मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

पितरों का आगमन


पितरों का आगमन

(पंडित दयानन्द शास्त्री)

नई दिल्ली (साई)। पं. दयानन्द शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार सूर्य की सहस्त्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम श्अमाश् है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को चंद्र (वस्य) का भ्रमण होता है, तब उक्त किरण के माध्यम से चंद्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व भी है।
अमावस्या के साथ मन्वादि तिथि, संक्रांति काल व्यतिपात, गजच्दाया, चंद्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण इन समस्त तिथि-वारों में भी पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जा सकता है।
ये रोज़ प्रातः और संध्या समय किया जाता है.. संध्या समय काफी उत्तम रहता है... ये पाठ प्रतिदिन भी कर सकते है.. मै ये पाठ हिंदी में दे रहा हु.. आशा करता हु की आप सब को पित्र देवो का आशीर्वाद प्राप्त होगा... धुप - दीप करके पाठ का आरम्भ करे... कल संध्या समय से शुरू कर सकते है....
ष् जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यंत तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य द्रष्टि संम्पन्न है, उन पितरो को मै सदा नमस्कार करता हु. जो इन्द्र आदि देवताओ, दक्ष, मारीच, सप्त ऋषियों तथा दुसरो के भी नेता है. कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मै प्रणाम करता हु...जो मनु आदि राजऋषियों, मुनीश्वरो तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक है, उन समस्त पितरो को मै जल और समुन्द्र में भी नमस्कार करता हु. जो नक्षत्रो, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और घुलोक तथा पृथ्वीलोक के जो भी नेता है, उन समस
्त पितरो को मै हाथ जोड़कर प्रणाम करता हु. जो देव ऋषियों के जन्मदाता, समस्त लोको द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता है, उन पितरो को हाथ जोड़कर प्रणाम करता हु. प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण तथा योगेश्वारो के रूप में स्थित पितरो को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हु. सातो लोको में स्थित सात पित्रगनो को नमस्कार करता हु. मै योगदृष्टि संम्पन्न स्वयंभू ब्रह्मा जी को प्रणाम करता हु. चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमुर्तिधारी पित्रगनो को मै प्रणाम करता हु. साथ ही संपूर्ण जगत के पिता सोम को नमस्कार करता हु. अग्निस्वरुप अन्य पितरो को भी प्रणाम करता हु क्यूंकि यह संपूर्ण जगत अग्नि और सोममय है. जो पित्र तेज में स्थित है, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते है तथा जो जगतस्वरुप और ब्रहमस्वरुप है, उन संपूर्ण योगी पितरो को मै एकाग्रचित होकर प्रणाम करता हु. उन्हें बारम्बार नमस्कार है. वे स्वधाभोजी पित्र मुझ पर प्रसन्न हो. ष्
दिव्य पितर की जमात के सदस्यगण
अग्रिष्वात्त, बर्हिषद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं।
अर्यमा
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की किरण (अर्यमा) और किरण के साथ पितृ प्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। पितरों में श्रेष्ठ है अर्यमा। अर्यमा पितरों के देव हैं। ये महर्षि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति के पुत्र हैं और इंद्रादि देवताओं के भाई। पुराण अनुसार उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र इनका निवास लोक है।
इनकी गणना नित्य पितरों में की जाती हैं। जड़-चेतनमयी सृष्टि में, शरीर का निर्माण नित्य पितृ ही करते हैं। इनके प्रसन्न होने पर पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जल दान दिया जाता है। यज्ञ में मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवता के साथ स्वाहा का श्हव्यश् और श्राद्ध में स्वधा का श्कव्यश् दोनों स्वीकार करते हैं।
सूर्य किरण का नाम अर्यमा
देसी महीनों के हिसाब से सूर्य के नाम हैं - चौत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में- मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में- इंद्र, भाद्रपद में- विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक-पर्जन्य, मार्गशीर्ष में-अंशु, पौष में- भग, माघ में- त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। (साई फीचर्स)

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