मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

प्रभात के सुर से तल्खी गायब!


प्रभात के सुर से तल्खी गायब!

(राजेश शर्मा)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश में तख्तापलट की तैयारी में जुटी टीम झा के सुर अब बदले बदले नजर आ रहे हैं। संगठन के जरिए सत्ता पाने की चाहत में प्रभात झा ने प्रशासनिक जमावट में तो अपने प्यादे हर जगह फिर कर दिए थे, किन्तु बाद में जब प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ही खतरे में दिखी तो प्रभात झा ने अपना रवैया बदल लिया है।
माना जाता है कि दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश सरकार के सूचना केंद्र में प्रभारी के बतौर जिस अफसर की तैनाती होती है उससे संकेत मिलने लगते हैं कि अब प्रदेश में किसका पडला भारी रहेगा। पूर्व में इंदौर से सुरेश तिवारी की पदस्थापना के वक्त लग रहा था कि मानो कैलाश विजयवर्गीय ही प्रदेश के मुखिया होंगे।
इसके उपरांत जब सुरेंद्र द्विवेदी की पदस्थापना की गई तब प्रभात झा की तूती बोल रही थी। द्विवेदी के सेवानिवृत होने के बाद अब नए प्रभारी प्रदीप भाटिया किसी भी गुट के नहीं बताए जाते हैं। उनकी पदस्थापना के बाद लग रहा है कि अब सरकार द्वारा की गई पदस्थापना प्रशासनिक ही है ना कि राजनैतिक।
भाजपा के नेशनल महासचिव नरेंद्र तोमर मध्य प्रदेश का मोह तज नहीं पा रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी के चारों पाए पूरी तरह सुरक्षित हैं। प्रभात झा को दूसरी पारी मिलेगी या नहीं यह निर्भर करता है तोमर और शिवराज की सिफारिश पर। इन परिस्थितियों में अब अगर प्रभात झा ने शिवराज के वटवृक्ष में मही डालने का प्रयास किया तो उनकी प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी का जाना तय ही है।
शिवराज सरकार के लिए प्रभात झा का नरम रवैया चौंकाने वाला ही माना जा रहा है। कभी मंत्रियों और अपनी ही सरकार पर निशाना साधने से नहीं चुकने वाले झा पिछले दिनों खंडवा में हुई कार्यसमिति में अपने कार्यकर्ताओं और पार्टी पदाधिकारियों को ही नसीहत देते नजर आए। वे जहां मंत्रियों को हारी हुई सीटों का दौरा नहीं करने और कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं देने पर अक्सर आड़े हाथ लेते हैं। वहीं कभी कार्यकर्ताओं को सरकार में हस्तक्षेप नहीं करने की सलाह देते हैं।
जानकार उस वक्त हैरत में पड़ गए जब शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में उनकी तारीफ में भी कसीदे पढऩे में कोई कसर नहीं छोडी। पार्टी के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि यह उनकी दूसरी पारी खेलने की कसरत है, जिसके तहत झा में यह बदलाव देखा जा रहा है। झा जानते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मर्जी के विरुद्ध वे दूसरी पारी हासिल नहीं कर पाएंगे।
झा के बदलते रुख को देखते हुए और नरेंद्र सिंह तोमर की अति सक्रियता के कारण शिवराज उन्हें दूसरा मौका दिलाने में मददगार साबित हो सकते हैं। शिवराज जानते हैं कि झा की महत्वाकांक्षा भले ही हो लेकिन अभी उनके लिए दीनदयाल परिसर से निकलने और वल्लभ भवन तथा मुख्यमंत्री निवास तक पहुंचने में अभी देर है। तीसरी बार सरकार बन भी गई तो भी उनके बाद सबसे मजबूत दावेदार तोमर हो सकते हैं।
इस कारण उनके लिए झा से ज्यादा संकट तोमर से होना चाहिए। भाजपा के एक आला नेता ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजंेसी ऑफ इंडिया को बताया कि झा से ज्यादा शिवराज को तोमर से सावधान रहने की जरूरत है। हालांकि, उन दोनों के बीच के तालमेल और विश्वास के कारण पार्टी तोमर को अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का पहले ही संकेत दे चुकी हैं। यदि तोमर की चली तो वही पुरानी टीम मिशन-2013 के लिए उतरेगी जिसने पिछले चुनाव में भी अहम भूमिका निभाई थी।

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