राहुल नहीं डीएमके
और अंबानी बने विस्तार में रोढ़ा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
मीडिया में भले ही यह बात प्रचारित प्रसारित हो रही हो कि मंत्रीमण्डल का विस्तार
राहुल गांधी की व्यस्तता और श्राद्ध पक्ष के चलते टाला गया हो पर सत्ता और शक्ति
के शीर्ष केंद्र 10,
जनपथ के सूत्रों का दावा है कि यह विस्तार राहुल गांधी के
कारण नहीं वरन् डीएमके और मुकेश अंबानी के दबाव के चलते टाला गया है। इसके साथ ही
साथ महाराष्ट्र का भी इस विस्तार को टालने में योगदान माना जा रहा है।
माना जा रहा था कि
मंत्रीमण्डल विस्तार 30 सितम्बर के पहले ही कर लिया जाएगा। इस विस्तार में राहुल
गांधी को शामिल किया जाएगा अथवा राहुल गांधी व्यस्तताओं के चलते मंत्रीमण्डल
विस्तार के प्रोग्राम में शिरकत कर पाएंगे कि नहीं इस बारे में संशय के चलते
विस्तार टाला गया इस आशय की खबरें मीडिया में आ गईं।
सोनिया गांधी के
आवासीय सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि यह कांग्रेस की सुविचारित
रणीनति का हिस्सा था कि राहुल गांधी का नाम सामने कर मूल मुद्दे से मीडिया का
ध्यान भटकाना। कांग्रेस अपनी इस रणनीति में कामयाब भी हो गई। मीडिया में इस तरह की
ही खबरें सामने आईं कि राहुल के कारण ही विस्तार टाल दिया गया। इसके साथ ही मीडिया
इस विस्तार के टलने की मुख्य वजह से अनजान ही बना रहा।
सूत्रों की मानें
तो मंत्रीमण्डल विस्तार टलने की तीन प्रमुख वजहें हैं। पहली वजह द्रमुुक का
मंत्रीमण्डल से बाहर रहना और दूसरा मुकेश अंबानी की पेट्रोलियम मंत्री जयपाल
रेड्डी की रूखसती है। तीसरा महाराष्ट्र में राकांपा के दबाव के आगे झुककर अगर
कांग्रेस चव्हाण को हटाती है तो इसका संदेश बहुत अच्छा नहीं जाएगा। तीनों ही वजहें
कांग्रेस के लिए इतनी अहम थीं कि दोनों ही को वे नजर अंदाज नहीं कर सकते थे।
डीएमके के सूत्रों
ने एक वजह का खुलासा करते हुए बताया कि डीएमके सुप्रीमो ने कांग्रेस के
रणनीतिकारों को साफ कर दिया था कि जब तक उनकी पुत्री कोनिमोझी को पाक साफ नहीं कर
दिया जाता तब तक वह मंत्रीमण्डल का हिस्सा नहीं बन सकती। इस संबंध में करूणानिधी
का साफ कहना था कि जब तक कोनिमोझी का मामला नहीं सुलट जाता तब तक किसी भी तरह की
वार्ता के लिए डीएमके के सारे दरवाजे बंद रहेंगे।
इसके साथ ही साथ
डीएमके सुप्रीमो इस बात से भी खासे खफा हैं कि उनसे चर्चा के लिए कांग्रेस द्वारा
एकदम लो प्रोफाईल वाले व्ही.नारायणसामी जैसे अदने से नेता को भेजा जाता है।
नारायणसामी अनुभवहीन और बड़बोले हैं जो करूणानिधि के साथ चर्चा के दौरान अपनी ही
बातें कहते रहते हैं करूणानिधि की बात सुनने के बजाए वहां से उठकर रफत ले लेते
हैं।
डीएमके के सूत्रों
का यह भी कहना है कि डीएमके मंत्रीमण्डल में रेल मंत्रालय से कम पर राजी नहीं है।
डीएमके का कहना है कि सालों से रेल जैसा अहम मंत्रालय उत्तर या मध्य भारतीयों के
पास ही रहा है। रेल के मामले में दक्षिण की सदा ही उपेक्षा की गई है जो अब
बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उधर, कांग्रेस इस मंत्रालय पर अपना हक अब जमाने को
आतुर ही दिख रही है।
यह तो हुआ पहला
मसला, इसके साथ
ही साथ महाराष्ट्र के निजाम पृथ्वीराज चव्हाण को हटाने राकांपा का खासा दबाव है।
राकांपा के उप मुख्यमंत्री अजीत पंवार ने त्यागपत्र देकर इस दबाव में पूरा
एक्सीयलेटर दबा दिया है। भारी दबाव के बाद भी वजीरे आजम और कांग्रेस अध्यक्ष
श्रीमति सोनिया गांधी अजीत पंवार को मुंबई से दिल्ली नहीं ले जाना चाहते क्योंकि
इससे बहुत ही गलत संदेश जाएगा।
पीएमओ के सूत्रों
ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि अगर चव्हाण को दिल्ली ले
जाया गया तो यह संदेश जा सकता है कि कांग्रेस ने राकांपा के आगे घुटने टेक दिए
हैं। उधर, त्रणमूल
कांग्रेस के द्वारा कांग्रेस को दुत्कारने के उपरांत अब बंगाल के क्षत्रप भी अपने
आप को केंद्र में एडजस्ट करने का दबाव बनाए हुए हैं। प्रणव मुखर्जी के रायसीना
हिल्स जाने के बाद सूबे में आए वेक्यूम को भरने के लिए कांग्रेस को बंगाल को
प्रतिनिधित्व देना मजबूरी हो गया है।
कांग्रेस पश्चिम
बंगाल में किसे प्रमोट करे इस बात में संशय अंतिम समय तक बरकरार ही रहा जो भी
मंत्रीमण्डल विस्तार के टलने का कारक माना जा रहा है। अलग अलग दलों के इन अस्त्रों
के सामने अब कांग्रेस चाह रही है कि किसी भी तरह अपनी शर्तों पर बसपा या सपा को
मंत्रीमण्डल में शामिल कर लिया जाए।
इनके अलावा दूसरा
कारण मुकेश अंबानी बनकर उभरे हैं मंत्रीमण्डल विस्तार टलने का। दरअसल, धनकुबेर मुकेश
अंबानी काफी समय से पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी से खासे खफा हैं। कांग्रेस के
सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि जयपाल रेड्डी के कद का नेता जो पेट्रोलियम मंत्रालय
की कमान संभाल सके उसकी झोली में अभी नजर नहीं आ रहा है।
सोनिया के करीबी
सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी अपने आंखों के तारे शिवराज पाटिल को वापस
मुख्य धारा में लाने बेताब हैं। वे चाहती हैं कि विदेश मंत्री सोमन हल्ली मलैया
कृष्णा को कर्नाटक भेज दिया जाए पर मनमोहन सिंह इसके लिए तैयार नजर नहीं आ रहे
हैं। वहीं शिवराज पाटिल को वापस लाने में मनमोहन सिंह अपना वीटो लगाए हुए हैं।
सूत्रों ने बताया
कि खबरों के बाजीगर केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला को इसके लिए पाबंद किया गया कि
मंत्रीमण्डल विस्तार के टलने के प्रमुख कारकों की तरफ से लोगों का ध्यान हटाया जाए
ताकि कांग्रेस के सियासी प्रबंधकों को कुछ समय और मिल सके ताकि वे अपनी नई रणनीति
बना सकें। फिर क्या था कांग्रेस के जरखरीद पत्रकारों के माध्यम से इस तरह की खबरें
प्लांट करवाकर लोगों का ध्यान भटकाया गया और इसकी प्रमुख वजहें प्रकाश में नहीं आ
सकीं।
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