मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

स्वाइन फ्लू: भय के वायरस का हमला तेज


स्वाइन फ्लू: भय के वायरस का हमला तेज

(लिमटी खरे)

मेक्सिको के रास्ते भारत में पहुंची महामारी स्वाइन फ्लू का कहर शनैः शनैः बढते ही जा रहा है। पहले इसकी जद में देश के महानगर आए फिर इस बीमारी ने राज्यों की ओर रूख करना आरंभ कर दिया है, जो सोचनीय है। पिछले एकाध साल में तो इस बीमारी ने अपना कहर कुछ कम बरपाया लेकिन एक बार फिर अब यह अपना रोद्र रूप दिखा रही है। राजधानी दिल्ली में ही स्वाइन फ्लू के ढाई दर्जन से ज्यादा मरीजों को चिन्हित किया गया है। देश भर में इस भय के वायरस से लोग भयभीत हैं। सांसों से फैलने वाले इस वायरस के अनेक खतरे हैं सबसे दुखद पहलू तो यह है कि इनके बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग भी तीन सालों में ठीक तरीके से लोगों को समझा नहीं पाया है।

राजधानी दिल्ली में स्वाइन फ्लू के २७ नए रोगियों का पता चला है। इसमें एच-१ एन-१ से प्रभावित रोगियों के इलाज से जुड़े एक अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी शामिल हैं। इस बीमारी की आशंका वाले लोगों को सफदरजंग अस्पताल, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल और अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। दिल्ली सरकार ने स्वाइन फ्लू के इलाज के लिए पिछले सप्ताह १७ सरकारी और पांच निजी अस्पतालों की पहचान की थी। दिल्ली में स्वाइन फ्लू से तीन लोगों की मौत हो चुकी है।
देखा जाए तो जागरूकता की कमी के चलते पिछले एक दशक मंे हिन्दुस्तान में नई नई बीमारियों ने अपना घर बना लिया है। लगभग आठ साल पहले दिल्ली को डेंगू नामक जानलेवा बुखार ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। इसके बाद डेंगू ने दो सालों के अंतराल के बाद राज्यों की ओर रूख किया है। आज देश भर में डेंगू नामक बीमारी से हजारों की तादाद में मरीज ग्रस्त हैं। बीसवीं सदी के आरंभ के साथ ही देश में कालरा, हैजा, कालाजार, टीबी आदि बीमारियों ने देश में आतंक बरपाया था, जिसका इलाज उस काल में संभव नहीं था। समय के साथ इन असाध्य बीमारियों का इलाज खोजा गया और इन पर नियंत्रण पाया गया।
नब्बे के दशक में असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त आदि से फैलने वाले एड्स ने सभी को डरा दिया था। आज भी एड्स का खौफ बरकरार ही है। इक्कीसवीं सदी में डेंगू, चिकन गुनिया, बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों ने अपने पैर पसारे। वायरस जनित इन बीमारियों का इलाज है, किन्तु जागरूकता का अभाव लोगों को असमय ही काल के गाल में ढकेल रहा है। एक बात आज भी समझ से परे ही है कि जब इस तरह की कोई बीमारी या समस्या सर उठाती है, तो जागने और उससे निपटने में हमारी सरकारें किस बात पर विचार कर देरी करतीं हैं। लगता है कि सरकारें इनसे निपटने शुभ महूर्त का इंतेजार ही किया करतीं हैं। स्वाइन फ्लू के संक्रमण हेतु गंदगी सबसे बडा वरदान साबित हो रही है। विस्फोटक आबादी इस बीमारी के लिए उर्वरक का काम कर रही है। जागरूकता के अभाव के चलते जगह जगह गंदगी और भीड भाड इस बीमारी के संवाहक का ही काम कर रही है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश की इस तरह की परिस्थितियां स्पर्श और स्वांस से बढने वाली इस बीमारी के लिए उपजाउ माहौल के मार्ग ही प्रशस्त कर रहीं हैं।
डेंगू, बर्ड फ्लू, चिकन गुनिया, स्वाईन फ्लू जैसी जानलेवा बीमारियांे का सकारात्म पहलू यह है कि अब तक इन बीमारियों ने शहरों में ही अपना डेरा जमाया हुआ है। बिना चिकित्सकों के नीम हकीमों के भरोसे रहने वाले गांवों की ओर अगर इन बीमारियों ने रूख कर लिया तो स्थिति निश्चित तौर पर बेकाबू हो जाएगी। इसका प्रमुख कारण यह है कि भले ही सरकारें ग्रामीण स्वास्थ्य के बारे में चाहे जो दावा करें किन्तु जमीनी सच्चाई यह है कि ग्रामीण स्वास्थ्य के नाम पर सिर्फ और सिर्फ सरकारी आवंटनों को डकारा जा रहा है। करोड़ों अरबों रूपए व्यय कर इन बीमारियों पर नियंत्रण का दावा कर आधा बजट अंदर करने वाली सरकारों में बैठे नुमाईंदें को अब अपने अलावा आम जनता के बारे में भी सोचना होगा, वरना आने वाले कल की भयावह तस्वीर में भरे रंगों में उनकी भागीदारी से उन्हेें कोई नहीं रोक पाएगा। हमारी नजर में स्वाईन फ्लू जानलेवा जरूर है पर यह भय का वायरस है, जो आने वाले कल में यर्थाथ में तब्दील हो भी सकता है।
आंकड़ों पर अगर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि वर्ष 2010 के मई तक भारत में 1035 लोगों की मृत्यु स्वाइन फ्लू से हुई। इतना ही नहीं शून्य दशमलव शून्य दो फीसदी है मृत्यु की दर स्वाइन फ्लू वायरस के संक्रमण के कारण। इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि 1918 में कुल वैश्विक आबादी की तीन फीसदी आबादी की मृत्यु स्वाइन फ्लू महामारी के कारण हुई थी। स्वाइन फ्लू का खतरा एक बार फिर हमारे सामने है। वर्ष 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैश्विक महामारी घोषित किये जाने के बाद इसकी रोकथाम के उपाय किये गये थे, लेकिन इसका वायरस फिर से लोगों की जान लेने लगा है।
स्वाइन फ्लू का इतिहास अगर देखा जाए तो 1889 से पहले एच1 से मानवों में स्वाइन फ्लू का वायरस संक्रमित हुआ। लेकिन, इस वर्ष रूस में एच2 वायरस सामने आया और पूरी दुनिया में फैल गया। इससे 10 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। इसके उपरांत  1918 में स्पेनिश फ्लू से पांच करोड़ लोगों की मौत हुई और वैश्विक आबादी की एक-तिहाई आबादी इससे संक्रमित हुई। फिर 1931 में अमेरिका के इवोआ में सूअर से एच1एन1 का लक्षण सामने आया। 1957 में एच2एन2 वायरस से एशिया में फ्लू महामारी पैदा हुई। इससे पूरी दुनिया में 10 से 15 लाख लोगों की मौत हुई। ग्यारह साल बाद 1968 में एच3एन3 वायरस से हांगकांग में महामारी फैली और पूरी दुनिया में लगभग दस लाख लोगों की मृत्यु हुई। सत्तर के दशक में एक बार फिर यह सक्रिय हुआ और 1976 में एच1एन1 वायरस सूअर से इंसानों में फैला। अमेरिका में अधिक प्रकोप देखने को मिला। बीसवीं सदी के अंत में 1998 में अमेरिका में फिर एच1एन1 सामने आया। वैक्सीन से इसे नियंत्रित करने की कोशिश की गयी, लेकिन सफलता नहीं मिली।
इक्कीसवीं सदी के आरंभ में 2004-06 में एशियाई देशों में एच5एन1 वायरस का संक्रमण हुआ। 2009 में यह भारत आया इसकी भयावहता को देखकर 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एच1एन1 को वैश्विक महामारी घोषित करने का फैसला किया। इसी साल जुलाई में शोध में पाया गया कि स्वाइन फ्लू टैमीफ्लू दवा के प्रति प्रतिरोधक है।
फ्लू के बारे में चिकित्सकीय राय है कि यह कई प्रका का होता है। एन्फ्लुएंजा के तीन प्रकारों से इंसानों में फ्लू होता है। इसके अलावा दो अन्य तरह के एन्फ्लुएंजा होते हैं, जो सूअरों में होता है।
एन्फ्लुएंजा ए, सूअरों में होता है। यह स्वाइन एन्फ्लुएंजा के नाम से भी जाना जाता है। इसी एन्फ्लुएंजा के उप प्रकार हैं-एच1एन1, एच1एन2, एच2एन3, एच3एन1 और एच3एन2 वायरस। इसके अलावा एन्फ्लुएंजा बी, वायरस मानवों में अधिक संक्रमित होता है। एन्फ्लुएंजा सी, के बारे में बताते हैं कि यह एन्फ्लुएंजा वायरस मानवों और सूअरों दोनों को संक्रमित करता है, लेकिन यह पक्षियों को संक्रमित नहीं करता है। अतीत में सूअरों और मानवों में संक्रमण के मामले सामने आये हैं। उदाहरण के तौर पर, एन्फ्लुएंजा सी से जापान और कैलिफोर्निया में बच्चों में इसका संक्रमण पाया गया था। एन्फ्लुएंजा के इस प्रकार से मानवों में महामारी का खतरा नहीं होता।
दरअसल, फ्लू का संक्रमण एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसे हमने नियंत्रित तो कर लिया है, लेकिन इससे पूरी तरह बचने का उपाय फिलहाल चिकित्सा विज्ञान में नहीं है। यही वजह है कि बार-बार इसका संक्रमण हमें अपनी चपेट में लेने की कोशिश करता है। वर्ष 1918 और 1976 में इसके प्रकोप ने करोड़ों लोगों की जान ले ली थी। यही कारण है कि जब जब यह अपना रोद्र रूप दिखाता है समाज में एक दहशत का वातावरण पसर जाता है। मेक्सिको में जन्में भय के इस वायरस से सिर्फ भारत ही नहीं, चीन और नेपाल के अलावा दुनिया के कई देशों में स्वाइन फ्लू के मामले फिर से सामने आने लगे हैं। इस बार यह लगभग तीन-चार साल बाद लौटा है। यह संक्रमण कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा 1918-20 के दौरान हुए स्पेनिश फ्लू की तबाही से लगाया जा सकता है। उस वक्त इस फ्लू ने लगभग 50 करोड़ लोगों को बीमार किया था और करीब दो से पांच करोड़ लोगों की मृत्यु हो गयी थी।
वैसे, स्वाइन फ्लू एक घातक वायरस है, जो सूअरों से फैला है। सबसे पहले इस बीमारी के लक्षण मैक्सिको के एक पिग फार्म के आसपास रह रहे लोगों में पाये गये थे। दरअसल, यह सूअरों में होने वाला एक प्रकार का बुखार है, जो उनकी सांस से जुड़ी बीमारी है। यह जुकाम से संबंधित एक वायरस से पैदा होता है। ये वायरस आमतौर पर चार तरह के होते हैं- एच1एन1, एच1एन2, एच3एन2 और एच3एन1। इनमें एच1एन1 सबसे खतरनाक है और दुनियाभर में यही वायरस सबको अपनी चपेट में ले रहा है।
वैज्ञानिकों की मानें तो एच1एन1 स्वाइन फ्लू वायरस एंटीवायरल ड्रग्स टैमीफ्लू और रेलेंजा के प्रति काफी संवेदनशील होता है। ये दवाइयां तभी असरकारी होती हैं, जब फ्लू के लक्षण सामने आने के 48 घंटे के भीतर ली जाती हैं। क्योंकि इन वायरसों पर पुरानी फ्लू दवाइयों का असर नहीं पड़ता है। स्वाइन फ्लू के लिए तीसरी दवा है-पेरामिविर। लेकिन, इस दवा का प्रयोग उन रोगियों पर किया जाता है, जो अस्पताल में स्वाइन फ्लू से गंभीर रूप से बीमार होते हैं।
चिकित्सकों की मानें तो स्वाइन फ्लू का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन कुछ हद तक इसकी रोकथाम की जा सकती है। टैमीफ्लू और रेलिंजा नामक एंटी वायरल दवा इसके लिए काफी मददगार होती हैं। चूंकि, स्वाइन फ्लू गंदगी से अधिक फैलती है, तो इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका साफ-साफाई है। छींकते समय हमेशा अपनी नाक और मुंह कपड़े से ढक कर रखना चाहिए और हाथ जरूर धोना चाहिए।
भारत में यह काफी हद तक आतंक बरपा चुका है। पंजाब इसकी जद में सबसे अधिक आया है। स्वाइन फ्लू से पंजाब में अभी तक 20 लोगों की जान जा चुकी है। वहीं कई लोग इससे संक्रमित हैं। पिछले साल पंजाब में स्वाइन फ्लू से 13 लोगों की मौत हुई थी। वहीं हरियाणा में इससे अभी तक चार लोगों की मृत्यु हुई है, वहीं राजधानी चंडीगढ़ में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है। लेकिन, सबसे बड़ी चिंता इस बात से है कि हरियाणा में इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में इस साल जनवरी से लेकर अभी तक दिल्ली में स्वाइन फ्लू के 60 मामले सामने आये हैं। जबकि, 2012 में कुल 78 मामले सामने आये थे। वहीं राजस्थान सिर्फ जनवरी महीने में ही स्वाइन फ्लू से 64 लोगों की मृत्यु हुई। इसमें सबसे अधिक राजधानी जयपुर में 20 लोगों की मृत्यु हुई है। 13 दिसंबर से अभी तक 450 से अधिक लोगों में यह लक्षण पाया गया है।
इसके बारे में तरह तरह की भ्रांतियां देश में फैली हुई हैं। वैसे, किसी मौसमी फ्लू वायरस की तरह इसका संक्रमण होता है। सर्दी-जुकाम और खांसी से यह वायरस हवा में संक्रमित होता है और दूसरे तक पहुंचता है। एच1एन1 वायरस एक मानव वायरस है। यह वायरस इंसानों से फैलता है, न कि सूअरों द्वारा एक दूसरे तक पहुंचता है। चिकित्सकों की मानें तो आम महिलाओं की अपेक्षा गर्भवती महिलाओं में इसके संक्रमण की आशंका छह गुना अधिक होती है। अस्थमा, किडनी, लीवर, एचआइवी से संक्रमित लोगों में स्वाइन फ्लू होने की आशंका काफी अधिक होती है।
सरकार को चाहिए कि इसके लक्षण, बचाव के उपाय आदि के बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करवाया जाए, वस्तुतः सारे प्रचार प्रसार की बातें महज कागजों तक ही सीमित रह रही है। इसके लक्षणों में बुखार, कफ, गले में दर्द, बदन व सर दर्द और थकान की शिकायत के साथ ही साथ डायरिया और उल्टी की समस्या भी प्रमुख है। (साई फीचर्स)

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