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चश्मे बद्दूर
कलाकार: अली जाफर, दिव्येंदू शर्मा, सिद्धार्थ नारायण, तापसी पन्नू, ऋषि कपूर, लिलिट दूबे, अनुपम खेर
निर्माता निर्देशक: डेविड धवन
गीत: नीलेश मिश्रा, कौसर मुनीर,
संगीत: साजिद-वाजिद
80 का दशक ग्लैमर इंडस्ट्री में उस दौर की
याद दिलाता है, जब फैमिली क्लास ने सिनेमाघरों से दूरी बनाई। इसी दौर में शुरू हुआ सिंगल
स्क्रीन पर ताले लगने का दौर अभी भी थमा नहीं है। ट्रेड ऐनालिस्ट इस दौर को ग्लैमर
इंडस्ट्री का बुरा वक्त मानते हैं। पिछले हफ्ते इसी दशक में रिलीज़ हुई हिम्मतवाला
के रीमेक को दर्शकों और क्रिटिक्स ने धो दिया।
डेविड धवन ने भी इसी दौर में रिलीज हुई
सई परांजपे की फिल्म के सीक्वल को इस हफ्ते रिलीज़ किया। सई नहीं चाहती थीं कि उनकी
फिल्म को एकबार फिर नए सिरे से बनाया जाए। लेकिन प्रॉडक्शन कंपनी ने सई की इच्छा
को दरकिनार करके डेविड को इस फिल्म को नए सिरे से बनाने का ग्रीन सिग्नल दिया। ऐसा
पहली बार होगा जब किसी मल्टिप्लेक्स में इसी टाइटल से बनी सई और डेविड धवन की
दोनों फिल्में एकसाथ चल रही होंगी।
वैसे, अगर आपने डेविड की कुली नंबर वन, राजा बाबू और रास्कल्स वगैरह कोई फिल्म
पहले से देखी है, तो यकीनन आप डेविड की पूरी फिल्म तो दूर, फिल्म के किसी एक सीन का मुकाबला भी सई
की फिल्म से नहीं करेंगे। बॉलिवुड में डेविड अपने शुरुआती दौर से कहते आए हैं कि
उनकी फिल्म देखने जा रहे हैं तो दिमाग घर रखकर जाएं।
फिल्म की कहानी तीन दोस्तों के
इर्द-गिर्द घूमती है। गोवा की एक छोटी सी बस्ती में सिड (अली जाफर), जय (सिद्धार्थ नारायण) और ओमी (दिव्येंदू
शर्मा) एक साथ रहते हैं। कहने को तो तीनों पक्के दोस्त हैं, लेकिन बात जब लड़की की हो तो ओम और जय
बाजी मारने आगे हो जाते है। खूबसूरत लड़कियों का पीछा करना ओमी और जय की पुरानी आदत
है। एक दिन जब इनके पड़ोस में एक खूबसूरत लड़की सीमा (तापसी पन्नू) रहने आती है, तो जय और ओमी दोनों उसे अपना बनाने में
लग जाते हैं। दरअसल, सीमा अपने घर से भागकर अंकल ( अनुपम खेर) के पास रहने आई है। सीमा के
पिता सेना में आला अफसर है और अपनी बेटी की शादी किसी सिविलियन से करने को राजी
नहीं है। सीमा सिद्धार्थ की तरफ आकर्षित होने लगती है। सीमा और सिद्धार्थ की बढ़ती
नजदीकियों को देख जय और ओमी इनके बीच दरार डालने में लग जाते है। और सिद्धार्थ की
नजरों में सीमा की इमेज गिराने के लिए रोज नई-नई चालें चलते हैं। इस कहानी के साथ
साथ फिल्म में जोसफ ( ऋषि कपूर) और जोसफनी ( लिलिट दूबे) की लव स्टोरी भी चलती है
जो दर्शकों को बांध नहीं पाती।
ऐक्टिंग के मामले में अली जाफर, सिद्धार्थ और दिव्येंदू शर्मा की तुलना
पिछली फिल्म के कलाकारों फारूख शेख, रवि वासवानी और राकेश बेदी से करना
बेमानी होगा। अगर इस कसौटी पर इनकी ऐक्टिंग को परखा जाए तो अली जाफर को छोड़ हर कोई
निराश करता हैं। वैसे भी डेविड अपनी फिल्मों में कलाकारों को अपने ढंग से ऐक्टिंग
करने की छूट देते हैं। यही वजह है कि सिद्धार्थ और दिव्येंदू और अनुपम खेर लाउड
डायलॉग डिलिवरी और ओवर ऐक्टिंग के शिकार हैं। अली जाफर कुछ सीन में प्रभावित करते
हैं। ऋषि कपूर ने किस मजबूरी में इस फिल्म को किया यह तो वही बता सकते हैं। लिलिट
दूबे, ने वही किया, जो उन्हें करने के लिए दिया गया। न्यूकमर तापसी पन्नू के चेहरे की
मासूमियत देखने लायक है।
डेविड धवन बरसों से जैसा करते आए हैं, इस बार भी उन्होंने वही कुछ दोहराया है।
डेविड के काम करने का स्टाइल यंग डायरेक्टरों की सोच से अलग है। वह ऐसी फिल्म
बनाते हैं, जिसमें कोई कुछ भी कर सकता है। यही सब इस फिल्म में भी है।
संगीत: इस फिल्म का गाना श्हर एक फ्रेंड
कमीना होता है...श् रिलीज से पहले कई म्यूजिक चार्ट में टॉप फाइव में शामिल हो
चुका है। श्अंधा घोड़ा रेस में दौड़ाश् गाने का फिल्मांकन अच्छा बन पड़ा है।
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