टीम अन्ना का सीआईए
से रिश्ता खोज रही है सरकार
(शेषनारायण सिंह)
नई दिल्ली
(साई)।केन्द्र की सरकार इस वक्त टीम अन्ना का सीआईए कनेक्शन तलाश रही है। ऐसा वह
अपनी मर्जी से नहीं कर रही है बल्कि 30 मई को दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश के जवाब
में उसे यह काम करना पड़ रहा है क्योंकि 30 अगस्त तक केन्द्रीय गृहमंत्रालय को अपना
जवाब दिल्ली हाईकोर्ट को सौंपना है।
सुप्रीम कोर्ट के
अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा द्वारा दाखिल जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि टीम
अन्ना के तार सीआईए से जुड़े हुए हैं और भारत में भ्रष्टाचार भगाने की सारी मुहिम
सीआईए की योजना अनुसार चलाई जा रही है। जनहित याचिका दाखिल करनेवाले वकील ने अपने
आरोपपत्र में कहा है कि भ्रष्टाचार भगाने की यह मुहिम फोर्ड फाउण्डेशन के पैसे से
चल रही है जो कि अमेरिकी खुफिया एजंसी सीआईए का फ्रंट आर्गेनाइजेशन है और दुनिया
के कुछ देशों से सिविल सोसायटी नाम से मुहिम चला रही है।
इस पेटीशन में वादी
ने बहुत सारे आरोप लगाए हैं जिनमें कुछ तो सहसा अविश्वसनीय लगते हैं। इसी पेटीशन
में आरोप है कि टीम अन्ना के कुछ सदस्य सीआईए से सम्बंधित हैं। इस केस में केंद्र
सरकार को भी पार्टी बनाया गया है। 30 मई 2012 को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि
केंद्र सरकार तीन महीने के अंदर सभी आरोपों की जांच पूरी कर ले। उसके बाद ही मनोहर
लाल शर्मा के आरोपों पर माननीय हाई कोर्ट विचार करेगा। ३० अगस्त २०१२ तक जांच के
नतीजे हाईकोर्ट में दाखिल किये जाने हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने
३० मई २०१२ के दिन एक फैसला सुनाया था
जिसमें आदेश दिया गया था कि केंद्र सरकार वादी मनोहर लाल शर्मा की याचिका में पेश
किये गए आरोपों की जांच करे। इस केस में केंद्र सरकार को प्रतिवादी नंबर एक पर रखा गया है। केंद्र सरकार के अलावा जो
अन्य लोग प्रतिवादी थे उनके नाम हैं, फोर्ड फाउंडेशन, अन्ना हजारे, मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, शान्ति भूषण और
किरण बेदी। माननीय हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पेटीशन में जो भी प्रार्थना
की गयी है, उसकी जांच
प्रतिवादी नंबर एक (गृह मंत्रालय), अधिक से अधिक तीन महीने में पूरी करके इस
अदालत के सामने हाज़िर हों। उसके बाद कोई फैसला लिया जाएगा। सरकार को जांच करने के
लिए तीन महीने का समय दिया गया था।
संविधान के
अनुच्छेद २२६ के तहत सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट मनोहर लाल शर्मा ने पी आई एल दाखिल
किया था जिसमें भारत सरकार के अलावा टीम अन्ना के कुछ सदस्यों को पार्टी बनाया था।
पेटीशन में आरोप लगाया गया है कि फोर्ड फाउंडेशन एक अमरीकन ट्रस्ट है जो दुनिया भर में सरकार विरोधी आन्दोलनों को
समर्थन देता है, फंड देता
है और उनके मारफत उन देशों पर अपना एजेंडा लागू करता है। फोर्ड फाउंडेशन ने रूस, इजरायल, अफ्रीका आदि देशों
में सिविल सोसाइटी नाम के ग्रुप बना रखे हैं। इनके ज़रिये वे बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, कलाकारों, उद्योगपतियों और
नेताओं को अपनी तरफ खींचते हैं। तरह तरह के आकर्षक नारे देकर लोगों को आकर्षित
करते हैं और सरकार के खिलाफ आन्दोलन करवाते हैं।
पिटीशन में आरोप
लगाया गया है कि फोर्ड फाउंडेशन अमरीकी खुफिया एजेंसी सी आई ए का फ्रंट भी है।
पेटीशन में लिखा है कि टीम अन्ना के लोग संयुक्त रूप से फोर्ड फाउंडेशन से धन लेते रहे हैं,आरोप है कि फोर्ड
फाउंडेशन के रीजनल डाइरेक्टर ने कुबूल किया है कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल की
श्कबीरश् नाम की एनजीओ को फंड दिया था। फोर्ड फाउंडेशन के वेबसाईट से भी पता चलता
है कि २०११ में ही फोर्ड फाउंडेशन ने कबीर को दो लाख अमरीकी डालर दिया था। साथ में
सबूत भी पेटीशन के साथ नत्थी है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि एफसीआरए एक्ट के
तहत विदेशी पूंजी पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना जरूरी होता है लेकिन
फोर्ड फाउण्डेशन से पैसा लेने के मामले में टीम अन्ना ने किसी नियम का पालन नहीं
किया जिसके दोषी पाये जाने पर टीम अन्ना के सदस्यों को अधिकतम तीन साल की सजा हो
सकती है।
इसके साथ ही
याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत के संविधान की धारा 19 (ए) के तहत प्रावधान
है कि देश में ऐसी किसी भी गतिविधि को मान्यता नहीं दी जा सकती जो विदेशी पैसे से
संचालित होता हो। इसलिए अन्ना का आंदोलन सीधे सीधे संविधान की धारा 19 (ए) का उल्लंघन है
क्योंकि खुद अरविन्द केजरीवाल यह स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें फोर्ड फाउण्डेशन, डच एम्बेसी और
यूएनडीपी से पैसा लिया है। अब सरकार के जवाब के बाद ही तय होगा कि टीम अन्ना का
फोर्ड फाउण्डेशन के रास्ते सीआईए से कोई रिश्ता है या नहीं। बहरहाल, सरकार के लिए यह
स्थिति कम दुविधापूर्ण नहीं है। क्योंकि अगर वे अन्ना के आंदोलन को कमजोर करने के
लिए सच्चाई स्वीकार कर लेते हैं तो अमेरिका नाराज होता है और अगर वे इंकार कर देते
हैं तो निश्चित रूप से अन्ना और उनके साथियों का मनोबल बढ़ जाएगा।
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