भी प्रणव दा के खाते में ही आ रही हैं।
जब जब कांग्रेस पर
संकट के बादल छाए तब तब प्रणव मुखर्जी ने कांग्रेस को संकट से उबारा है। अब जबकि
प्रणव दा राजनीति से विदा ले चुके हैं और देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर हैं तब
कांग्रेस को संकट के क्षणों में दादा की याद बुरी तरह आ रही है। वर्तमान संकट हो
या कोई ओर दादा को संकट हल करने में मास्टरी हासिल थी। यही कारण था कि यूपीए टू
में हुए घपले धोटालों की गूंज के बाद भी सरकार पर कोई आंच नहीं आ पाई थी।
हाल ही में ममता
बनर्जी द्वारा समर्थन वापसी की घोषणा के बाद कांग्रेस को बहुत ही डर सता रहा है, कहीं ममता की
देखादेखी और दल भी समर्थन वापस ना ले लें। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष
केंद्र 10, जनपथ के
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सोनिया गांधी ने इस संकट से
उबारने के लिए दादा की मदद की गुहार लगाई थी, पर दादा ने अपने आप को संवैधानिक दायरे में
बंधे होने की बात कहकर अपनी खाल तो बचा ली पर कांग्रेस का संकट बढ़ा ही दिया है।
छोटे मोटे संकट हल
करने के लिए कांग्रेस ने कुशल प्रबंधक अहमद पटेल और पत्रकार मंत्री राजीव शुक्ला
का उपयोग किया था पर सदन में राजीव शुक्ला द्वारा कराई गई किरकिरी और राहुल गांधी
के खिलाफ माहौल तैयार करने के अहमद पटेल पर लग रहे परोक्ष आरोपों से दोनों ही नेता
संकटमोचक की भूमिका में नहीं आ पा रहे हैं। नए उभरे संकटमोचक जनार्दन द्विवेदी पर
सोनिया दांव लगाने के मूड में नहीं दिख रही हैं।
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