पीएम का लालीपाप:
पांच साल बाद सस्ती बिजली
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
आठ साल तक लगातार केंद्र सरकार में घपले, घोटालों को प्रश्रय देने वाले अब तक के सबसे
निरीह और कमजोर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने आम चुनावों की आहट के साथ ही अब
आश्वासन और लाली पाप का पिटारा खोल दिया है। देश में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में
बिजली की मारामारी किसी से छिपी नहीं है। इस सबके बाद भी वजीरे आजम ने आठ साल इस
ओर ध्यान नहीं दिया अब उन्हें बिजली की चिंता भी सताने लगी है।
सरकार ने कहा है कि
किफायती दर पर बिजली उपलब्ध कराना विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती है और भारत, अगले पांच वर्ष में
देश में सबके लिए बिना किसी रुकावट के सस्ती दर पर बिजली सुनिश्चित करेगा। कल नई
दिल्ली में ऊर्जा के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रधानमंत्री ने कहा कि
देश के सभी छह लाख गावों में बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।
प्रधानमंत्री ने
कहा कि सरकार, गांवों में
सभी घरों में रसोई गैस पहुंचाने के प्रयास कर रही है। सभी गांवों की १२ प्रतिशत
आबादी इसका इस्तेमाल करती है। उन्होंने बताया कि रसोई गैस का इस्तेमाल करने वाले
सभी चौबीस करोड़ घरों को एक वर्ष में सब्सिडी पर छह सिलेन्डर देने से लगभग ढाई करोड़
टन एल पी जी की आवश्यकता होगी और इसकी व्यवस्था की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि
वितरण नेटवर्क के विस्तार में कुछ समय लग सकता है। हाल ही में एक लाख से अधिक गांवों
में बिजली के कनेक्शन दिए गए हैं और अब केवल कुछ हजार घर ऐसे हैं जहां बिजली नहीं
पहुंच पाई है। अक्षय ऊर्जा का जिक्र करते हुए डॉ० मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत ने
२०१७ तक ५५ गीगा वॉट, अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता का लक्ष्य रखा है। उन्होंने बताया
कि देश की कुल स्थापित बिजली क्षमता का बारह प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा से प्राप्त
होती है।
प्रधानमंत्री ने
आशा व्यक्त की कि २०२२ तक गांवों के लगभग
दो करोड़ घर सौर ऊर्जा से रोशन हो सकेंगे। डॉ० सिंह ने स्वीकार किया कि गांवों में
बिजली और एल पी जी पर सब्सिडी की जरूरत है।
उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार लक्षित लोगों को सब्सिडी देने की व्यवस्था
के लिए काम कर रही है। उन्होंने कहा कि सब्सिडी, सीधे लाभार्थियों
के बैंक खाते में हस्तांतरित कर दी जाएगी।
सतत ऊर्जा के
उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विचारों और अनुभवों के आदान-प्रदान के लिए
विश्व समुदाय के सहयोग के बारे में पूछे जाने पर डॉ० सिंह ने कहा कि ऊर्जा की कमी
वाले क्षेत्रों में इसके लिए वित्त पोषण के वास्ते बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्री
सहयोग की आवश्यकता है। हमारे संवाददाता ने बताया है कि दो दिन के इस सम्मेलन में
पचास से अधिक देशों के मंत्री और प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। इसका आयोजन नवीन और
नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और भारतीय उद्योग परिसंघ कर रहा है।
उधर, सरकार ने राज्य
सरकारों के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों के लिए वित्तीय पुनर्गठन योजना
अधिसूचित कर दी है। इसमें उनके अल्पवधि कर्ज के ५० फीसदी हिस्से को बांड में बदलना
शामिल है, जिन्हें
सम्बद्ध राज्य सरकार का समर्थन होगा। नई दिल्ली में जारी सरकारी विज्ञप्ति में कहा
गया है कि शुक्रवार को अधिसूचित इस योजना का लक्ष्य बिजली वितरण कंपनियों की
वित्तीय स्थिति में सुधार लाना है।
इस योजना को केंद्र
सरकार की अस्थाई वित्तीय व्यवस्था के जरिए सहायता प्रदान की जाएगी। यह योजना इस
साल ३१ दिसंबर तक लागू है। योजना के तहत उन सभी सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को
सहायता मिलेगी, जिन्हें
नुकसान उठाना पड़ा है और जो संचालन में वित्तीय घाटे के कारण कठिनाइयों का सामना कर
रही हैं।
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