अब तो शर्म आनी चाहिए जनमंच को:
अड्व्होकेट सोनकेशरिया
(ब्यूरो)
सिवनी (साई)। जनमंच के शिरोमणि पत्रकार
वार्ता में बड़े ही अभिमान के साथ कहते हैं कि जनमंच सिवनी की हर समस्या के लिए
संघर्षरत रहेगा, पर जिस सड़क के निर्माण के लिए जनमंच का गठन हुआ था उस काम में जनमंच की
रूचि नहीं है। जिला कलेक्टर के 18 दिसंबर 2008 के आदेश को रद्द कराने के लिए जिला
कलेक्टर से मिलने के बजाए माननीय सर्वोच्च न्यायालय की दौड़ लगाने वाले जनमंच को
शर्म आनी चाहिए कि इस सड़क को मोटरेबल बनाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय को
सुमोटिव एक्शन लेना पड़ा है। उक्ताशय की बात अड्व्होकेट वीरेंद्र सोनकेशरिया द्वारा
आज यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कही गई है।
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने माननीय उच्च
न्यायायालय का समूचे सिवनी जिले के निवासियों की ओर से आभार माना है कि उसने
एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर को बुलाकर इस सड़क को मोटरेबल बनाने के निर्देश दिए
हैं। अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने अदालत के मित्र के बतौर पैरवी करने वाले वरिष्ठ
अधिवक्ता राजेंद तिवारी का भी आभार व्यक्त किया है जिन्होंने बीते दिनों कटनी
जबलपुर सड़क की सुनवाई के दरम्यान इस सड़क के बारे में भी पहल की थी।
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने कहा कि उच्च
न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े और जस्टिस मूलचंद गर्ग की
युगल पीठ के समक्ष तिवारी ने कहा था कि एनएचएआई के चेयरमेन को ही बुलाकर पूछा जाए
कि सिवनी से खवासा तक के मार्ग का निर्माण कब तक हो पाएगा, क्योंकि इस मार्ग से गुजरने वाले वाहनों
एवं उनमें सवार यात्रियों को काफी यातनाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके जवाब में
एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सिंघई ने एक बार फिर उच्च न्यायालय को भरोसा
दिलाया है कि 20 दिसंबर तक मोहगांव से खवासा तक का मार्ग मोटरेबल हो जाएगा।
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने कहा कि चर्चा
है कि खवासा का आरटीओ, सेल टेक्स और मण्डी आदि का बेरियर अवैध वसूली का पर्याय बन चुका है।
पीडी एनएचएआई द्वारा यह भी कहा गया कि इसके आसपास पांच पांच सौ मीटर तक की सड़क को
एनएचएआई द्वारा बिना पुलिस के सहयोग से नहीं बनाया जा सकता है।
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने कहा कि उनके
संज्ञान में इस बात को भी लाया गया है कि सिवनी में सड़क की लड़ाई लड़ने वाले अनेक
संगठनों यहां तक कि जबलपुर से नागपुर जाने वाले अनेक लोगों और अधिवक्ताओं द्वारा
जनमंच शिरोमणि से उन फोटोकापियों की मांग की गई थी जो 2009 में गठित जनमंच को चंदे के रूप में
प्राप्त राशि से एकत्र की गई थीं, किन्तु किसी को एक भी कागज उपलब्ध नहीं
कराया गया।
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने जनमंच शिरोमणि
से कहा कि उच्च न्यायालय में अपील करने के लिए शहर के एक बस संचालक के पैसे देने
से इंकार को तो पत्रकार वार्ता में उछाल दिया जाता है पर यह बात क्यों छिपाई जाती
है कि जब इस सड़क के संबंध में बीते दिनों सिवनी के एक वरिष्ठ अधिवक्ता मित्र
द्वारा उच्च न्यायालय में प्रकरण लगाने की बात कही जाती है तो जनमंच शिरोमणि मौन
साध लेते हैं। सारी स्थिति परिस्थिति देखकर यही प्रतीत होने लगता है कि जनमंच
द्वारा सिवनी के हित में संघर्ष के बजाए सिवनी से खवासा तक के निर्माण करने वाली
सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी के एजेंट के बतौर काम किया जा रहा है। सद्भाव कंपनी का
विरोध भी अंतिम दिनों में अचानक ही किए जाने से अनेक संदेहास्पद प्रश्न भी लोगों
के जेहन में घुमड़ रहे हैं?
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने कहा कि क्या
सिवनी की सड़क निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले हजारों लोगों के जनमंच जो अब महज
तीन चार लोगों में ही तब्दील हो चुका है के शिरोमणि जनता को यह बताने की जहमत
उठाएंगे कि वर्ष 2009 से अब तक मोहगांव से खवासा तक के सड़क को मोटरेबल बनाने के लिए उसके
द्वारा सद्भाव कंपनी पर दबाव क्यों नहीं बनाया गया? क्या कारण है कि अचानक ही सद्भाव के
प्रति जनमंच के मुठ्ठी भर लोगों का गुस्सा तेजी से उमड़ पड़ा?
अड्व्होकेट सोनकेशरिया ने कहा कि पत्रकार वार्ता लेने और छपास के शौकीन जनमंच
शिरोमणि द्वारा पिछली पत्रकार वार्ता में कुछ पत्रकारों द्वारा जबर्दस्ती लिए गए
कागजों (जो अपनी संपत्ति समझकर जनमंच शिरोमणि किसी को सौंपना नहीं चाहते) से साफ
हो जाता है कि प्रशासन भी जनमंच के दो सदस्यों को जनमंच का सदस्य नहीं वरन सामाजिक
कार्यकर्ता ही मानता है। उन्होने कहा कि अब जनमंच की असलियत जनता के सामने आ चुकी
है, कि यह
लोगों के लिए संघर्ष करने के बजाए स्वहित साधने और किसी व्यक्ति विशेष के हाथों की
कठपुतली बनकर रह गया है।
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