बुधवार, 19 सितंबर 2012

भौंकनेवाले....ने काट लिया!

भौंकनेवाले....ने काट लिया!

संजय तिवारी

इधर दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जब गणेश चतुर्थी की पूर्व संध्या पर देश को बधाई संदेश प्रसारित किया जा रहा था तो उन्हें कहीं से यह भान नहीं रहा होगा कि श्कोलकाता की कालीश् उन पर वज्रपात करने जा रही है. ममता बनर्जी के दिये अल्टीमेटम की समाप्ति पर कोलकाता के टाउनहाल से जो संदेश देश को दिया गया वह कांग्रेस के लिए अप्रत्याशित झटका था. कांग्रेस के रणनीतिकार मान रहे थे कि ममता बनर्जी अनहद को छूने की हद तक नहीं जाएंगी, और कोई न कोई फार्मूला सामने आ जाएगा. फार्मूला नहीं आया. सीधे सीधे सरकार से समर्थन वापसी का संदेश आ गया.
फिर भी, इस संदेश को पूरी तरह ठीक ठीक सुनने के बाद भी कांग्रेस ने उम्मीद को मरने नहीं दिया और ममता जी को विश्वसनीय सहयोगी मानते हुए किसी अंतिम परिणाम की उम्मीद की ओर इशारा कर दिया. सरकार से समर्थन वापसी के ऐलान और मंत्रियों के इस्तीफे की डेट और समय सब विधिवत बता देने के बाद भी कांग्रेस किस अंतिम परिणाम की बात कर रही है यह तो कांग्रेस के प्रवक्ता ही जानें लेकिन मीटिंग के बाद केन्द्रीय पर्यटन राज्यमंत्री और तृणमूल सांसद सुल्तान अहमद ने जो कहा वह पार्टी की कुढ़न सामने लाता है. एक निजी चौनल से बात करते हुए सुल्तान ने कहा ष्आज हमें मुक्ति मिली है. हम आजाद महसूस कर रहे हैं.ष्
ममता बनर्जी ने सही निर्णय लिया या गलत इस पर दोनों तरह की राय है. ममता बनर्जी के आलोचक मानते हैं कि अपने भाषण के अंतिम कुछ शब्दों में ममता बनर्जी ने सुलह का रास्ता खोल रखा है इसलिए इस बात को लेकर कत्तई परेशान होने की जरूरत नहीं है कि ममता बनर्जी सरकार से बाहर जा रही हैं. ऐसे आलोचक मानते हैं कि अभी तक ममता बनर्जी का केन्द्र से संबंध का जो इतिहास रहा है वह दबाववाली राजनीति का रहा है. पहले वे दबाव बनाती हैं, फिर अपनी बात मनवाती हैं और उसके बाद शांत हो जाती हैं. एनडीए शासन से लेकर यूपीए वन टू सब में ममता बनर्जी का यही रुख देखने को मिला है. हाल फिलहाल में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पहले तो उन्होंने कांग्रेस को आड़ेहाथों लेने की कोशिश किया लेकिन ऐसा करते हुए वे इस बात पर अडिग थीं कि आखिरकार समर्थन प्रणव दादा को ही देना है. आखिरी वक्त में उन्होंने भाजपा समर्थित संगमा को कांग्रेस के प्रणव मुखर्जी को ही अपना समर्थन दिया. उनके आलोचक मानते हैं कि इस बार भी वे कुछ ऐसा ही करेंगी.
हालांकि ममता बनर्जी के ऐलान के बाद कांग्रेस की ओर से बहुत सधी हुई टिप्पणी सामने आई है और पार्टी के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने संभलकर कहा है कि विकल्पों पर बातचीत होगी. ममता बनर्जी जानती हैं कि जिन मुद्दों पर वे सरकार से अपने समर्थन वापसी का ऐलान कर रही हैं उन मुद्दों पर कांग्रेस के अंदर मनमोहन विरोधी धड़ा उनके साथ खड़ा है. कांग्रेस के अंदर भी राजनीति की एक ऐसी जमात है जो रिटेल में एफडीआई की पक्षधर नहीं है. इस जमात में खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी शामिल हैं. कांग्रेस का राजनीतिक प्रबंधन मनमोहन सिंह के पास नहीं है. वह सोनिया गांधी के पास है और सोनिया गांधी जानती है कि आगामी चुनाव में इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है. लेकिन जिस कोलगेट की कालिख को पोंछने के लिए रिटेल का खेल किया गया था उसके बाद कांग्रेसी रणनीतिकारों को भी मालूम था कि बवाल बहुत ज्यादा होगा. अब यहां अगर ममता के उन आलोचकों की बात याद करें जो कहते हैं कुछ नहीं होगा, तो अब इसके बाद राजनीतिक रूप से सुलह समझौते के प्रयास किये जाएंगे और रिटेल में एफडीआई को रोक दिया जाएगा तथा डीजल के दाम भी पांच रुपये बढ़ाकर एक रूपया घटा दिया जाएगा. इसका बड़ा फायदा कांग्रेस को यह होगा कि कोलगेट करप्शन के दाग से फिलहाल मुक्ति मिल जाएगी और प्रशासन की गाड़ी पटरी पर दोबारा लौट आएगी. लेकिन ममता के आलोचक सही नहीं हुए तो?
तो ममता और कांग्रेस की इस छीना झपटी की लड़ाई में कोई और भी है जो ममता के रुख को भांप रहा है. वह है समाजवादी पार्टी. समाजवादी पार्टी के माननीय मुलायम सिंह चाहें कहें कुछ भी लेकिन कांग्रेस की सरकार में साझीदार होने की उनकी पुरानी तमन्ना है. हो सकता है वे अब अगले एक दो दिनों में सरकार से कोई सौदा कर लें या फिर यह भी हो सकता है कि सरकार के खिलाफ जंग-ए-आजादी में ममता बनर्जी के साथी सहोदर बन जाएं. कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी करके लौटे मुलायम सिंह यादव की पार्टी के प्रवक्ता प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने जो कहा है वह देखो और इंतजार करो का ही संकेत देता है. ममता के समर्थन वापसी के ऐलान के बाद जब पत्रकार रामगोपाल यादव की प्रतिक्रिया लेने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी द्वारा लिये गये निर्णय की प्रतिक्रिया में उनकी पार्टी कोई निर्णय नहीं लेंगे. अभी तो हम 20 सितंबर को सरकार के निर्णय के खिलाफ सड़क पर उतरने जा रहे हैं, उसके बाद जो भी निर्णय होगा पार्टी के पदाधिकारियों के आपसी विचार विमर्श के बाद होगा. यानी, सपा के भी सभी विकल्प खुले हुए हैं.
लेकिन आखिरी पहलू यह बचता है कि सरकार से बाहर जाकर तृणमूल कांग्रेस को क्या हासिल होगा, सिर्फ आजादी? नहीं. ऐसा नहीं है. तृणमूल की कोटरी के एक अहम सदस्य और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ बेरेन ने ममता जी के निर्णय के बाद जो ट्वीट किया है, वह बहुत कुछ संकेत करता है. डेरेक ओ बेरेन ने ट्वीट किया है कि जो लोग कहते थे कि हम भौंकते हैं, काटते नहीं. उनको जवाब मिल गया होगा. जवाब तो सचमुच मिल गया है कि भौंकनेवाले ने काट लिया. लेकिन उसके इस काटे का कांग्रेस क्या इलाज करती है, इस पूरे प्रकरण का पटाक्षेप उसी इलाज से होगा.
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

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