मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

पितृ दोष और श्राद्ध पक्ष मैं केसे करें उनका निवारण


पितृ दोष और श्राद्ध पक्ष मैं केसे करें उनका निवारण

(पंडित दयानन्द शास्त्री)

नई दिल्ली (साई)। कुछ ज्योतिषी यह मानते हैं जातक ने अपने पूर्वजों के मृत्योपरांत किये जाने वाले संस्कार तथा श्राद्ध आदि उचित प्रकार से नहीं किये होते जिसके चलते जातक के पूर्वज अर्थात पित्र उसे शाप देते हैं जो पित्र दोष बनकर जातक की कुंडली में उपस्थित हो जाता है तथा जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न करता है।ऐसे ज्योतिषी पित्र दोष के निवारण के लिए पित्रों के श्राद्ध कर्म आदि करने, पिंड दान करने तथा नारायण पूजा, आदि का सुझाव देते हैं जबकि वास्तविकता में इन उपायों को करने वाले जातकों को पित्र दोष कुंडली में सूर्य अथवा कुंडली के नौवें घर पर एक अथवा एक से अधिक अशुभ ग्रहों के प्रभाव से बनता है तथा पित्र दोष निवारण पूजा करवाने के लिए सबसे पहले यह पता होना आवश्यक है कि कुंडली में पित्र दोष बनाने वाला ग्रह कौन सा है। हम यह मान लेते हैं कि कुंडली विशेष में राहु के सूर्य पर अशुभ प्रभाव होने के कारण कुंडली में पित्र दोष बनता है तथा  वेदों के अनुसार पित्रों के लिए किये गये चार प्रकार के विशेष कर्म श्राद्ध कर्म कहलाते हैं तथा ये कर्म हैं हवन, पिंड दान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि अधिकतर जातकों द्वारा किया जाने वाला ब्राह्मण भोजन का कर्म भी एक प्रकार का श्राद्ध कर्म है किन्तु यह कर्म अपने आप में संपूर्ण श्राद्ध नहीं है। वेदों के अनुसार उपर बताये गये चारों प्रकार के श्राद्ध कर्मों का अपना विशेष महत्व है तथा यथासंभव प्रत्येक परिवार में से एक व्यक्ति को पितृ पक्ष के समय अपने मृतक पूर्वजों के लिए ये चारों श्राद्ध कर्म करने चाहिएं।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब।-09024390067 ) के अनुसार शास्त्रो में मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण कहे गए है। देव ऋण ,ऋषि ऋण व पितृ ऋण। इसमें से पितृ ऋण के निवारण के लिए पितृ यज्ञ का वर्णन किया गया है। पितृ यज्ञ का दुसरा नाम ही श्राद्ध कर्म है। श्रद्धायंा इदम् श्राद्ध। अर्थात पितरो के उदेश्य से जो कर्म श्रद्धापूर्वक किया जाए,वही श्राद्ध है। महर्षि बृहस्पति के अनुसार जिस कर्म विशेष में अच्छी प्रकार से पकाए हुए उत्तम व्यंजन को दुग्ध घृत और शहद के साथ श्रद्धापूर्वक पितरो के उदेश्य से ब्राह्मणादि को प्रदान किया जाए वही श्राद्ध है।
भारतीय संस्कृति में माता पिता को देवता तुल्य माना जाता है। इसलिए शास्त्र वचन है कि पितरो के प्रसन्न होने पर सारे देव प्रसन्न हो जाते है। ब्रह्मपूराण के अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरो के अलावा ब्रह्म, इन्द्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सुर्य, अग्नि, वायु, विश्वेदेव, एवं मनुष्यगण को भी प्रसन्न कर देता है।  मृत्यु के पश्चात हमारा स्थूल शरीर तो यही रह जाता है। परंतु सूक्ष्म शरीर यानि आत्मा मनुष्य के शुभाशुभ कर्माे के अनुसार किसी लोक विशेष को जाती है। शुभकर्माे से युक्त आत्मा अपने प्रकाश के कारण ब्रह्मलोक, विष्णुलोक एवं स्वर्गलोक को जाती है। परंतु पापकर्म युक्त आत्मा पितृलोक की ओर जाती है। इस यात्रा में उन्हे भी शक्ति की आवश्यकता होती है जिनकी पूर्ति हम पिंड दान द्वारा करते है।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब।-09024390067 ) के अनुसार  परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत परिवारजनों द्वारा जब उसकी इच्छाओं एवं उसके द्वाराछुटे अधुरे कार्यों को परिवारजनों द्वारा पुरा नही किया जाता। तब उसकी आत्मा वही भटकती रहती है एवं उन कार्याे को पुरा करवाने के लिए परिवारजनों पर दबाव डालती है। इसी कारणपरिवार में शुभ कार्याे में कमी एवं अशुभता बढती जाती है। इन अशुभताओं का कारण पितृदोष माना गया है। इसके निवारण के लिए श्राद्धपक्ष में पितर शांति एवं पिंडदान करना शुभ रहता हैं। भारतीय धर्म शास्त्रों के अनुसार    ’’पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति‘‘ अर्थात पुत्रहीन व्यक्तियों की गति नही होती व पुत नाम के नरक से जो बचाता है, वह पुत्र है। इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की अपेक्षा करते है। वर्तमान में पुत्र एवं पुत्री को एक समान माने जाने के कारण इस भावना में सामान्य कमी आई है परन्तु पुत्र प्राप्ति की इच्छा सबको अवश्य ही बनी रहती है जब पुत्र प्राप्ति की संभावना नही हो तब ही आधुनिक विचारधारा वाले लोग भी पुत्री को पुत्र के समान स्वीकारते है। इसमे जरा भी संशय नही है।(साई फीचर्स)

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