मंगलवार, 17 जुलाई 2012

एक अदद मकान नहीं बन पाया पेंसठ साल में!


एक अदद मकान नहीं बन पाया पेंसठ साल में!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या कहा जाएगा कि आजादी के छः दशकों बाद भी भारत गणराज्य की सरकारें देश के प्रथम नागरिक के लिए एक अदद मकान नहीं बना पाई है। आज भी रायसीना हिल्स पर दासता के प्रतीक ब्रिटिश वायसराय के लिए बने सरकारी आवास में आज भी देश की सरकारों द्वारा देश के प्रथम नागरिक को ससम्मान निवासरत किया हुआ है।
इन छः दशकों में देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली लगभग सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के सरमायादार भले ही देश को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर निरूपित करती आई हो, सियासतदारों ने अपने खुद के रहने के लिए एक से एक बढ़िया मंहगी आधुनिक अट्टालिकाएं खड़ी कर लीं हों पर भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों को गुलाम भारत में बनी इन इमारतों में ही चैन की नींद आ रही है।
यहां उल्लेखनीय होगा कि मध्य प्रदेश की स्थापना के साथ ही वहां सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से वल्लभ भवन का निर्माण करवाया गया जो आज देश के हृदय प्रदेश के मंत्रालय के रूप में आन, बान और शान से खड़ा हुआ है। एमपी में ब्रितानी हुकूमत के मिंटो हाल जो विधानसभा हुआ करता था के स्थान पर नब्बे के दशक के अंतिम सालों में नया विधानसभा भवन बनकर तैयार कर लिया गया।
देश के प्रथम नागरिक के सरकारी कार्यालय और आवास को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पी।ए।संगमा ने कबाडखानाजरुर कह दिया हो लेकिन देश के जिस आलीशान भवन में रहने का गौरव प्रथम नागरिक को मिलता है उसकी भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार मंजिला इस भवन में 340 कमरे हैं और सभी कमरों का उपयोग किया जा रहा है।
इस शानदार इमारत के मुख्य शिल्पकार थे एडविन लैंडसोर लुटियंस। राष्ट्रपति भवन के बारे में लुटियंस ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि इस भवन के निर्माण में दो युद्धपोतों से कहीं कम राशि खर्च हुई है। इस भवन का निर्माण कार्य मात्र डेढ़ करोड़ रुपये से कम लागत में 17 वर्षाे में पूरा किया गया।
लगभग दो लाख वर्ग फुट में बना राष्ट्रपति भवन आजाद से पहले तक ब्रिटिश वायसराय का सरकारी आवास था। करीब 70 करोड़ ईटों और 30 लाख घन फुट पत्थर से बने इस भवन के निर्माण में एक करोड चालीस लाख रुपये खर्च हुए थे। राष्ट्रपति पद के लिए संप्रग के उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी ने हाल में एक साक्षात्कार में कहा था कि, ‘‘ मुझे सुबह टहलने की आदत है। मैं अपने लॉन में 30, 40 चक्कर लगाता हूं। राष्ट्रपति भवन का लॉन काफी बडा है। किसी को इतने चक्कर लगाने की जरुरत नहीं होगी।’’
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति भवन की देखरेख के कार्य के लिए 439 कर्मचारियों के पद मंजूर किये गए हैं जिनमें से 334 कर्मचारी अभी कार्यरत हैं। राष्ट्रपति सचिवालय में काम करने वाले कर्मचारियों एवं अधिकारियों के 347 पद मंजूर हैं जिसमें से 285 कर्मचारी अभी कार्यरत हैं।
राष्ट्रपति भवन के स्तंभों पर उकेरी गई घंटियां, जैन और बौद्ध मंदिरों की घंटियों की अनुकृति है। भवन के स्तंभों के निर्माण की प्रेरणा थी कर्नाटक में मूडाबिर्दी स्थित जैन मंदिर। हालांकि लुटियंस ने कहा था कि भवन के गुंबद रोम के मंदिर पैन्थियन आफ रोम की याद दिलाता है। राष्ट्रपति भवन में बने चक्र, छज्जे, छतरियां और जालियां भारतीय पुरातत्व पद्धति की याद दिलाते हैं।
1911 में दिल्ली दरबार में फैसला किया गया कि भारत की तत्कालीन राजधानी कलकता से दिल्ली स्थानान्तरित की जायेगी। उसके बाद यह निर्णय भी लिया गया कि दिल्ली में ब्रिटिश वायसराय के रहने के लिए एक शानदार इमारत का निर्माण किया जाए। राष्ट्रपति भवन के प्रमुख इंजीनियर हक कीलिंग थे जबकि इस भवन का अधिकतर निर्माण कार्य ठेकेदार हसल अल राशिद ने कराया था। भारत के गर्वनर जनरल के तौर पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी राष्ट्रपति भवन में रहे थे। 26 जनवरी 1950 को प्रथम राष्ट्रपति के रुप में यह भवन डा। राजेन्द्र पसाद का आवास बना, तभी से यह देश के राष्ट्रपति का सरकारी आवास बना हुआ है।
राष्ट्रपति भवन का खास आकर्षण मुगल गार्डन है। मुगल गार्डन के साथ राष्ट्रपति भवन के बगीचे की देखरेख के लिए सवा दो सौ से अधिक माली लगे हैं। मुगल गार्डन में 110 विभिन्न प्रजातियों के औषधीय पौधे, 200 गुलाब की प्रजातियां और रंग बिरंगे फूल हैं। राष्ट्रपति भवन में काफी संख्या में पशु पक्षी भी हैं।

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