मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

कमल नाथ के नेतृत्व वाला शहरी विकास मंत्रालय भगवान भरोसे!


कमल नाथ के नेतृत्व वाला शहरी विकास मंत्रालय भगवान भरोसे!

(महेंद्र देशमुख)

नई दिल्ली (साई)। 1980 से लगातार (उपचुनाव में एस.एल.पटवा के हाथों हुई पराजय को छोड़कर) सांसद रहने वाले वरिष्ठ सांसद कमल नाथ के नेतृत्व वाले शहरी विकास मंत्रालय की कच्छप गति पर देश की सबसे बड़ी अदालत जमकर बरसी। सर्वोच्च न्यायालय की तल्ख टिप्पणियों से उम्मीद की जा रही है कि शहरी विकास मंत्रालय की दशा और दिशा में कुछ सुधार हो। न्यायालय ने यह तक कह दिया कि इन परिस्थिति में देश को भगवान ही बचाए!
सुप्रीम कोर्ट ने देश में न्यायाधिकरणों को समुचित आवास सुविधा उपलब्ध कराने के प्रति सरकार के उदासीन रवैये पर सोमवार को तल्ख टिप्पणी की। जस्टिस आर. एम. लोढ़ा और जस्टिस एच. एल. गोखले की बेंच ने एक साल पहले गठित महादयी जल विवाद न्यायाधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों को सरकारी आवास उपलब्ध कराने में प्राधिकारियों की विफलता पर नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने सरकार के रवैये पर तल्ख टिप्पणियां करते हुए इस मामले की सुनवाई 30 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भगवान ही इस देश की मदद करें। जजों ने केन्द्र सरकार के रवैये पर चिंता व्यक्त करते हुए शहरी विकास मंत्रालय के सचिव से जवाब तलब किया और पूछा कि राजधानी में टाइप 7 और टाइप 8 के कितने बंगले खाली हैं। कोर्ट ने कहा, ‘आप गहरी नींद में चल जाते हैं और फिर चाहते हैं कि कोर्ट आपको जगाए। आप हमें ऐसा करने के लिए क्यों बाध्य करते हैं जो हम नहीं कर रहे हैं? भगवान आपकी और देश की मदद करे।
कर्नाटक और गोवा के बीच जल विवाद के निबटारे के लिए नवंबर 2010 में इस न्यायाधिकरण का गठन हुआ था। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल हरिन रावल ने अप्रैल 2012 के एक शासकीय पत्र का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधिकरण के सदस्य सामान्य पूल के तहत सरकारी आवास के हकदार नहीं है। लेकिन कोर्ट उनके इस तर्क से संतुष्ट नहीं हुआ।
जजों ने कहा, नियमों के अनुसार वे आवास पाने के हकदार हैं। आप उन्हें देने से इनकार नहीं कर सकते हैं, जब आवास उपलब्ध हैं। क्या आप चाहते हैं कि रिटायर जज दिल्ली की सड़कों पर घूमें? यदि आप नहीं चाहते हैं कि कोर्ट काम करें तो इनके लिए जजों की नियुक्ति का प्रावधान करने वाला कानून समाप्त कर दें।

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