काबुल में ब्रितानी
कब्रिस्तान!
(जाहिद खान)
काबुल (साई)।
दुनिया में बहुत ही कम देश ऐसे हुए हैं जिन पर इतने विदेशी आक्रमण हुए हों जितने
अफगानिस्तान पर हुए हैं। इस देश की जमीन पर ना जाने किस किस देश के सिपाही पहुँचे।
ऐसे ही विदेशी सिपाहियों का एक खास कब्रिस्तान काबुल में अफगानिस्तान के इतिहास पर
नजर डालने का एक अच्छा तरीका है। काबुल के शेरपुर इलाके में ऊँची दीवारों से घिरे
इस परिसर को देख कर कोई कह नहीं सकता कि इसके अंदर कब्रिस्तान है।
जैसे काबुल इन
दीवारों से दूर ही रहता है वैसे ही इन दीवारों के अंदर जाने पर महसूस होता है कि
यह किब्रस्तान भी काबुल से दूर ही रहता है। ।ह कब्रिस्तान 19वीं सदी में
ब्रितानियों ने बनाया था। गुजरे जमानों की कई जंगों में शरीक रहे करीब 160 ब्रितानी सिपाही
यहाँ दफन हैं।
ब्रितानियों ने
सबसे पहले काबुल पर कब्जा साल 1839 में किया था। यूं तो कब्जा बिना किसी अधिक
मशक्कत के हो गया था लेकिन इस पर कब्जा बना नहीं रह सका था। केवल दो साल में अफगान
विद्रोह के बाद एक लड़ाई में काबुल में 16000 ब्रितानी और भारती। सिपाहियों को उनके
परिवारों और नौकरों के साथ कत्ल कर दिया गया था। साल भर के भीतर बदले की आग में
जलती ब्रितानी सेनाएं काबुल में फिर लौटीं और आधे शहर को ध्वस्त कर दिया।
इन तमाम युद्धों के
आक्रमण कारी बाद यह समझ गये कि काबुल पर कब्जा करना आसान है लेकिन इस कब्जे को
बनाये रखना बेहद महँगा है। ब्रितानियों को 35 साल में फिर अफगानिस्तान में जंग लड़ने के
लिए लौटना पड़ा। काबुल के इस गोरा कब्रिस्तान में दफन ज्यादातर ब्रितानी सैनिक उसी
दौर के हैं। कब्र के पत्थरों को एक जगह सलीके से लगा दिया गया है।
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