अव्यवस्थाओं के साए
में एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का बांध!
(हिमांशु कौशल)
सिवनी (साई)। पूर्व
केन्द्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा की देन भीमगढ़ बांध एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी
के बांध है. वर्तमान में इस बांध की न ही उचित सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया जा
रहा है और न ही सिंचाई विभाग बांध की उन तकनीकी खामियों की ओर ध्यान दे रहा है जो
कि इसे बाढ़ और भूकंपीय झटके से बचाये रखने के लिये अत्यंत आवश्यक है. भीमगढ़ डेम के
रख रखाव के लिये प्रतिवर्ष 40 लाख रूपये आते हैं इसके बाद भी मिट्टी की
दीवार पर बने सारे फिल्टर चोक है, मेन केनाल खत्म हो चुकी है, स्टाप लाक गेट हैं
ही नहीं, गेट नंबर 5 से झरने की तरह
लगातार पानी बह रहा है, दसवे नंबर के गेट की क्रांकीट और मिट्टी की दीवार के बीच का
ज्वाइंट खुल गया है जिसके कारण बांध का पानी दीवार फोड़कर बाहर निकल ज़मीन पर बहता
हुआ मुख्य नहर में मिल रहा है.
भीमगढ़ की तकनीकी
खामियों की शिकायत उच्चाधिकारियों तक को कर दी गयी है, इसके बाद पूर्व में
एक दिन अपर कलेक्टर इसका निरीक्षण भी कर आये. निरीक्षण में उन्होंने क्या देखा
क्या नहीं यह तो पता नहीं. शिकायत में जिन तकनीकी खामियों का जिक्र किया गया है
उनमें से कुछ विस्तार से इस प्रकार हैं.
0 चोक हैं पूरे के पूरे फिल्टर
भीमगढ़ बांध मिट्टी
का बांध है. पानी रोकने के लिये बनायी गयी मिट्टी की दीवार ऊपर से लगभग 10 मीटर चौड़ी और नीचे
से इसकी मोटाई लगभग 30 मीटर चौड़ी हो जाती है कहीं कहीं ये कम भी है. मिट्टी की
दीवार की ऊँचाई 42.67 मीटर है.
इस बांध मे 10 लोहे के
गेट हैं जिन्हें मुख्य गेट कहा जाता है. इन गेटों के पीछे एक तालाब है.
नदी में बाढ़ आने पर
भी मिट्टी की दीवार में कोई असर न पड़े और यह दीवार पानी का भार या दाब आसानी से
सहन कर ले इसके लिये उस समय इंजीनियरों द्वारा एक तकरीब सोची गयी. इंजीनियरों ने दीवार
के अंदर से पतली पतली कंदराएं निकाली जिन्हें फिल्टर कहा जाता है. इन कंदराओं की
संख्या 13 है. जब
दीवार पर पानी का दाब या भार बढ़ता है तो पानी इन कंदराओं के माध्यम से स्वतः ही
बांध के बाहर निकल जाता है.
इन कंदराओं में रेत
और मिट्टी है. इन्हें ऐसा बनाया गया था कि इनसे पतली धार निकले ताकि मिट्टी की
दीवार दोनों ओर से गीली न हो क्योंकि बांध बन जाने के कारण मिट्टी की दीवार अंदर
की ओर से सदैव गीली रहने वाली थी अगर दूसरी ओर से भी ये बहुत अधिक गीली हो जाती तो
दीवार की पकड़ कमजोर होने का डर था. अतः 13 फिल्टर बहुत छोटे छोटे बनाये गये और बाद
में इन फिल्टरों का पानी भी वेस्ट न जाये इसके लिये एक मेन केनाल बनायी गयी.
जिसमें इन फिल्टरों से निकलने वाला सारा पानी चला जाये. आज इन 13 फिल्टरों में से
एक भी चालू नहीं है सब के सब चोक हैं और मेन केनाल दिख ही नहीं रही है उसमें बड़े पेड़
और झाड़िया उग आयी हैं.
इन फिल्टरों के चोक
हो जाने के कारण पानी का जितना भी दबाव है वो मिट्टी की दीवार पर ही है जो कि नाला
क्लोजर के बाद से लगातार पानी के संपर्क में है. इतने साल तक पानी के संपर्क में
रहने के कारण इसमें नमी आ गयी है और कहीं कहीं से पानी का लीकेज भी है.
0 ज्वाइंट से लगातार बह रहा है पानी
भीमगढ़ बांध के 10 नंबर गेट के बाद
थोड़ी दूर तक क्रांकीट की दीवार है इसके बाद मिट्टी की दीवार शुरू होती है.
क्रांक्रीट की दीवार और मिट्टी की दीवार का जो ज्वाइंट है वहाँ से लगातार पानी बह
रहा है. यह पानी रिसता हुआ मुख्य नहर में आकर लगातार मिल रहा है. यह पानी इतना है
कि एक माह रोक लिया जाये तो कम से कम 25 एकड़ जमीन सींची जा सकती है.
0 गेट नंबर पाँच से बह रहा है झरना
भीमगढ़ बांध में 10 गेट हैं. इसमें से
जो 5 नंबर का
बीच वाला गेट है उसकी रबड़शीट खराब हो गयी है जिसके कारण वहाँ से बहुत बड़ा झरना बह
रहा है. इस झरने के कारण डेम का पानी लगातार खाली होता जा रहा है. विभागीय
अधिकारियों के सामने इस गेट को सुधारना एक चुनौती है.
0 स्टाँप लाक गेट है ही नहीं.
भीमगढ़ बांध में 10 मुख्य गेट हैं. और
इन 10 मुख्य गेट
के समानांतर 10 स्टाप लाक
गेट हैं. स्टाप लाक गेट दरअसल इमरजेंसी गेट होते है. जब मुख्य गेट में कोई खराबी आ
जाती है तो स्टाप लाक गेट को बंद किया जाता है. इससे पानी का मुख्य गेट से संपर्क
हट जाता है फिर मुख्य गेट को खोलकर बीच में जो पानी रहता है उसे बाहर निकाल सुधार
कार्य किया जाता है.
ये स्टॉप लॉक गेट
उस समय भी काम आते हैं जब मुख्य गेट में कोई खराबी आ जाये और वो काम करना बंद कर
दे ऐसी स्थिति मे पानी रोकने के लिये स्टॉप लॉक गेट का ही सहारा लेना पड़ता है.
मौके पर स्टाप लाक गेट हैं ही नहीं. उनके हेड मात्र हैं जिनमें गेट फँसते हैं. वर
वास्तव में उन हेड में गेट लगे ही नहीं हैं.
0 तालाब की नाला क्लोजर के बाद से सफाई ही
नहीं हुई
भीमगढ़ बांद के गेट
के पीछे एक तालाब बनाया गया है. ये तालाब इसीलिये है कि जब गेट खोले जाये तो उनसे
बहने वाला पानी सीधे जमीन पर आ कर न गिरे. अगर सीधे फोर्स के साथ जमीन पर गिरेगा
तो वाइब्रेशन (कंपन्न) पैदा होगा इससे मिट्टी के बांध को असर पड़ सकता है अतः
इंजीनियरों ने इस समस्या के निदान के लिये गेट के ठीक पीछे एक तालाब बनाया. इस
तालाब में पानी भरा रहता है ताकि जब गेट खुले तो बांध का पानी जमीन पर गिरने के
बजाये तालाब के पानी पर गिरे और वाइब्रेशन न हो.
इस तालाब को आज तक
खाली करके देखा ही नहीं गया है कि इसमें सुधार की क्या आवश्यक्ता है. नाला क्लोसर
(नदी को बंद करने) की दिनांक से लेकर अब तक इसे 26 साल हो गये हैं.
इसकी दशा अच्छी है या बुरी किसी को कुछ पता नहीं.
मिट्टी की दीवर पर
पनप रहे हैं बड़े - बड़े झाड़
भीमगढ़ बांध की जो
मिट्टी की दीवार है उसमें बड़े झाड़ पनपने लगे हैं. अभी ये छोटे हैं किन्तु इन्हें
अगर उखाड़ा नहीं गया तो इनकी जड़े बांध को नुकसान पहुँचा सकती है. इसी प्रकार सीमेंट
क्रांक्रीट की दीवार के अंदर से जहाँ पानी का रिसाव हो रहा है वहाँ भी पीपल के झाड़
ऊग आये हैं. बाद में ये पीपल के पेड़ अपने जड़े गहरी कर लेंगे, जो बांध को
क्षतिग्रस्त कर सकते हैं.
0 विद्युत कनेक्शन कटा
अव्यवस्थाओं का यह
आलम है कि एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध जिसे संजय सरोवर परियोजना या भीमगढ़ के
नाम से जाना जाता है के गेटों का स्थायी कनेक्शन कटा हुआ है. जनरेटर बिगड़े पड़े
हैं.
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