भारत में अमेरिका
और पाकिस्तान से सस्ता है डीजल
(रश्मि सिन्हा)
नई दिल्ली (साई)।
पिछले सप्ताह डीजल कीमतों में एक बार में की गई 5 रुपये की रिकार्ड वृद्धि के
बावजूद देश में अभी भी इस ईंधन कीमत पडोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश से कम
है. यही नहीं यहां डीजल अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों से भी सस्ता है.
सरकार ने 14 सितंबर
को डीजल कीमतों में 5 रुपये प्रति लीटर की बढोतरी कर दी थी. डीजल कीमतों में
वृद्धि के बारे में तैयार पृष्ठभूमि नोट में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रलय
ने कहा है कि बांग्लादेश में एक लीटर डीजल का दाम 49.08 रुपये प्रति लीटर है, जबकि पाकिस्तान में
यह 59.56 रुपये प्रति लीटर है. नेपाल में डीजल का दाम 57.91 रुपये प्रति लीटर है.
इसी तरह अमेरिका
में डीजल का दाम 54.55 रुपये प्रति लीटर, फ्रांस में 77.84 रुपये प्रति लीटर, जर्मनी में 83.36
रुपये प्रति लीटर,
ब्रिटेन में 99.38 रुपये प्रति लीटर तथा इटली में 93.11 रुपये
प्रति लीटर बैठता है.
नोट में कहा गया है
कि पिछले 14 माह में डीजल कीमतों में पहली बार बढोतरी की गई है. इस दौरान कच्चे
तेल की कीमतों में 28 फीसद का उछाल आया है, वहीं डालर की तुलना में रुपया 24 प्रतिशत
कमजोर हुआ है. इससे आयात महंगा हो गया है. भारत अपनी तेल जरुरत का 79 प्रतिशत आयात
से पूरा करता है. इसमें कहा गया है कि पेट्रोलियम कंपनियों को डीजल 41.32 रुपये
प्रति लीटर के खुदरा मूल्य पर बेचने से 17.05 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा
है.
इस हिसाब से चालू
वित्त वर्ष में तीनांे पेट्रोलियम कंपनियों इंडियन आयल, हिंदुस्तान
पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम को अकेले डीजल की बिक्री पर ही 1,17,780 करोड रुपये
के राजस्व का नुकसान होता. इसके अलावा पेट्रोलियम कंपनियों को मिट्टी की तेल की
बिक्री पर प्रति लीटर 32.70 रुपये का नुकसान हो रहा है. वहीं एलपीजी पर प्रति
सिलेंडर 347 रुपये का नुकसान हो रहा है.
नोट में कहा गया है
कि डीजल कीमतांे में बढोतरी से चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में डीजल बिक्री पर
कंपनियों के नुकसान की 15,000 करोड रुपये की भरपाई हो जाएगी. नोट में बताया गया है
कि सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों की वित्तीय सेहत लगातार खराब हो रही
है. वित्त वर्ष 2011-12 में इन कंपनि यों का कुल शुद्ध लाभ मात्र 6,177 करोड रुपये
रहा है, जो उनके
कुल कारोबार 8,22,828 करोड रुपये का मात्र 0.7 प्रतिशत है.
पेट्रोलियम
कंपनियों को कच्चे तेल के आयात के भुगतान के लिए भारी उधारी लेनी पडती है. 31
मार्च, 2012 तक
उनकी कुल उधारी 1,28,272 करोड रुपये थी. उनका ब्याज का बोझ 9,529 करोड रुपये था।
30 जून तक यह उधारी बढकर 1,57,617 करोड रुपये पर पहुंच गई. उधारी में बढोतरी से
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ही पेट्रोलियम कंपनियों का ब्याज का बोझ 2,919
करोड रुपये रहा है.
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