खुलने लगीं कोयला
घोटाले की परतें
(मणिका सोनल)
नई दिल्ली (साई)।
भारत के महालेखापरीक्षक की ‘परफॉर्मेस ऑडिट ऑफ कोल ब्लॉक एलोकेसंस’ रिपोर्ट के अंश लीक
होने के बाद जारी सीबीआइ जांच के दौरान कोयला घोटाले से जुड़ी कई अनकही व अनसुनी
बातें सामने आ रही हैं। लीक ड्राफ्ट रिपोर्ट में 2004-2009 के बीच कोल ब्लॉक
आवंटन से सरकारी खजाने को 10.67 लाख करोड़ रुपये की चपत लगने की बात कही गयी
है।
कोयला मंत्रलय के
सूत्रों ने समाचार एजेंसी आफ इंडिया को बताया कि दस्तावेज बताते हैं कि 2005 से 2010 के बीच सरकार ने 150 कोल ब्लॉक के
कैप्टिव यूज के आवेदन मंगाये। करीब 1400 कंपनियों ने आवेदन किया। इनमें 178 कंपनियों को कोल
ब्लॉक आंवटित किये गये। कुछ ब्लॉकों को कई कंपनियों की साङोदारी में आवंटित किया
गया। इस प्रक्रिया में मूल्य आधारित नीलामी नहीं हुई। आवंटन प्रक्रिया में खामियों
का लाभ निजी कंपनियों ने खूब उठाया। दरअसल, कोयला मंत्रलय ने पहले विज्ञापन के जरिये
कैप्टिव यूज के लिए कॉल ब्लॉक की उपलब्धता की जानकारी दी।
इसमें कहा गया कि
मौजूदा समय में स्टील, सीमेंट, पावर आदि से जुड़ी जो कंपनियां क्षमता बढ़ाना
चाहती हैं, वही आवेदन
के योग्य होंगी। आवेदक कंपनियों ने तमाम आवश्यक कागजात के साथ आवेदन किये। इसके
बाद आवेदनों को संबंधित विभागों और राज्य सरकारों को आवश्यक जांच के लिए भेजा गया।
आवंटन के संबंध में फैसला कोयला सचिव की अध्यक्षतावाली स्क्रीनिंग कमेटी ने किया।
कमेटी आवेदकों की पूंजी, पिछला रिकॉर्ड, कार्य की गति, तकनीकी अनुभव के
अलावा विभागों और राज्य सरकारों की टिप्पणियों पर गौर किया।
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