अहमद पटेल की राह में शूल बोएंगे द्विवेदी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
कांग्रेस में अब टाप टू बाटम रिशफलिंग की जा रही है। पुराने घाघ उमर दराज नेताओं
के अलावा कांग्रेस के शक्ति केंद्रों के आसपास बैठे मठाधीशों की रूखसती की डुगडुगी
बज चुकी है। कल तक ताकतवर महासचिव रहे राजा दिग्विजय सिंह अब हाशिए में हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल भी अब
पार्श्व में जा सकते हैं।
कांग्रेस के नए
उभरते सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र, 12, तुगलक लेन (बतौर सांसद राहुल गांधी को
आवंटित सरकारी आवास) के भरोसेमंद सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि
राहुल गांधी ने राजा दिग्विजय सिंह और अहमद पटेल दोनों ही से ट्यूशन लेकर देख ली
है। दोनों ही आधुनिक राजनीतिक मामलों में राहुल की नीतियों पर खरे नहीं उतरे हैं।
राहुल गांधी पुराने ढर्रे से निजात पाकर नया कुछ करने के लिए उतावले हैं।
सभवतः यही कारण है
कि राहुल गांधी ने सालों पहले अपनी खुद की एक टीम बना ली थी। सूत्रों ने यह भी
बताया कि राहुल की टीम बाकायदा वैतनिक है। टीम राहुल के सारे सदस्यों को प्रतिमाह
पगार के अलावा, फोन, मोाबईल का बिल, यात्रा भत्ता, आदि सब कुछ सालों
से मुहैया हो रहा है। यही कारण है कि टीम राहुल के सदस्यों द्वारा राहुल गांधी के
साथ पूरी निष्ठा के साथ ही काम किया जा रहा है।
राहुल के करीबी
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अगामी फेरबलद में राहुल के कथित
द्रोणाचार्य (राजा दिग्विजय सिंह) के पर कतरे जा सकते हैं। राजा से उत्तर प्रदेश
और असम का प्रभार भी छीना जा सकता है। सूत्रों की मानें तो असम के निजाम तरूण
गोगोई ने वैसे भी राहुल और सोनिया से दिग्विजय सिंह की कार्यप्रणाली पर असंतोष
जाहिर करते हुए कहा था कि राजा असम में गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे हैं।
उधर, सूत्रों ने यह भी
संकेत दिए कि जब उत्तर प्रदेश में रीता बहुगुणा को पदच्युत किया जाकर निर्मल खत्री
की ताजपोशी की गई तब भी राजा दिग्विजय सिंह से मशविरा नहीं किया गया। इतना ही नहीं, यूपी में आठ जोनल
प्रभारियों की नियुक्ति में भी राजा दिग्विजय ंिसह को शािमल नहीं किया गया। निर्मल
खत्री भी जनार्दन द्विवेदी के ही आदमी माने जा रहे हैं।
सूत्रांे के अनुसार
जल्द ही सत्ताा की धुरी सोनिया गांधी के पास से खिसककर राहुल गांधी के इर्द गिर्द
आने वाली है। उन बदली परिस्थितियों में सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल की पूछ
परख कम हो सकती है। अहमद पटेल ने राहुल केम्प में सेंध लगाने की कोशिश अवश्य ही की
थी, पर वे पूरी
तरह सफल नहीं हो पाए।
इन सारे समीकरणों
के आधार पर अब लगने लगा है कि जनार्दन द्विवेदी के सितारे पूरी तरह बुलंदियों पर
हैं। राहुल गांधी भी द्विवेदी पर पूरा एतबार कर रहे हैं। आने वाले समय में
द्विवेदी का ही सिक्का कांग्रेस में चलने की उम्मीद जताई जा रही है। जनार्दन
द्विवेदी के साथ बस एक मामला नकारात्मक जा रहा है और वह है उनकी पद की लालसा।
द्विवेदी की सियासी महात्वाकाक्षांए ही उनके लिए घातक साबित होने वाली हैं।
कहा जा रहा है कि
मनमोहन सरकार के फेरबदल में जनार्दन द्विवेदी खुद ही लाल बत्ती के लिए लाबिंग कर
रहे हैं। यही बात अहमद पटेल के लिए संतोषजनक मानी जा रही है। चूंकि सालों साल
पार्श्व में रहकर पटेल ने सत्ता की धुरी को परोक्ष तौर पर अपने पास रखा पर कभी
सामने आकर या लाल बत्ती लेकर काम नहीं किया। अब पटेल की टीम इसी फिराक में है कि
द्विवेदी को किसी तरह इस बार लाल बत्ती मिल जाए और वे टीम राहुल से बाहर हो जाएं।
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