शिक्षा के अधिकार अधिनियम पर केन्द्र
सरकार का गैर जिम्मेदार रवैया
(प्रदीप चौहान)
नई दिल्ली (साई)। शिक्षा के अधिकार
अधिनियम पर केन्द्र सरकार का गैर जिम्मेदार रवैये के कारण शिक्षा के अधिकार तय समय
सीमा अर्थात् 31 मार्च 2013 तक निर्धारित किये गये लक्ष्यों को हासिल
नहीं कर पाया। उक्त आशय के विचार मध्यप्रदेश की स्कूल शिक्षा मंत्री श्रीमती
अर्चना चिटनिस ने आज यहां आयोजित केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार (कैब) की 61वीं बैठक मंे रखे। केन्द्रीय मानव संसाधन
मंत्रालय द्वारा आयोजित बैठक की अध्यक्षता केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री एम.एम.
पल्लमराजू ने की। बैठक में शशि थरूर, जितेन प्रसाद, केन्द्रीय
मानव संसाधन राज्य मंत्रियों के अलावा अन्य राज्यों के शिक्षा मंत्री, शिक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य और
मंत्रलाय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
बैठक में बोलते हुए श्रीमती चिटनिस ने कहा
कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम केन्द्रीय सरकार और अन्य सभी पार्टियों की सहमति से
संसद में पास किया गया था। अधिनियम के अनुसार सबको शिक्षा देने का अधिकार के सफल
क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य और केन्द्र सरकार दोनों की बनती है। श्रीमती
चिटनिस ने बताया कि केन्द्र सरकार ने निजी स्कूलों के माध्यम से वंचित वर्गों को
सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य के हासिल करने में हुए व्यय की प्रतिपूर्ति न करने
से केन्द्र सरकार ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धार-7 का उल्लंघन किया है। साथ ही श्रीमत
चिटनिस ने कहा कि अधिनियम की धारा-6 के अनुसार शिाक्षा के अधिकार अधिनियम द्वारा निर्धारित लक्ष्य 31 मार्च 2013 तक हासिल किया जाना अनिवार्य था जिसको कि
केन्द्र सरकार के ढुलमुुल रवैये के कारण निर्धारित समय सीमा में हासिल नहीं कर
पाये।
श्रीमती चिटनिस ने बताया कि वर्ष 2012-13 में मध्यप्रदेश में शिक्षा के अधिकार के
लिए पारित 2400 करोड़ रूपये के बजट मंे से केन्द्र सरकार
ने 1100 करोड़ रूपये कम दिया है। यही नहीं केन्द्र
सरकार ने मार्च माह के कर्मचारियों के वेतन का खर्चा न दे पाने कारण 167 करोड़ रूपये भी राज्य सरकार ने अपने बजट
में से दिया जो कि केन्द्र सरकार को सामान्य रूप से देना चाहिए था। श्रीमती चिटनिस
ने कहा कि ऐसी स्थिति में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत लगभग 50 हजार शिक्षिकाओं की भर्ती करने का कार्य
असंभव सा लगता है। मध्यप्रदेश सरकार ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत पूरी
जिम्मेदारी और निष्ठा से अपना भरपूर योगदान और सहयोग दिया है। किन्तु केन्द्र
सरकार ने उसी अनुपात में न तो सहायता राशि दी है और न ही इच्छा शक्ति दर्शायी है।
ऐसी स्थिति में छात्रों और शिक्षक का 30ः1 के अनुपात का लक्ष्य हासिल करना असंभव
लगता है।
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