मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

शास्त्रीजी की जन्मतिथि पर संदेह


शास्त्रीजी की जन्मतिथि पर संदेह

(दिव्या शर्मा)

नई दिल्ली (साई)। 2 अक्टूबर गांधी जयंती के रूप में देष भर में मनाई जाती है और इस दिन को राष्ट्रीय अवकाष भी घोषित किया गया है। 2 अक्टूबर को ही षास्त्री जयंती भी होती है यह कम लोग ही याद रखते हैं हांलाकि आज़ाद देष के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर षास्त्री की जन्मतिथि 2 अक्टूबर है इस पर भी संदेह है। इस विषय पर जब पता किया गया तो यह तथ्य सामने आया कि वाराणसी के ईस्ट इंडिया रेल्वे स्कूल और हरीष्चन्द्र पीजी कॉलेज से अपनी षिक्षा पूर्ण करने वाले लाल बहादुर वर्मा उर्फ ननकू की कॉलेज के स्कॉलर रजिस्टर में जन्म तारीख 8 मई 1903 दर्ज है। लेकिन उसी कॉलेज में लगी प्रतिमा पर उनकी जन्म तिथि 2 अक्टूबर 1902 अंकित है। इस बारे में कॉलेज प्रबंधन के अमरेन्द्र कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि कॉलेज रिकार्ड के मुताबिक उनकी सही जन्मतिथि 8 मई है, लेकिन जब उनकी प्रतिमा लगाने के आदेष आए तो पता नहीं क्यों उसमें जन्मतिथि 2 अक्टूबर अंकित की गई। इस बारे में सरकारी अधिकारियों से भी बोला गया पर कोई जवाब नहीं मिला।
प्रयाग में जन्में षास्त्रीजी ने महज डेढ़ साल की उम्र में अपने पिता षारदा प्रसादजी को खो दिया था। उसके पष्चात वे अपनी मां के साथ वाराणसी में रहने लगे और वहीं से अपनी षिक्षा पूर्ण की। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण रोज़ाना नदी तैर कर रामनगर से बनारस आकर पढ़ने की लगन रखने वाला यह छात्र सातवी कक्षा में फीस नहीं दे पाने के कारण स्कूल से निकाला जा रहा था लेकिन इतने मेघावी छात्र को प्रबंधन खोना नहीं चाहता था इसलिए सभी की सहमती से उन्हें पढ़ने की अनुमति दे दी गई।
अपने स्कूली षिक्षक से गुलाम भारत की कहानियां सुनकर वह आज़ादी की जंग में षामिल होने के लिए प्रेरित होने लगे और फिर एक दिन वाराणसी में गांधीजी से असहयोग आंदोलन के बारे मंे सुनकर वह खुद को रोक नहीं पाए और उसमंे षामिल हो गए। उसी दौरान प्रतिबंधित जुलूस का हिस्सा होने के दोष में उन्हें पहली बार जेल हुई। कुछ वर्ष बाद उन्हें इलाहाबाद की जिला कांग्रेस कमेटी का सेक्रेटरी बना दिया गया। सन् 1929 में वहीं से उन्होंने पूर्ण स्वराजके लिए संघर्ष षुरू किया।
आज़ादी के बाद नेहरू सरकार में उन्हें मिनिस्टर ऑफ पुलिस चुना गया । वह रेल मंत्री, संचार मंत्री और गृह मंत्री के पद पर भी रहे। 1964 में नेहरू के देहांत के बाद वह प्रधानमंत्री बने। उनकी दूरदर्षिता इस बात से सिद्ध होती है कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने लोकपाल बिल का प्रस्ताव रखा था।
भारत रत्न से सम्मानित लाल बहादुर षास्त्री ने हमेषा पूरी ईमानदारी और लगन से देष की सेवा की। 1966 में भारत पाक युद्ध पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से युद्ध विराम घोषित करने के बाद वह काग़जी कार्यवाही के लिए ताषकंद गए थे जहां संदिग्ध हालत में उनकी मृत्यु हो गई। हांलाकी उनकी मौत पर कई अफवाहें फैली की उनको ज़हर दिया गया था लेकिन उस समय की संचार मंत्री इंदिरा गांधी ने इन सब बातों को झूठ बताया और पूरे षासकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
उनकी मौत के बाद वाराणसी में उनके निवास स्थान पर सरकार ने पुस्तकालय खोलने का वादा किया था जिसके पूरे होने का आज भी वहां के लोगों को इंतज़ार है। हमारे देष में जहां एक ओर उसी प्रदेष की पूर्व मुख्यमंत्री अपनी प्रतिमाओं पर करोड़ों रूपए बर्बाद कर चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर आज़ादी की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे लालबहादुर षास्त्री को देष ही नहीं उनके प्रदेष के नेतागण और अफसरों ने भी पूरी तरह भुला दिया है। वादे को पूरा कर अगर वाराणसी में पुस्तकालय बन पाता तो वहां के कई गरीब बच्चों के लिए मददगार साबित होता। यहां तक कि उनकी सही जन्मतिथि जानने में भी किसी की कोई रूचि नहीं है। अगर सरकारी कागज़ातों में षास्त्रीजी की जन्मतिथि को लेकर कोई त्रुटि हुई है तो सूचना मिलने पर भी उसे सुधारने के प्रयास नही किए गए । षास्त्रीजी के देष के लिए दिए गए योगदान और बलिदान को हम नमन करते हैं।

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